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दुनिया में ऑयल वॉर

दुनिया में ऑयल वॉर

दुनिया में ऑयल वॉर 
दुनिया में जारी ऑयल वॉर के कारण भारत का बड़ा फायदा होने वाला है। आने वाले दिनों में संभवत: पेट्रोल और डीजल के दाम और कम होंगे। हाल ही में सउदी अरब द्वारा अगले माह से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने के फैसले के बाद दुनियाभर में इसका दाम भरभराकर गिर गया है। दुनिया के बाजारों में इसके बाद कच्चे तेल के दाम में 30 प्रतिशत की कमी आ गई। यह भारत और चीन समेत सभी बड़े तेल उपभोक्ताओं के लिए ऑयल बोनांजा की तरह है, क्योंकि तेल के घटे दाम से देश को व्यापार घाटा काबू करने में बड़ी मदद मिलगी। तेल उत्पादक और निर्यातक देशों के संगठन की पिछले दिनों उत्पादन कटौती पर चल रही वार्ता विफल हो गई। कच्चे तेल के घटते दाम को विक्रेता के हिसाब से उचित स्तर पर वापस लाने के लिए इन देशों ने उत्पादन में कटौती जारी रखने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर सदस्य सहमत नहीं हुए।
उसके बाद सऊदी अरब ने न केवल घरेलू कच्चे तेल का दाम घटाकर तीस वर्षों से भी अधिक समय के निचले स्तर पर ला दिया, बल्कि यह फैसला भी किया कि वह अगले महीने से उत्पादन बढ़ाकर कम से कम एक करोड़ बैरल प्रतिदिन के पार पहुंचाएगा। उसके इस फैसले को साफ तौर पर ऑयल वार की तरह देखा जा रहा है। सऊदी अरब की सरकारी ऑयल कंपनी अरामको यूरोप, एशिया और अमेरिका में अपने ग्राहकों को भारी डिस्काउंट ऑफर कर रही है। भारत अपनी जरूरत का करीब 83 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है। कच्चे तेल के दाम में प्रति डॉलर गिरावट से भारत को करीब 3,000 करोड़ रुपये का फायदा होगा। जानकारों का कहना है कि कच्चे तेल का दाम अगले पूरे वित्त वर्ष में दबाव में दिखेगा और इसके 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाने की कोई संभावना नहीं है। सऊदी अरब द्वारा दाम घटाने के बाद उसके अन्य स्पर्धी भी अपने-अपने बाजारों की रक्षा के लिए दाम घटाएंगे।
यह प्राइस वार निश्चित तौर पर भारत के लिए बेहद फायदेमंद रहने वाला है। सऊदी अरब ने स्पष्ट कहा है कि अगर जरूरत पड़ी, तो वह उत्पादन को 1.2 करोड़ बैरल प्रतिदिन तक के उच्च स्तर पर ले जाने से भी नहीं हिचकेगा। अरामको द्वारा कच्चे तेल के भाव में बड़ी कटौती के चलते ही पहली बार उसका शेयर 32 रियाल के आइपीओ भाव से भी नीचे गिरकर 31.98 रियाल प्रति शेयर रह गया।
वहीं, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस प्राइस वॉर को और तेज कर दिया है। वह इस वॉर के जरिए विश्व में सबसे ज्यादा तेल उत्पादन करने वाले देश का तमगा दोबारा हासिल करना चाहते हैं जो उनसे 2018 में छिन गया था। वर्तमान में अमेरिका तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। सऊदी अरब दूसरे नंबर पर और रूस तीसरे नंबर पर है। इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब ओवर सप्लाई के कारण तेल की गिरती कीमत को रोकने के लिए सऊदी अरब ने पहले प्रोडक्शन कट की बात की तो रूस ने प्रोडक्शन बढ़ा दिया। बाद में सऊदी अरामको ने भी कहा कि वह अप्रैल तक अपने प्रोडक्शन में 20 फीसदी का इजाफा करेगा। इससे कीमत में और गिरावट आएगी और अमेरिकी शेल कंपनियों के लिए यह स्थिति ठीक नहीं है। अभी अमेरिकी शेल कंपनियों पर कर्ज का भारी बोझ है। अगले कुछ हफ्तों तक अगर कीमत में गिरावट का सिलसिला जारी रहा तो कई कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। इससे अमेरिकी इकोनॉमी पर बुरा असर होगा। इसका सबसे ज्यादा असर टैक्सास की इकोनॉमी पर होगा जहां तेल का बिजनस बड़े पैमाने पर है। इसके अलावा हजारों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है। कच्चे तेल की कीमत इतनी घट गई है कि अमेरिकी शेल कंपनियों को भी प्रोडक्शन कट करना जरूरी हो गया है। ज्यादातर कंपनियों पर कर्ज का भारी बोझ है। ऐसे में दिवालियापन का खतरा काफी बढ़ गया है। रूस की कोशिश भी यही है। एनर्जी सेक्टर में छाई इस सुस्ती से 2014-16 की स्थिति दोहरा सकती है, जिसमें दर्जनों ऑयल और गैस कंपनियां बंद हो गई थीं और लाखों लोगों की नौकरी चली गई थी।
  तेल के खेल में रूस और सऊदी अरब की आर्थिक स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रूस तेल से कमाई पर 37 फीसदी निर्भर है, जबकि सऊदी तेल से कमाई पर 65 फीसदी निर्भर है। अगर तेल की कीमत 42 डॉलर रहती है तो रूस अपने बजट को बैलेंस कर सकता है, जबकि सऊदी अरब के लिए यह कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल है। इस तरह रूस इस खेल में लीड कर रहा है।
कोरोना वायरस के कारण अमेरिका समेत पूरे विश्व की हालत खराब है। इससे एनर्जी सेक्टर बुरी तरह प्रभावित है। फैक्ट्री में कामकाज घटा है और एविएशन सेक्टर में मंदी के कारण तेल की डिमांड काफी गिर गई है जिससे कीमत पर दबाव बढ़ गया है। अमेरिकी तेल कंपनियों पर कर्ज का बोझ बैंकिंग और फाइनैंशल सेक्टर के लिए भी खतरा है। अगर कोई भी कंपनी दिवालिया होती है तो इससे अमेरिका की पूरी इकॉनमी पर असर होगा। इस खेल में पुतिन मानने को तैयार नहीं है, ऐसे में अमेरिका को अभी भी और दर्ज उठाने होंगे।
 

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