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पैकेज्ड फूड खतरनाक, सीखें लेबल पढ़ना

पैकेज्ड फूड खतरनाक, सीखें लेबल पढ़ना

पैकेज्ड फूड खतरनाक, सीखें लेबल पढ़ना 
पैकेज्ड चीजें अब लोग खूब इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आंख मूंदकर इनका इस्तेमाल आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है? जी हां, समझदारी इसी में है कि समान खरीदने से पहले उस पैकेट के लेबल पर छपी जानकारी को पढ़ लें और जान लें कि उसमें (इन्ग्रीडियेंट्स )घटक क्या-क्या हैं और उनका हमारी सेहत पर क्या असर पड़ेगा। लेबल पर छपे किन खास बातों पर आपको ध्यान देना चाहिए,। 
उदाहरण स्वरूप ---राकेश हर दिन बीपी की दवाई लेते हैं। उन्होंने खाने में अलग से नमक लेना बंद कर दिया है, लेकिन बीपी कंट्रोल में नहीं रहता। उन्होंने डॉक्टर और डाइटिशन से दोबारा बात की तो जो बात सामने आई वह चौंकाने वाली थी। दरअसल, राकेश ऑफिस में एक बड़ी ब्रैंडेड कंपनी का रोस्टेड चना या मूंगफली अमूमन हर दिन एक पैकेट जरूर खाते थे। जब डाइटिशन ने उन्हें उस पैकेट की बैक साइड पर इन्ग्रीडिएंट्स(घटकों ) की लिस्ट दिखाई तो उनके होश उड़ गए। चना सिर्फ कहने को रोस्टेड था, लेबल के अनुसार उसमें ऑयल भी मौजूद था। यही नहीं, उसमें नमक का सीधे कहीं जिक्र नहीं था, लेकिन लेबल पढ़कर समझा जा सकता था कि नमक उसमें मौजूद है। उस 10 रुपये के एक पैकेट में इतना नमक मौजूद था, जितना राकेश को 3 दिनों में खाना चाहिए था। राकेश उस रोस्टेड चना में मौजूद नमक के अलावा घर पर खाने में भी नमक खाते थे, दाल और सब्जी में। यानी वह गलती से ही सही, हर दिन काफी नमक खा लेते थे। इसलिए बीपी पर दवाओं का ज्यादा असर नहीं होता था। बेशक अगर उन्होंने पैकेट के लेबल पर छपी पूरी जानकारी सही ढंग से पढ़ी होती तो उन्हें पता होता कि वह कितना ज्यादा नमक खा रहे हैं। जाहिर है, इसके बाद राकेश ने वह रोस्टेड चना खाना बंद कर दिए। कुछ ही दिनों में उनका बीपी भी कम हो गया। 
लेबल पढ़ना जरूरी 
किसी भी पैक्ड फूड आइटम का सिर्फ फ्रंट यानी जिस पर नाम बड़े अक्षरों में ब्रैंड नेम छपा होता है, उसे देखकर ही सामान न खरीदें। खरीदने से पहले पैकेट की बैक साइड को जरूर चेक करें। वहां लेबल पर छोटे अक्षरों में लिखी हुई जानकारी को पूरी गंभीरता और तल्लीनता से पढ़ें। कानून के अनुसार, पैकेज्ड आइटम बेचने वाली सभी कंपनियों को पैकेट के लेबल पर उन तमाम इन्ग्रीडियेंट्स के नाम और उनकी मात्रा का जिक्र करना जरूरी है, जो उस आइटम में हैं। 
लेबल पढ़ने का तरीका 
जिस भी पैक्ड आइटम को आप चटखारे लेकर खा या पी रहे हैं, उसके पैकेट की बैक साइड पर उसके इन्ग्रीडियेंट्स की पूरी लिस्ट रहती है। इस लिस्ट की एक खासियत यह होती है कि वह अमूमन घटते क्रम में होती है, यानी जो तत्व उसमें सबसे ज्यादा मौजूद है वह सबसे पहले और उससे कम वाला उसके बाद, इस तरह सबसे कम मात्रा में मौजूद तत्व का नाम और उसके मात्रा की जानकारी सबसे आखिर में लिखी होती है। 
आजकल पटैटो चिप्स की खपत बहुत ज्यादा है। बच्चे हो या फिर बड़े सभी खाते हैं। चाहे घर में हो या फिर ट्रैवलिंग के दौरान, हर समय इसकी डिमांड रहती है। आइए जानते हैं कि इनमें क्या सब चीजें मौजूद होती हैं: 
