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(कहानी) कोई रोना नहीं - कोरोना 

(कहानी) कोई रोना नहीं - कोरोना 

सच कहूँ मित्र! मैं तो भारत जैसे देश में टिक ही नहीं पाऊँगा, बहुत जल्दी यहाँ-से चला जाऊँगा, मैं जानता हूँ कि आप सभी भी यही चाहते हैं कि मैं जल्दी चला जाऊँ, मुझे अपना काल समझते हो; मैंने काम ही ऐसा किया है, कि आप मुझे अपना काल समझोंगे ही, पर मैं काल तो हूँ साथ में.. ..
मैं विश्वविजय की कामना लेकर आपके देश आया था, पर यहाँ से हारकर जा रहा हूँ, क्योंकि आपका देश एक है, यहाँ के लोग एक है, यहाँ के नेता एक है, यहाँ का प्रधानमंत्री बहुत ही सूझबूझ और मानवीय मूल्यों से जुड़ा हुआ व्यक्ति है, यहाँ सभी धर्म के लोग एक है, अनेक भाषा है पर भाव एक है, यहाँ से हारकर जा रहा हूँ मैं.. ..
एक  मनुष्य के शरीर में कोरोना प्रवेश करता है। वहाँ पहुँचते ही साथ उसका सामना खाँसी, जुकाम, बुखार, डायबिटीज और न जाने, कितने प्रकार के वायरसों से होता है.. ..। हेलो दोस्तो! मैं हूँ कोरोना। मैंने सुना है आप लोग मनुष्यों के ऊपर वार करते हो, और जल्दी ही हारकर वापस आ जाते हो। तुम लोग मेरा साथ दो, तो हम सब ऐसा वार करेंगे कि मनुष्य कभी उस वार का उत्तर नहीं दे पायेगा। वहीं सुषुप्त अवस्था में बैठा मलेरिया का वायरस कहता है - हे कोरोना! ये भारत है, तुम गलत देश में आ गए हो। तुमने यहाँ के शासक/सेवक का नाम सुना है। कोरोना कहता है - हाँ! सुना तो है, कुछ देशों में चर्चा हो रही थी, इंडिया में कोई मोदी नाम का एक शक्तिशाली शासक है, जो जनता का भी प्रिय है और पर्यावरण का भी प्रिय है; यहाँ तक कि उसे विश्व के कई के लोग भी प्यार करते हैं। मलेरिया वायरस कहता है - तब तुम फिर भी यहाँ आ गए। हाँ! आ तो गए, कोरोना ने कहा, और देखो! यहाँ आते ही साथ मैंने कितने मनुष्यों को अपने कब्जे में ले लिया? पर .. ..कोरोना कहते-कहते रूक गया। मलेरिया पूछता है - पर.. .. पर का क्या मतलब? मेरे प्यारे मलेरिया! मैं यहाँ बहुत दिनों से हूँ, पर मुझे कोई खास उपलब्धि नहीं हुई है, कोरोना ने कहा। मलेरिया कहता है - होगी भी नहीं; बहुत जल्दी भागना पड़ेगा तुमको यहाँ-से। जानते हो ये भारत देश है, यहाँ के लोग विश्वकल्याण की भावना भाते हैं, यहाँ के लोग जीवमात्र के प्रति दया का भाव रखते हैं; यहाँ विश्वविजेता सिकंदर भी आया था, अपने मुँह की खाकर वापस चला गया था, और उसने विश्वविजेता का सपना यही से त्याग दिया था, यहाँ पुर्तगाली आये, मुगल शासक आये, अंग्रेज आये और न जाने, कितने लोगों ने भारत देश नष्ट करने की सोची? पर ये देश संघर्षशील है, सबसे ऊपर उठ जाता है। यहाँ बहुत सारे धर्म है, जातियाँ है, पर अभी देख रहे हो न, सारी जाति और धर्म एक हो गए। यहाँ पर अनेक पार्टियाँ है, सत्ता के लिए लड़ती है, पर आज सारी पार्टियाँ सत्तासुख भूलकर अपने देश भारत के लिए एक हो गयी है, यहाँ तुम्हारी ज्यादा दिन ज्यादती नहीं चलेगी। मलेरिया की बातें सुनकर, कोरोना का उत्साह पस्त पडऩे लगा; वह बड़े धीमे शब्दों में बोला - हाँ! ये तो मैं भी जानता हूँ, मैंने भी भारत के बारे में यही सुन रखा है; फिर भी मित्र मलेरिया! क्या तुम जानना नहीं चाहोगे? मैं भारत क्यों आया? बिल्कुल जानना चाहूँगा कि तुम्हारी क्या मंशा है भारत आने के पीछे? मलेरिया ने कहा। भारत के लोग अच्छे है, वे अहंकारी भी कम है, वे धार्मिक भी है परन्तु यहाँ के लोगों ने प्रकृति को बहुत नुकसान पहुँचाया है, यहाँ के लोग अपनी अच्छी संस्कृति को छोडक़र दूर विदेशों की संस्कृति को अच्छा मानकर उसे अपनाने लगे हैं, जबकि आपने देखा होगा कि आपकी नमस्ते करने की अच्छी संस्कृति को मैंने पूरे विश्व में लागू करवा दिया। यहाँ के लोग अब नमस्ते, जुहार, राम-राम, सीता-राम, जयश्रीकृष्ण, जयरामजी, जयजिनेन्द्र, सतश्रीअकाल, सलामबालेकम आदि को बोलने में हिचकने लगे हैं, मिलने पर हाय! हेलो! हाथ मिलाना, गले मिलाना आदि-आदि करने लगे हैं, आपके यहाँ तो चरण छूने की