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दो पाटन के बीच में प्रवासी मजदूर

दो पाटन के बीच में प्रवासी मजदूर

 
एक शेर झरने में पानी पी रहा था, वह ऊपर की ओर था और उसके नीचे तरफ एक बकरी पानी पी रही थी। शेर ने बकरी से कहा तुमने मेरा पानी जूठा कर दिया !इस पर बकरी बोली दादा में तो नीचे तरफ हूँ तो कैसे पानी जूठा हुआ। इस पर शेर बोला नहीं एक बार तुम्हारी माँ ने मेरे ऊपर से पानी पिया था और शेर ने बहाना बनाकर बकरी को खा लिया !
इसी प्रकार मुंबई के बांद्रा या गुजरात के सूरत में जो कल भीड़ इकठ्ठी हुई उसमे राज्य और केंद्र सरकार दोषी हैं पर जनता तो पिस रही हैं। कारण १३ अप्रैल को केंद्र सरकार ने क्यों यह घोषणा की क़ि १४ तारीख से रेल चलाई जाएँगी ! इस कारण उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल आदि के मजदुर उस प्रत्याशा में एकत्रित होकर बाहर निकल आये। 
एक बात जरूर ध्यान देने क़ि हैं क़ि लाखों मजदूरों को सरकारों द्वारा शरण दिया गया हैं, क्या वहां पर समुचित व्यवस्थाएं हैं, संभवतः नहीं होंगी, जैसी जाकारी मिल रही हैं वहां पर कोरोना सम्बन्धी नियमों का पालन होना असंभव होगा, कारण सामूहिक निवास, सामूहिक साधन प्रसाधन और भोजन क़ि दुर्व्यवस्था का होना इस कारण वे स्थान भी जोखिम भरे स्थान हैं। 
यहाँ पर राज्य सर्कार और केंद्र सरकार आपस में अपनी सरकार को बचाने और महाराष्ट्र क़ि सरकार को दोषारोपित कर रही हैं। राज्य सरकार क़ि चूक का मुख्य कारण केंद्र सरकार द्वारा १४ अप्रैल से रेल सेवा शुरू करना था दूसरा अप्रवासी मजदूरों को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा हैं। सरकार कितने दिनों तक लाखों लोगों को खाना खिलाने क़ि व्यवस्था नहीं कर सकती रोजगारी की अनिश्चितता, भोजन की याचना और मौलिक सुविधाओं का आभाव जीते जी नरक के समान हैं। 
मर यहाँ भी रहे हैं और घर जाकर मरेंगे, इतना तय हैं। इस समय केंद्र सरकार विचार करके जहाँ जितने अप्रवासी मजदुर, छात्र फंसे हैं उनको जो भी उचित साधनों से भेज दे जिससे स्थानीय स्तर पर होने वाली अव्यवस्थाओं से मुक्त होकर सरकारें निश्चिन्त हो जाएँगी। अन्यथा भूख के कारण कहीं कहीं पर लूट खसोट न होने लगे और सरकार को अन्य व्यवस्थाओं से जूझना न पड़े। 
घर का प्रेम बहुत अधिक होता हैं और यहाँ पर भी पराधीनता का जीवन जी रहे हैं। यहाँ पर भी संक्रमण के अवसर भी बहुत हैं। इस असंतोष को दूर करने एक बार मध्य मार्ग निकाल कर मुक्त हो। 
(लेखक- डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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