100 ग्राम पैक्ड आलू चिप्स में 
लेबल पर इन्ग्रीडियेंट्स इसका मतलब 
कैलरी: 500 से 600 कैलरी यह किसी हेवी ब्रेकफास्ट से भी ज्यादा है। 
प्रोटीन: 7 से 9 ग्राम प्रोटीन सेहत के लिए फायदेमंद है। 
कार्बोहाइड्रेट्स: 50 से 60 ग्राम चूंकि इसमें डाइटरी फाइबर नहीं होते, इसलिए इसे हेल्दी कार्बोहाइड्रेट नहीं कहा जा सकता। इसमें 2 से 4 ग्राम शुगर होती हैं 
सेचुरेटिड फैट: 13 से 20 ग्राम यह सेहत के लिए अच्छा नहीं है। 
ट्रांस फैट: 0.1 से 0.3 ग्राम तक देखने में यह भले ही कम लगे, लेकिन इसकी इतनी मौजूदगी भी अनहेल्दी है। 
सोडियम: 742 मिली ग्राम अडल्ट को दिन भर में 1500 मिली ग्राम सोडियम ही लेना चाहिए। ऐसे में एक पैकेट चिप्स खाने के बाद दिन में और नमकीन चीजें खाते वक्त ध्यान रखें। 
न्यूट्रिशनल फैक्ट्स ऐंड इंफॉर्मेशन (खाद्य सूचना और तथ्य )
सर्विंग साइज: इस शब्द से जरूर परिचित हो जाएं। यह आपके कई तरह के भ्रमों को दूर कर देगा। अमूमन 30, 50 या 100 ग्राम के पैकेट पर सर्विंग साइज लिखी होती है। फिर उसमें मौजूद कैलरी और दूसरी न्यूट्रिशनल इंफॉर्मेशन व इन्ग्रीडियेंट्स के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। अमूमन चिप्स के मामले में एक सर्विं में 150 कैलरी हो सकती है। समझने वाली बात यहीं पर है। सर्विंग साइज का जिक्र अलग-अलग पैक पर अलग-अलग हो सकता है, मसलन 100 चिप्स या 30 ग्राम नमकीन या फिर 100 एमएल जूस। चिप्स का एक पैकेट है। जिसका वजन 50 ग्राम है और उसमें 5 सर्विंग साइज के बराबर चिप्स हैं। अगर इस पूरे पैकेट को खा लिया जाए तो कुल कैलरी 50 ग्राम के हिसाब से शरीर में पहुंचेगी न कि सर्विंग साइज के हिसाब से। एक पैकेट चिप्स खाने के बाद आपने 750 कैलरी (150X5) खा लिया। सीधे कहें तो एक वक्त का भर पेट खाना खा लिया। 
ध्यान देने वाली बात 
प्रोटीन: यह शरीर के लिए बेहद जरूरी है। किसी प्रॉडक्ट के लेबल पर अगर इसकी मात्रा ज्यादा होगी तो इसका सीधा-सा मतलब है कि पैक्ड फूड की क्वॉलिटी बेहतर है। 
कार्बोहाइड्रेट्स: शरीर के लिए यह भी जरूरी है, लेकिन नियत मात्रा में। पैकेट पर इसका इन रूपों में जिक्र होता है: 
1. डाइटरी फाइबर: यह सेहत के लिए अच्छा है। प्रॉडक्ट में इसकी मात्रा ज्यादा होने से फायदा होगा। 
2. शुगर: इसकी मात्रा ज्यादा होने का मतलब है कि यह अनहेल्दी है। यह जितनी कम हो, उतनी ही बेहतर। 
फैट: वैसे तो शरीर में इसकी मौजूदगी की अपनी उपयोगिता है, लेकिन पैक्ड फूड में अमूमन यह अनहेल्दी ही होती है। पैक्ड आइटम के लेबल पर इन नामों से फैट को आप ढूंढ सकते हैं: 
1. सेचुरेटिड: इसका जिक्र पॉली सेचुरेटिड और मोनो सेचुरेटिड के रूप में हो सकता है। 
2. ट्रांस फैट: इसे सेहत के बेहतर नहीं माना जाता। 
यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि किसी प्रॉडक्ट में सेचुरेटिड या ट्रांस फैट की 0.1 ग्राम की मौजूदगी भी अनहेल्दी है। 
