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मसूड़ों की बीमारियों से रहें सावधान

मसूड़ों की बीमारियों से रहें सावधान

मसूड़ों की बीमारियों से रहें सावधान  
दांतों और मसूड़ों की बीमारियों की अनदेखी न करें। इससे कई अन्य गंभीर रोगों का खतरा रहता है। पेरिओडॉन्टाइटिस मसूड़ों का एक खतरनाक संक्रमण है। ये दांतों और मसूड़ों में पैदा होने वाले कुछ खास बैक्टीरिया के कारण होता है। जैसे-जैसे पेरिओडॉन्टाइटिस संक्रमण बढ़ता है, आपके दांत और हड्डियां दोनों खराब होने लगते हैं। अगर सही समय से इस संक्रमण का इलाज किया जाए और मुंह की ठीक से सफाई रखी जाए, तो इसे ठीक किया जा सकता है।
पेरिओडॉन्टाइटिस से कमजोर होते हैं दांत 
अगर आपके मसूड़े स्वस्थ रहेंगे, तो मसूड़ों में मौजूद सेल्स आपके दांतों को अच्छी तरह पकड़ कर रखती हैं, जिससे दांत मजबूती के साथ अपना काम करते हैं जबकि पेरिओडॉन्टाइटिस संक्रमण हो जाने पर दांतों पर से मसूड़ों की पकड़ कमजोर हो जाती है और वो फैलने लगते हैं, जिससे थैलियां बन जाती हैं। दांतों में जमने वाला प्लाक और भोजन के अवशेष इन थैलियों में इकट्ठा होते रहते हैं और गंभीर संक्रमण का कारण बनते हैं। प्लाक में स्थित बैक्टीरिया प्रजनन करते हैं, मसूड़ों की रेखा के नीचे वृद्धि करते हैं और बैक्टीरियल विष (टॉक्सिन्स) उत्पादित करते हैं। रोग बढ़ने के साथ थैलियां गहरी होती जाती हैं और मसूड़ों का ऊतक और हड्डी और नष्ट होती है और अंततः दांत उखड़ जाते हैं।
क्या हैं पेरिओडॉन्टाइटिस के लक्षण
मंजन करने या टंग क्लीनर का इस्तेमाल करने के दौरान मसूड़ों से खून निकलना, बदबूदार सांसें, दांत का अपनी जगह से खिसक जाना या कमजोर होकर टूट जाना,मसूड़ों में सूजन आ जाना, मसूड़े लाल हो जाना, दांतों में प्लाक जम जाना,खाते-पीते समय दांतों में दर्द होना, मुंह में हर समय अजीब स्वाद लगना, शरीर के अन्य अंगों में सूजन आ जाना
क्या है पेरिओडॉन्टाइटिस का इलाज
अगर पेरिओडॉन्टाइटिस इंफेक्शन अपनी शुरुआती स्टेज में है, तो घर की देखभाल और सामान्य चिकित्सा से ठीक किया जा सकता है। मगर रोग के काफी बढ़ जाने पर सर्जरी द्वारा ही इसे ठीक किया जा सकता है। अगर मसूड़ों और दांतों के बीच गैप (थैलियां) बन गई हैं, जो थोड़ी गहरी हैं, तो आपके स्केलिंग करके एंटीबायोटिक दवाओं के द्वारा इसे ठीक कर सकते हैं।
अन्य कई रोगों का बढ़ता है खतरा
पेरिओडॉन्टाइटिस होने पर अगर ठीक समय से और सही उपचार न किया जाए, तो इससे कई अन्य बीमारियों जैसे- डायबिटीज, सांस की बीमारी और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान अगर किसी महिला को ये रोग हो जाए, तो उसके बच्चे का वजन कम हो सकता है और प्रीक्लैम्पसिया का शिकार हो सकता है।

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