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तालिबान बोला- शांति समझौते को लेकर हम प्रतिबद्ध, हालातों पर भारत की नजर

तालिबान बोला- शांति समझौते को लेकर हम प्रतिबद्ध, हालातों पर भारत की नजर

तालिबान बोला- शांति समझौते को लेकर हम प्रतिबद्ध, हालातों पर भारत की नजर
भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान से खबर आ रही हैं कि तालिबान आंशिक युद्धविराम का उल्लंघन कर सकता है और हिंसा का दौर फिर शुरू हो सकता है। हालांकि तालिबान की वार्ता टीम के सदस्य और राजनीतिक दफ्तर के प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन का कुछ और कहना है। शाहीन ने साफ किया कि 29 फरवरी को दोहा (कतर) में अमेरिका और तालिबान के बीच जो समझौता हुआ है, उस पर आगे बढ़ने को लेकर तालिबान ‘प्रतिबद्ध’ है। बता दें कि अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार और तालिबान के बीच 5,000 तालिबान कैदियों को जेलों से रिहा करने के मुद्दे को लेकर गतिरोध बना हुआ। अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने रविवार को काबुल में स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से ऐसा कोई वादा नहीं किया गया है।
अफगान राष्ट्रपति के बयान के एक दिन बाद सुहैल शाहीन ने कहा कि अफगानिस्तान में आंतरिक वार्ता शुरू करने के लिए अफगान सरकार को 5,000 तालिबान कैदियों की रिहाई की शर्त पूरी करनी होगी। ऐसी स्थिति में आशंका जताई जा रही है कि अफगानिस्तान में आंतरिक वार्ता में विलंब होता है तो हिंसा के दौर की फिर शुरुआत हो जाएगी। सोमवार को ऐसी रिपोर्ट आई थीं कि तालिबान इस सूरत में अफगान सुरक्षा बलों पर हमले कर सकता है, लेकिन विदेशी सैनिकों को निशाना बनाने से बचेगा।
रिपोर्ट्स के मुताबिक तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा है, अब हिंसा पर विराम की बाध्यता खत्म हो चुकी है। हमारे ऑपरेशन पहले की तरह शुरू होंगे, अमेरिका-तालिबान समझौते के मुताबिक हमारे मुजाहिदीन विदेशी बलों पर हमला नहीं करेंगे। लेकिन हमारे ऑपरेशन काबुल प्रशासन के बलों के खिलाफ केंद्रित होंगे। वहीं जब सुहैल शाहीन से हिंसा के फिर शुरू होने की संभावना पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ‘अमेरिका-तालिबान समझौते का पालन किया जाएगा, सिर्फ अफगानिस्तान में होने वाली आंतरिक वार्ता को होल्ड किया जाएगा।’ इस बीच भारत अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखे हुए है। अमेरिका-तालिबान समझौते को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि इसको लेकर कोई हैरानी नहीं है। विदेश मंत्री ने चुटकी लेते हुए कहा, ये बातचीत लंबे समय से चल रही थी। ये 17 ट्रेलर्स देखने के बाद ‘पाकीजा’ को आखिरकार देखने जैसा है, अमेरिका अपने सैनिकों की संख्या घटाना चाह रहा है। साथ ही वो काबुल में सरकार और अफगान नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी फोर्सेज को समर्थन दे रहा है।

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