सोडियम: वैसे तो सोडियम शरीर के लिए जरूरी है, लेकिन इसकी बेहद कम मात्रा ही शरीर को चाहिए। इसे निश्चित मात्रा से ज्यादा लेने पर बीपी, एंग्जाइटी आदि होने की आशंका रहती है। अगर किसी को बीपी की शिकायत है तो ऐसे लोगों के लिए पैक्ड नमकीन फूड आइटम अनहेल्दी है। इनमें नमक सोडियम के रूप में काफी मात्रा में मौजूद रहती है। एक दिन में 2300 मिली ग्राम से ज्यादा सोडियम लेना हानिकारक है। ज्यादा सोडियम बीपी को बढ़ाता है और शरीर में पानी को रोकता है। 
ग्लूटन: आजकल पैक्ड चीजों पर 'ग्लूटन फ्री' का जिक्र होने लगा है। अगर किसी को ग्लूटन से समस्या है, सीलिएक डिजीज है तो ऐसे प्रॉडक्ट से परहेज करें जिन पर ग्लूटन की साफ जानकारी नहीं है। 
एडेड फ्लेवर: लेबल पर अगर एडेड फ्लेवर लिखा है तो वह अनहेल्दी हो सकता है। 
ऑयल: फ्राइड आइटम में तो ऑयल की मौजूदगी होती ही है, रोस्टेड फूड आइटम्स की भी लाइफ बढ़ाने के लिए भी कई कंपनियां ऑयल का उपयोग करती हैं। हां, ऑयल की मौजूदगी के बारे में कंपनियां फ्रंट पर न लिखकर प्रॉडक्ट के पीछे इन्ग्रीडियेंट्स की लिस्ट में बताती हैं। फ्रंट पर सिर्फ रोस्टेड की ही बात होती है। लेबल पर पाम ऑयल, राइसब्रैन ऑयल, कॉटन सीड ऑयल आदि का जिक्र हो सकता है। आमतौर पर राइसब्रैन ऑयल हेल्दी माना जाता है, लेकिन यह शरीर में सूजन का कारण बनता है। 
शुगर फ्री: डायबीटीज के मरीजों को जहां भी ये दो शब्द दिख जाते हैं, उन्हें सेफ फूड आइटम का अहसास होता है। लेकिन यहां भी सचेत होने की जरूरत है। यह मुमकिन है कि पैक्ड आइटम के फ्रंट पर शुगर फ्री लिखा हो, लेकिन पलटते ही लेबल पर इन्ग्रीडियेंट्स की सूची में स्वीटनर की मौजूदगी की बात हो। अगर लेबल पर सूक्रोज, ग्लूकोज, माल्टोज, मैपल सिरप, जाइलेटॉल, इरीथ्रॉल आदि जिक्र है तो समझ लें उस प्रॉडक्ट में शूगर मौजूद है। सीधे कहें तो एक नहीं तो दूसरे तरीके से आपके शरीर में शुगर जा ही रहा है। 
ध्यान दें: अगर किसी को शुगर के इतने तकनीकी शब्द समझ में नहीं आ रहे या याद नहीं हो रहे तो याद रखें कि सामग्रियों की सूची में जिस भी इन्ग्रीडियेंट के अंत में OL/OSE है तो यह मुमकिन है कि वह शुगर हो। 
बात पैक्ड जूस की 
चिप्स, भुजिया, मूंगफली और चने आदि की तरह ही पैक्ड जूस भी लोग खूब इस्तेमाल करते हैं। अगर जूस के लेबल को भी बारीकी से पढ़ें तो जूस में मौजूद अच्छे और हानिकारक इन्ग्रीडियेंट्स और न्यूट्रिएंट्स के बारे में जानकारी मिल सकती है। आइए जानते हैं कि जूस के लेबल पर किन बातों का जिक्र होता है और उन्हें पढ़ने के बाद आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। 
कैलरी 
वैसे तो शरीर को चलाने के लिए कैलरी जरूरी है, लेकिन शरीर को मोटा करने में भी इन्हीं की भूमिका होती है। ऐसे में कोई भी पैक्ड जूस खरीदने से पहले यह देख लें कि उसके लेबल पर कैलरी का जिक्र है या नहीं। अक्सर यहां समझ का फेर हो जाता है। दरअसल, सीधे पूरे पैकेट से मिलने वाली पूरी कैलरी के बजाय अक्सर लेबल पर सर्विंग साइज या अमाउंट का जिक्र होता है। अगर 100 एमएल जूस में 300 से ज्यादा कैलरी है तो सावधान होने की जरूरत है। वैसे, बेहतर तो यह होगा कि जूस पीने के बाद आपको दिनभर के कैलरी इनटेक ध्यान रखना चाहिए। किसी भी स्थिति में कैलरी इनटेक दिनभर में 2000 से 2500 कैलरी के बीच ही होना चाहिए। 
