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चीन ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति से जुड़े अकादमिक शोधों के प्रकाशन पर रोक लगाई

चीन ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति से जुड़े अकादमिक शोधों के प्रकाशन पर रोक लगाई

 कोरोना वायरस के कहर से पूरी दुनिया बेहाल है और अब तक करीब एक लाख 20 हजार लोग इस महामारी से मारे जा चुके हैं। इस महासंकट के बीच कोरोना वायरस का ऑरिजिन कहां है, इसको लेकर अमेरिका और चीन में जुबानी जंग छिड़ी हुई है। विवादों में आए अब चीन ने नोवेल कोरोना वायरस के ऑरिजिन से जुड़े अकेडमिक शोधों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया है। यहां तक कि दो यूनिवर्सिटी ने भी पहले यह शोध प्रकाशित किया और फिर उसे ऑनलाइन डिलीट भी कर दिया। चीन ने कहा है कि वायरस के ऑरिजिन को लेकर अतिरिक्ति जांच की जरूरत है। शोध को प्रकाशन से पहले केंद्रीय अधिकारियों से स्‍वीकृत कराना होगा। इसी वजह से यूनिवर्सिटी की वेबसाइट से शोध को डिलीट किया गया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि चीन के इस कदम के पीछे बड़ी साजिश छिपी हुई है। दरअसल, बीजिंग का प्रयास है कि वह इस धारणा को नियंत्रित करे कि कोरोना वायरस वुहान से फैला था और दुनिया को बताए कि कोरोना वायरस का ऑरिजिन चीन नहीं है। यहां तक कि कुछ चीनी अधिकारियों ने यहां तक कह दिया कि यह वायरस अमेरिकी सेना का काम है। चीन के इस दावे के बाद अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप भड़क गए थे।
क्या चीन सरकार कोरोना वायरस पर सच्चाई छुपाना चाहती है। रिसर्च पेपर के प्रकाशन को लेकर जिस तरह के नए और कड़े नियम लगाए गए हैं उससे तो यही जाहिर होता है। यह कोरोना वायरस महामारी के ऑरिजिन को लेकर बनी राय पर नियंत्रण करने की सरकार की एक कोशिश लगती है। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी के अंत से ही चीनी शोधार्थी अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल्स में कोविड19 पर अपने अध्ययन प्रकाशित कर रहे हैं। कोरोना वायरस से जुड़े शोध पर चीन के वैज्ञानिकों के साथ काम कर रहे हॉन्कॉन्ग के एक मेडिकल एक्सपर्ट ने बताया कि उनकी क्लीनिकल एनालिसिस के प्रकाशन में फरवरी तक ऐसा कोई अंकुश नहीं लगाया गया था। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर चीनी शोधार्थियों ने कहा कि इस कदम से देश में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक शोध प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा यह वायरस को लेकर राय को नियंत्रित करने की सरकार का प्रयास है और वह यह दिखाना चाहती है कि वायरस का जन्म चीन में नहीं हुआ।
 

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