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शीर्ष कोर्ट धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव को लेकर 10 दिन सुनवाई करेगा पूरी

शीर्ष कोर्ट धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव को लेकर 10 दिन सुनवाई करेगा पूरी

शीर्ष कोर्ट धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव को लेकर 10 दिन सुनवाई करेगा पूरी
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को बताया कि केरल के सबरीमला मंदिर सहित विभिन्न धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव से जुड़े मामले की सुनवाई 10 दिन में पूरी की जायेगी। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि नौ सदस्यीय संविधान पीठ विशुद्ध रूप से कानूनी पहलू से जुड़े सवालों पर विचार करेगी और वह सुनवाई पूरी करने में अधिक समय नहीं लेगी। पीठ ने कहा, ‘वह 10 दिन से ज्यादा समय नहीं ले सकती। यदि कोई ज्यादा समय चाहता है तो यह नहीं दिया जा सकता।’ पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले का उल्लेख किया और कहा कि न्यायालय के निर्देशानुसार अधिवक्तओं की बैठक हुयी लेकिन वह नौ सदस्यीय संविधान पीठ के विचार के लिये एक समान कानून संबंधी सवालों को अंतिम रूप नहीं दे सकी। मेहता ने कहा, ‘हम विचार के लिये एक समान सवालों को अंतिम रूप नहीं दे सके।’ पीठ ने मेहता को वे मुद्दे पेश करने का निर्देश दिया जिन पर बैठक मे अधिवक्ताओं में चर्चा हुई थी।
संविधान पीठ मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश, दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना और गैर पारसी व्यक्ति से विवाह करने वाली पारसी महिलाओं को अज्ञारी में पवित्र अग्नि स्थल पर प्रवेश से वंचित करने से संबंधित मुद्दों पर विचार करेगी। न्यायालय ने 13 जनवरी को चार वरिष्ठ अधिवक्ताओं से कहा था कि वे एक बैठक करें और इस मामले से संबंधित मुद्दों पर मंत्रणा करें। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले को वृहद पीठ को सौंपते हुये कहा था कि धार्मिक स्थानों पर महिलाओं और लड़कियों का प्रवेश वर्जित करने जैसी धार्मिक परपंराओं की संवैधानिक वैधता के बारे में बहस का मुद्दा सिर्फ सबरीमला मामले तक ही सीमित नहीं है।
पीठ ने कहा था कि मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश, दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना और गैर पारसी व्यक्ति से विवाह करने वाली पारसी महिलाओं को अज्ञारी में पवित्र अग्नि स्थल पर प्रवेश पर पाबंदी जैसे मसले हैं। पीठ ने वृहद पीठ के विचार के लिये सात कानूनी मुद्दे तैयार किये थे। इसमें संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का परस्पर प्रभाव, संवैधानिक नैतिकता के भाव को अलग करना और किसी धार्मिक प्रथा के बारे में जांच पड़ताल करने की न्यायालय की सीमा, अनुच्छेद 25 के अंतर्गत हिन्दुओं के वर्गो का तात्पर्य और एक वर्ग या समुदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षण प्राप्त होने संबंधी सवाल शामिल थे। 

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