
दुनिया भर के वैज्ञानिक अभी कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं खोज सके हैं। कई देशों में फिलहाल वैक्सिन पर काम चल रहा है, लेकिन अभी तक उन्हें कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी है। इस बीच वैज्ञानिकों ने चेतावनी देकर कहा है कि जिन लोगों का कोरोना टेस्ट निगेटिव आया है,वहां भी पॉजिटिव हो सकते हैं। इसके बाद टेस्टटिंग किट से सौ फीसदी सही जांच की गारंटी नहीं की जा सकती।
दुनिया भर में फिलहाल कोरोना की टेस्टिंग के लिए पीसीआर तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत मरीज के बलगम और ब्लड सैंपल में कोरोना वायरस के टुकड़े देख जाते हैं। अमेरिकी डॉक्टर का कहना है कि कई सारे फैक्टर हैं, जिससे पता चलता है कि टेस्ट के दौरान ये वायरस दिखेगा या नहीं। उन्होंने कहा, ये मुख्यतौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि किसी मरीज के अंदर कितना ज्यादा कोरोना है जो छींकने, खासने और सांस लेने के दौरान बाहर आ रहा है। इसके अलावा यहां ये भी अहम है कि किस तरह टेस्ट के लिए स्वैब का सैंपल लिया गया। साथ इसके बाद कितनी देर तक ये सैंपल ट्रांसपोर्ट में रहा।
कोरोना वायरस ने दुनिया में सिर्फ 4 महीने पहले ही दस्तक दी है।इसके बाद इसकी जांच को लेकर फिलहाल चीज़े साफ नहीं है। चीन से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि 60 से 70 फीसदी मामलों में ही वायरस की पुष्टि सही-सही की जा सकती है। ये भी कहा जा रहा है कि दुनिया भर में कंपनिया अलग-अलग तरीके से टेस्टिंग किट बना रही है। डॉक्टर का कहना है कि टेस्टटिंग में गलतियों की काफी संभावना है। डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना बॉडी के अलग-अलग पार्ट में शिफ्ट होती रहती है।इसके बाद अगर कोई टेस्ट करना वाला ट्रेंड नहीं है तो वो स्वैब के जरिए सही तरीके से सैंपल नहीं ले पाता है।इसके बाद मरीज़ के निगेटिव होने के बाद भी रिपोर्ट पॉजिटिव आ सकती है।