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(चिंतन-मनन) अहंकार से ज्ञान का नाश

(चिंतन-मनन) अहंकार से ज्ञान का नाश

अहंकार से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है। अहंकार से ज्ञान का नाश हो जाता है। अहंकार होने से मनुष्य के सब काम बिगड़ जाते हैं। भगवान कण-कण में व्याप्त है। जहाँ उसे प्रेम से पुकारो वहीं प्रकट हो जाते हैं। भगवान को पाने का उपाय केवल प्रेम ही है। भगवान किसी को सुख-दुख नहीं देता। जो जीव जैसा कर्म करेगा, वैसा उसे फल मिलता है। मनुष्य को हमेशा शुभ कार्य करते रहना चाहिए।   
कभी किसी को नहीं सताओ : धर्मशास्त्र  के श्रवण, अध्ययन एवं मनन करने से मानव मात्र के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सद्भावना एवं मर्यादा का उदय होता है। हमारे धर्मग्रंथों में जीवमात्र के प्रति दुर्विचारों को पाप कहा है और जो दूसरे का हित करता है, वही सबसे बड़ा धर्म है। हमें कभी किसी को नहीं सताना चाहिए। और सर्व सुख के लिए कार्य करते रहना चाहिए।   
गुप्तदान महादान : मनुष्य को दान देने के लिए प्रचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि दान में जो भी वस्तु दी जाए, उसको गुप्त रूप से देना चाहिए। हर मनुष्य को भक्त प्रहलाद जैसी भक्ति करना चाहिए। जीवन में किसी से कुछ भी माँगो तो छोटा बनकर ही माँगो। जब तक मनुष्य जीवन में शुभ कर्म नहीं करेगा, भगवान का स्मरण नहीं करेगा, तब तक उसे सद्बुद्धि नहीं मिलेगी।  
मृत्यु से कोई नहीं बच पाया : धन, मित्र, स्त्रि  तथा पृथ्वी के समस्त भोग आदि तो बार-बार मिलते हैं, किन्तु मनुष्य शरीर बार-बार जीव को नहीं मिलता। अत: मनुष्य को कुछ न कुछ सत्कर्म करते रहना चाहिए। मनुष्य वही है, जिसमें विवेक, संयम, दान-शीलता, शील, दया और धर्म में प्रीति हो। संसार में सर्वमान्य यदि कोई है तो वह है मृत्यु। दुनिया में जो जन्मा है, वह एक न एक दिन अवश्य मरेगा। सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक मृत्यु से कोई भी नहीं बच पाया।  
 

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