टी-ऑक्सिडेंट: यह हमारे शरीर से हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है, साथ ही ब्लड सेल्स की संख्या में भी इजाफा करता है। इससे हमारे शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है। इतना ही नहीं, एंटी-ऑक्सिडेंट हमारी स्किन को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाए रखने में भी मदद करता है। इसके लिए सबसे बेहतरीन सोर्स हैं हरी सब्जियां, ताजे फल आदि। 
पल्प: जूस के लेबल पर पल्प का जिक्र होने का मतलब है उस जूस को बनाने में फल के गूदे का प्रयोग हुआ है। जिस पैक्ड जूस में जितना पल्प होगा, वह उतना ही बेहतर पोषण वाला होगा। 
विटमिन: काफी कम मात्रा में ही सही, लेकिन यह शरीर के लिए बेहद जरूरी है। लेबल पर इनकी मात्रा साफ लिखी होती है। मसलन मैंगो जूस में विटमिन ए, ऑरेंज जूस में विटमिन सी होना ही चाहिए। 
कैल्शियम: मिलीग्राम में इसकी मात्रा लेबल पर लिखी होती है। शरीर और हड्डी के लिए यह भी जरूरी पोषक तत्व है। अगर जूस में कैल्शियम है तो यह शरीर के लिए अच्छा है। 
नेचरल फ्रूट शुगर: यह उतना नुकसानदेह नहीं होती, लेकिन शुगर के पेशंट को इससे भी बचना चाहिए। 
ऐडेड शुगर: जूस को मीठा बनाने के लिए उसमें अलग से शुगर मिलाई जाती है। यह सेहत के लिए हानिकारक होती है। शुगर के मरीज के लिए ऐसा जूस खतरनाक है। 
प्रिजरवेटिव: अमूमन जूस को पीने के लिए सुरक्षित बनाने के लिए प्रिजरवेटिव का उपयोग किया जाता है। इससे जूस की लाइफ बढ़ जाती है, लेकिन कुछ स्टडीज में यह भी दावा किया गया है कि इस प्रिजरवेटिव से सूजन आदि की समस्या हो सकती है। अगर जूस पीना है तो खुद से फलों का ताजा जूस निकालकर पिएं या फिर बेहतर होगा कि ताजा फल खाएं। 
नोट: जीरो कैलरी लिक्विड: सेहत के लिए देखें तो सबसे बेहतरीन जीरो कैलरी लिक्विड ही अच्छा है। इसमें सबसे पहले पानी का नाम ले सकते हैं, दूसरी है ग्रीन टी। 
मिथ मंथन या भ्र्म
जिसकी एक्सपाइरी जितनी लंबी, वह उतना बुरा: 
यह सोचना पूरी तरह गलत है। जिस प्रॉडक्ट की सेल्फ लाइफ ज्यादा होगी, इसका सीधा-सा मतलब है कि उसमें प्रिजरवेटिव का उपयोग भी ज्यादा किया गया होगा। जिसकी सेल्फ लाइफ जितनी कम होगी, उसमें उतना ही कम प्रिजरवेटिव का उपयोग किया गया होगा। मसलन, अगर किसी पैक्ड आइटम पर लिखा है कि '' ढक्कन खोलने के बाद २- ३ दिनों में उपयोग करे तो इसका मतलब है कि उसमें कम प्रिजरवेटिव का उपयोग किया गया है। 
:ठण्ड और सूखे स्थान में रखे --- कई लोग इसका मतलब फ्रिज में रखना समझते हैं। यह गलत है। इसका मतलब है कि आप इसे रूम टेंपरेचर पर रखें। इसके लिए बंद अलमारी सही जगह है। हां, गर्मियों में यह चीज बाहर खराब हो सकती है। 
सूर्य के प्रकाश से दूर रखे : यहां इस बात का ध्यान रखें कि ऐसे प्रोडक्ट्स जिन पर 'कीप अवे फ्रॉम सनलाइट' लिखा हो उन्हें सिर्फ धूप ही नहीं, आग की गर्मी से भी बचाकर रखना है। दरअसल, गर्म होने पर ऐसी चीजों की रासायनिक संरचना बिगड़ जाती है और सेहत पर उसका गलत असर पड़ सकता है। 
