
अफगानिस्तान- 18 वर्षों से चल रहे युद्ध से अमेरिका-अफगान दोनों को ही जान-माल की भारी क्षति
अफगानिस्तान में लगभग बीते डेढ़ दशकों से चल रही लड़ाई का दोनों देशों ने भारी खमियाजा भुगता है। अब लगता है कि अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध समाप्त हो सकता है। अमेरिका और तालिबान ने दोहा में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे उम्मीद की जा रही है कि अफगानिस्तान में जारी संघर्ष समाप्त हो सकता है। यह समझौता हो चुका है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अफगानिस्तान की सरकार को किनारे रखकर यह कितना आगे बढ़ पाएगा? दूसरी ओर देखें तो इस युद्ध ने अफगानिस्तान और अमेरिका दोनों को ही जान-माल का काफी नुकसान पहुंचाया है। यदि तालिबान इस समझौते को निभाता है तो अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी 14 महीने में अफगानिस्तान छोड़ देंगे। इस समझौते को बनाए रखने के लिए तालिबान को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अल कायदा और ऐसे ही दूसरे आतंकी संगठनों को इस क्षेत्र में काम करने से रोकना होगा।
एक अनुमान के मुताबिक, इस युद्ध ने अमेरिकी करदाताओं पर 2 ट्रिलियन डॉलर (146 लाख करोड़ रुपये) का बोझ डाला है। यह राशि सैन्य अभियानों, अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण, आर्थिक विकास, पुनर्निर्माण और मादक पदार्थों की रोक पर खर्च की गई। विशेषज्ञों के अनुसार, पूर्व सैनिकों के लिए चिकित्सा और विकलांगता की देखभाल के कारण भविष्य में यह राशि और भी बढ़ सकती है। इस युद्ध की अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों को भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। ब्राउन विश्वविद्यालय ने नवंबर 2019 में दावा किया था कि सेना और राष्ट्रीय पुलिस के 64 हजार जवानों ने अपनी जान गंवाई। वहीं 42 हजार आम लोग भी मारे गए। इसके अतिरिक्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद गठबंधन की ओर से बमबारी काफी बढ़ गई। 2001 से अफगानिस्तान पर 58,602 बम गिराए गए। 2010 से 2012 के मध्य करीब एक लाख से अधिक अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में मौजूद थे और फिलहाल यह संख्या 12 हजार है। युद्ध के दौरान 2,309 अमेरिकियों ने अपनी जान गंवा दी और 20,662 घायल हुए। इस संघर्ष के बारे में लांग वार जर्नल ने आंकड़े जारी किए हैं। यह सरकार और तालिबान के नियंत्रण वाले जिलों से जुड़ी जानकारी रखता है। अफगानिस्तान सरकार के नियंत्रण में देश के करीब 400 जिलों में से 133 या 33 फीसद का नियंत्रण है। वहीं तालिबान का पूर्ण नियंत्रण 74 जिलों या 19 फीसद है। इसके अतिरिक्त शेष 190 जिलों या 48 फीसद विवादास्पद हैं।