परम्परा थी, नमस्कार करने की परम्परा थी, सब बदलते जा रहे हो; प्रकृति से कितना खिलवाड़ कर रहे हैं आप लोग, आप लोगों ने महिलाओं के प्रति अपनी संवेदनशीलता खत्म कर दी है, आप लोगों ने बच्चों से अपराध कराना प्रारंभ कर दिए हैं, आप लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं कि अपने परिवार को भी थोड़ा-सा समय नहीं देते हो; सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब आपके देश का राजा/शासक/सेवक इतने अच्छे हैं और उन्होंने जो आप सभी के हित के लिए नियम बताये हैं, उन पर चलना भी नहीं चाहते हो.. ..??? मैं कल ही देख रहा था, अभी भी बहुत सारे लोग मॉनिंग वॉक पर जा रहे हैं, बहुत सारे लोग मोहल्ले के चबूतरों पर बैठे हैं, बहुत सारे लोग मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में जाने की जिद कर रहे हैं, बहुत सारे तो एक घर में इक_े होकर ताश खेल रहे हैं, पतंग उड़ा रहे हैं, आपस में एक-दूसरे के घर जा रहे हैं, लड़ भी रहे हैं; मेरे मित्र मलेरिया! तुम थोड़े देर के लिए मानव शरीर में जाते हो, और जल्दी ही वापस चले आते हो। सच कहूँ तो मित्र! मैं तो आना ही नहीं चाहता था, मैं क्यों किसी को मारुँ? पर आप देख रहे हैं न, यहाँ लोग कितने अनुशासनहीन हो गए हैं? मंै कसम खाकर कहता हूँ - जो लोग अपने घरों में है, सोशल डिस्टेंस बनाये हुए हैं, जो साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं, जो हाथ नहीं मिला रहे हैं नमस्कार कर रहे हैं, जय जिनेन्द्र बोल रहे हैं, जयरामजी बोल रहे हैं जयश्रीकृष्ण बोल रहे हैं, सलाम बोल रहे हैं और सत्श्री अकाल बोल रहे हैं, मैं तो उन तक जाऊँगा ही नहीं; जो छींकते समय रूमाल लगाए हुए हैं, जो खाँसी के समय रूमाल लगाये हैं, जो थोड़ी-सी भी ऐसे लक्षणों को होने पर देवतुल्य डॉक्टर को सूचना दे रहे हैं, जो मंदिर जाने की जिद नहीं कर रहे हैं, घर में बैठकर ही धर्म ध्यान कर रहे हैं, जो मस्जिद में जाकर नमाज पढऩे की जिद नहीं कर रहे हैं, जो बिना किसी आवश्यक काम के घर के दरवाजे पर भी नहीं जा रहे हैं, मैं ऐसे लोगों के पास बिल्कुल नहीं जाऊँगा। ऐसे लोग मुझसे डरे न। आपके देश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा - कोई रोड़ पर न निकले, अब मैं कहता हूँ कि कोई रोओ न.. .. मैं हूँ कोरोना; बस नियमों को मान लेना.. ..। सच कहूँ मित्र! मैं तो भारत जैसे देश में टिक ही नहीं पाऊँगा, बहुत जल्दी यहाँ-से चला जाऊँगा, मैं जानता हूँ कि आप सभी भी यही चाहते हैं कि मैं जल्दी चला जाऊँ, मुझे अपना काल समझते हो; मैंने काम ही ऐसा किया है, कि आप मुझे अपना काल समझोंगे ही, पर मैं काल तो हूँ साथ में.. .. आपके पर्यावरण की शुद्धता, नदियों की शुद्धता, परिवार में आपसी प्रेम, देश के नेताओं में एकजुटता, सभी में धर्मों में एकजुटता, लोगों के मदद करने के जज्बे को और न जाने, कितने ही ऐसे अवसर आपके सामने लेकर आया हूँ.. .. हाँ! मैं दण्डित कर रहा हूँ, और करूंगा भी.. .. अगर आपने अपने देश की बात नहीं मानी.. .. आपने नियमों को तोड़ा.. ..जब आप नियम से चलेंगे.. .. तो देखना! मैं आपके देश को बहुत सुंदर-से-सुंदर बनाकर चला जाऊँगा, फिर आप मुझे काल के रूप में तो याद रखोगे ही सही, पर कभी मेरी प्रशंसा भी कर लिया करोगे कि कोरोना.. .. अच्छा काम करने से भी कोई रोक नहीं पाया। 
मैं विश्वविजय की कामना लेकर आपके देश आया था, पर यहाँ से हारकर जा रहा हूँ, क्योंकि आपका देश एक है, यहाँ के लोग एक है, यहाँ के नेता एक है, यहाँ का प्रधानमंत्री बहुत ही सूझबूझ और मानवीय मूल्यों से जुड़ा हुआ व्यक्ति है, यहाँ सभी धर्म के लोग एक है, अनेक भाषा है पर भाव एक है, यहाँ से हारकर जा रहा हूँ मैं.. .. फिर प्रकृति के नियमों को मत तोडऩा.. ..मुझे वापस आने के लिए मजबूर मत करना, आपका देश और आप सभी बहुत अच्छे है, मैं आपको नुकसान नहीं पहुँचाना चाहता हूँ। 
(लेखक-डॉ. आशीष जैन आचार्य)

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