नियत तिथि से पहले उपयोग करना -- अलग-अलग: दोनों चीजें देने का मकसद एक ही होता है प्रॉडक्ट की टोटल लाइफ। जब प्रॉडक्ट के पैकेट पर 'बेस्ट बिफोर 12 मंथ्स' या कुछ और समय सीमा दी गई हो तो अमूमन उस पर एक्सपायरी डेट नहीं लिखी होती। वहीं जब एक्सपायरी डेट लिखी हो तो बेस्ट बिफोर नहीं लिखी होगी। इस इंफॉर्मेशन का सीधा-सा मतलब है कि प्रॉडक्ट की लाइफ को बताना। अगर उस पर दी गई तारीख या वह महीना बीत गया हो तो उसे प्रयोग करना खतरनाक हो सकता है। 
इन्ग्रीडिएंट्स की सूची जितनी लंबी, उतना बढ़िया: अगर इन्ग्रीडियेंट्स की संख्या 2-3 से ज्यादा है तो प्रॉडक्ट के अनहेल्दी होने की आशंका 60 से 70 फीसदी तक बढ़ जाती है। दरअसल, पैकेज्ड मटीरियल में जो भी मिलाया जाता है, वह अमूमन नेचरल नहीं होता। वह प्रोसेस्ड होता है और साथ ही, उन सबकी लाइफ बढ़ाने के लिए प्रिजरवेटिव का उपयोग भी किया जाता है। ऐसे में इस बात से ज्यादा प्रभावित न हों कि प्रॉडक्ट की पैकिंग पर लंबी सूची दी गई है, इसलिए यह अच्छी ही होगी। 
दूध की बात 
फैट की मात्रा लेबल पर देखें। अमूमन कम फैट का मतलब है हेल्दी दूध क्योंकि आजकल ज्यादातर लोग मोटापे के शिकार हैं। अगर ओवरवेट की समस्या है तो टोंड या डबल टोंड दूध अच्छा रहेगा, न कि फुल क्रीम दूध। फुल क्रीम में फैट की मात्रा ज्यादा होती है। पाश्च्युराइज्ड मिल्क में से अमूमन जरूरी पोषक तत्व निकल जाते हैं। फिर इस दूध में जो कैल्शियम होता है, वह शरीर में पूरी तरह से जज्ब भी नहीं होता। 
ब्रेड 
ब्रेड के जो विकल्प मार्केट में उपलब्ध हैं, उनमें शुगर और मैदा होता है। यहां तक कि होल वीट से ब्रेड बनाने का दावा करने वाले ब्रैंड में भी पूरा का पूरा गेहूं ही नहीं होता। इसलिए ब्रेड खाने से बचें या फिर राइस खाएं। 
हर दिन कितनी कैलरी लेनी है और कितना बर्न करना है, यह व्यक्ति विशेष की उम्र, वजन, लंबाई और शारीरिक गतिविधि पर चीजों पर निर्भर करती है।
इसके अलावा प्रत्येक पैकेट पर हरा या लाल निशान का चिन्ह देखना चाहिए। हरा चिन्ह शाकाहार का प्रतीक माना जाता हैं और लाल मांसाहार का पर कभी कभी बिक्री हेतु गलत चिन्हों का उपयोग किया जाता हैं। 
इसके अलावा जिनमे कुछ केमिकल मिलाये जाते हैं उनके बारे में जानना बहुत आवश्यक हैं कारण वे अपेक्षित स्वाद, स्वरूप, गुणधर्म, टिकाऊपन आदि प्रदान करने जो घटक डाले जाते हैं वे मांसाहारी होते हैं। इसके लिए आप कोई भी खाद्य सामग्री ले तो उनके पैकेट्स में बहुत बारीक अक्षरों में E के साथ नंबर लिखे रहते हैं उनको आप गूगल में खोजेंगे तो पाएंगे हम अभक्ष्य खा रहे हैं। 
जैसे E100 कलरिंग एजेंट्स, E200 --- कन्जर्वेशन एजेंट्स, E300 एंटी ऑक्सीडेंट, E400 एमल्सिफिएर,स्टैबलिज़ेर और थिकनर E,500 --एंटी कोएगुलांट E600 स्वाद बढ़ाने बाबत, 
E 900 मॉडिफाइड स्टार्च 
इसको ऐसे समझे ------ आइस क्रीम
वनीला E471, E407 E466 E412 E 471 यानी खाद्य पदार्थों में स्पंज बनाने --- प्राणीजन्य स्त्रोत, जानवरों की चर्बी से ज्यादा समय तक रखने के लिए मिलाया जाता हैं। 
ब्रिटानिया, पार्ले, प्रियागोल्ड, सुनफेस्ट,कैडबरी, चॉकलेट्स, नूडल्स, जैम, शैम्पू, वर्क, अजीनोमोटो, चूगंम। चिप्स बोनचाइना, आदि में अभक्ष्य सामग्री मिली रहने से नहीं उपयोग करना चाहिए। 

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