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ध्यान रहे कोरोना की टूट रही चेन जुड़ न पाए! 

ध्यान रहे कोरोना की टूट रही चेन जुड़ न पाए! 

कोरोना की महामारी के बीच चीन से आई नई खबर बेहद चौंकाने, डराने और चिन्ता वाली है। क्या लॉकडाउन में ढ़िलाई और दुनिया को दिखलाने के लिए महामारी पर जीत का दंभ दिखाने की कीमत और संक्रमण का फैलता दूसरे दौर भी छुपाना गहरी चीनी साजिश थी?  ऐसा लगता है कि वायरस के जनक ड्रैगन ने दुनिया ही नहीं अपने नागरिकों के साथ दोबारा गद्दारी की?  चीनी कुटिलता देखिए जो अब दूसरे देशों से आने वाले नागरिकों की आड़ में कोरोना पर नियंत्रण न कर पाने का ठीकरा मढ़ रहा है? उसने कहीं आनन-फानन में वुहान और वहाँ दूसरे प्रभावित क्षेत्रों में नियंत्रण की बात फैलाकर दोबारा इंसानियत को खतरे में डालने की साजिश की हिमाकत तो नहीं कर डाली?
चीन भले ही बेनकाब हो जाए, दुनिया को धोखे में रखे,  लेकिन दूसरे देशों को कोरोना को हल्के से लेना मानवता के लिए इस सदी की सबसे बड़ी भूल थी जिसे आगे भी जारी रखना दुनिया का जघन्यतम अपराध होगा। जो रिपोर्टें जहाँ-तहाँ से आ रही हैं उनका इशारा गंभीर है। दुनिया भर में प्रभावितों के आंकड़ें और मौत की फेहरिस्त बेचैन करनी वाली है।खुद चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के आंकड़ों पर अब यकीन तो मुश्किल है लेकिन थोड़ा भी सच है तो बहुत गंभीर है जो बताता है कि बीते केवल एक दिन में वहां संक्रमितों की संख्या एक सैकड़े के आंकड़े को छू रही है। यकीनन यह गहरी चीनी साजिश की पोल खोलता है तो वहीं कोरोना के दूसरे अटैक की तरफ इशारा भी करता है। 
हमारे हुक्मरानों को इससे सबक लेना ही होगा। समझना होगा कि जल्दबाजी में लिए गए फैसले इंसानियत पर भारी पड़ेंगे। कोरोना नियंत्रण को लेकर पीठ थपथपाने के बजाए आगे फैलने से रोकने के लिए सख्त उपायों की जरूरत है। पहला यह कि अभी भारत में ही केवल सब्जियों की खरीदी के नाम पर आज तक तमाम शहरों में मेले जैसे उमड़ी भीड़ ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। दूसरा, हमारे पास प्रभावित या संक्रमितों के असल आंकड़े ही नहीं है क्योंकि यह सच जगजाहिर है कि टेस्ट किट की भारी कमीं है। तीसरा, बीमारों की सुस्त जाँच प्रक्रिया है। चौथा, सबसे बड़ी सच्चाई है कि भारत की लगभग 70 फीसदी आवादी गाँवों से आती है और ग्रामीणों का खाना शहरों के मुकाबले ज्यादा पोषक, शुध्द व ठोस होता है जिससे उनकी इम्युनिटी शहरियों के मुकाबले मजबूत होती है। ईश्वर करे कि आंकड़ों की रफ्तार जो है वही रहे और धीरे-धीरे थम जाए लेकिन केवल इस खुशफहमीं को पाले बैठना भी गलत है।
 वक्त का तकाजा और तमाम विकसित देशों के उदाहरण और सीख सामने है कि सोशल या फिजिकल डिस्टेंसिंग कुछ भी कहें क्यों बेहद जरूरी है। दुनिया के विकसित देशों की हालत देखकर तो चेतना ही होगा।  सेहदमंद भारत के लिए मन की नहीं बाहरी दूरियां जरूरी है। सच तो यह है कि दुनिया के  हालात देख लॉकडाउन के लिए भारतीय मानसिक तौर पर तैयार हैं। बशर्ते भूख का इंतजाम भी  किया जाए ताकि लाखों की तादाद में पलायन कर चुका ग्रामीण और रोज कमाने खाने वाले इस कठिन दौर को गुजार सकें।
रही बात छूट की या इलाके जोन में बांटने की तो यह नहीं भूलें  कि सीमाएँ तो कड़ाई के बीच भी लाँघी गई और जा रही है जिसके दुष्परिणाम भी सामने हैं।  ऐसे में कानून की सख्ती और इंसानी सजगता के बीच सेहत की खातिर कड़ा लॉकडाउन कुछ हफ्ते और जरूरी है ताकि कोरोना की टूटती दिख रही चेन फिर न जुड़ पाए और तभी प्रधानमंत्री का आव्हान जान है तो जहान है सार्थक हो पाएगा।
(लेखक-ऋतुपर्ण दवे )

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