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(विचार मंथन)  6 साल के अंतराल में मोदी और मनमोहन राज की तुलना?

(विचार मंथन)  6 साल के अंतराल में मोदी और मनमोहन राज की तुलना?

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ज्यादा अंतराल नहीं हुआ। किंतु वर्तमान स्थिति में दोनों के कार्यकाल का तुलनात्मक अध्ययन शुरू हो गया है। पहली बार किसी राष्ट्राध्यक्ष के इतनी कम अवधि के कार्यकाल मैं पूर्व राष्ट्राध्यक्ष के कार्यकाल से तुलना होना आश्चर्यजनक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 वर्ष पुराने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के तुलना वर्तमान से कर रहे थे। अब मात्र 6 साल के बाद देश में मनमोहन सिंह के कार्यकाल की तुलना मोदी के कार्यकाल से की जा रही है।
2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे। उसके बाद से देश ने बड़ी तेजी के साथ आर्थिक प्रगति की ओर कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था। 2008 की अमेरिका की आर्थिक मंदी के बाद सारे विश्व में जब हाय तौबा मची थी। उस समय मनमोहन सिंह ने भारत में इसका असर ज्यादा नहीं पड़ने दिया। बड़ी कुशलता के साथ उन्होंने अर्थव्यवस्था को संभाला। जिसके कारण अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मनमोहन सिंह की तारीफ करते हुए, उन्हें दुनिया का बेहतर अर्थशास्त्री और अपना गुरु बताया था।
2009 में ही जब अमेरिका की आर्थिक मंदी के बाद सारी दुनिया में आधा पापी मची हुई थी। उस समय भारत में एच1 और एन1 वायरस ने हमला किया था। इस बीमारी से अट्ठारह सौ लोगों की जान गई थी। 20000 से अधिक लोग संक्रमित हुए थे। कोरोनावायरस के संक्रमण के बाद मनमोहन सरकार में 2009 में फैले एच1 वायरस को कंट्रोल किया था। उसकी कोई चर्चा उस समय नहीं हुई। कोई भय का वातावरण नहीं बना। कब संकट आया और निकल गया। इसको लेकर दोनों प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल की चर्चा की जा रही हैं। मनमोहन के समय गुलाम नबी आजाद स्वास्थ्य मंत्री थे। वह लगातार मुख्यमंत्रियों एवं विभिन्न राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों से से बात कर रहे थे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से लगातार विचार-विमर्श करके निर्णय ले रहे थे। जिसके कारण 2009 के स्वाइन फ्लू के इस भीषण वायरस जो सुअरों से फैला था। यह बीमारी भी एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैली थी। इसने कई देशों में तबाही मचाई थी। भारत ने बिना किसी बड़े जान माल के नुकसान हुए, उसे बेहतर ढंग से कंट्रोल कर लिया गया।
कोरोनावायरस के संक्रमण सं संबंधित सारे निर्णय प्रधानमंत्री कार्यालय से हो रहे हैं वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन डॉक्टर होते हुए भी रोजाना ब्रीफिंग नहीं कर रहे हैं। उनके स्थान पर प्रधानमंत्री कार्यालय के चहेते अधिकारी लव अग्रवाल ब्रीफिंग करते हैं। मुख्यमंत्रियों के साथ भी वीडियो कांफ्रेंसिंग प्रधानमंत्री स्वयं करते हैं। इतने बड़े कोरोनावायरस के संकट में स्वास्थ्य मंत्री की भूमिका एक तरह से ना के बराबर है। भारत में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 17137 पर पहुंच गई है। 556 मौतें हो चुकी हैं। रोजाना कोराना वायरस संक्रमण के मरीज देशभर के अधिकांश राज्यों से सामने आ रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने का तरीका बिल्कुल अलग है। वह स्वयं निर्णय लेते हैं, और निर्णय के अनुसार उसका क्रियान्वयन कराने के लिए उसमें अपनी टीम झोंक देते हैं। भारत में जब एक दिन और 21 दिन का संपूर्ण लाकडाउन घोषित किया गया। तब इसकी सूचना राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी नहीं थी। घोषणा होने के बाद सारे राज्यों को इसकी जानकारी लगी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने इस बात पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा था, कि यदि प्रधानमंत्री इस निर्णय के पूर्व मुख्यमंत्रियों से उनकी राय जान लेते, तो लाक डाउन को और बेहतर तरीके से क्रियान्वयन किया जा सकता था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली पूर्व के प्रधानमंत्रियों की तुलना में बिल्कुल अलग है। 2016 में जब उन्होंने नोटबंदी की घोषणा की तब भी केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों यहां तक कि वित्त मंत्री को भी इसकी सूचना नहीं थी। कुछ इसी तरह की स्थिति सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर थी सर्जिकल स्ट्राइक जब पूरी हो गई। तब इसकी सूचना केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों और राष्ट्र को प्राप्त हुई। जीएसटी को लेकर भी जिस तरह प्रधानमंत्री सचिवालय ने ताबड़तोड़ फैसले कर उसे लागू कराया। उस समय भी आर्थिक विशेषज्ञ और कारोबारियों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। परिणाम स्वरूप जीएसटी कानून देश का पहला ऐसा कानून है। जिसमें २ साल के अंदर 600 से ज्यादा बार नियमों को संशोधित करना पड़ा। इसके पहले किसी कानून को लागू कराने में इतने ज्यादा संशोधन नहीं हुए हैं कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए लाक डाउन अवधि के नुकसान या फायदे के संबंध में कोई दूरदर्शिता नहीं होने के कारण, इसके जो परिणाम मिलने चाहिए थे। उसको लेकर अब प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गए हैं। देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जिसके कारण पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को याद किया जाने लगा है।
1991 में जब देश की अर्थव्यवस्था बहुत खराब थी। सोना गिरवी रखकर पेट्रोलियम का आयात करना पड़ा था। उस समय वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया था। इसी समय पर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की सलाह पर काम करते हुए, आर्थिक सुधार की जो नई शुरुआत की थी। उसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार देखने को मिला। उसके बाद से 2014 तक विभिन्न परिस्थितियों में भी देश की आर्थिक स्थिति हर साल बेहतर होती रही। 2004 में मनमोहन सिंह ने नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल की स्थापना की थी। जो पिछले 16 वर्षों में अपनी उपयोगिता समय-समय पर साबित करती रही है। कोरोनावायरस के समय भी यही संस्था आपदा से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। मनमोहन सरकार ने 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया था। मोदी सरकार को भी कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए इस कानून का बहुत बड़ा सहारा मिला है। राष्ट्रीय बीमा योजना की शुरुआत 2008 में मनमोहन सिंह ने की थी। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयुष्मान भारत योजना के रूप में इसका आकार बढ़ाने का काम किया है।
आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह से विफल साबित हो रही है। विशेषज्ञों की माने तो वर्तमान प्रधानमंत्री जिस तरह से साहसी बनकर निर्णय करते हैं। बड़ी तेजी के साथ उन्हें लागू करने का प्रयास करते हैं। इसके कारण सबसे ज्यादा गड़बड़ियां उत्पन्न हुई है। आर्थिक व्यवस्था में आर्थिक विशेषज्ञों की राय लेकर उसके बारे में व्यापक जानकारी लेते हुए यदि वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए निर्णय किए जाते तो भारतीय अर्थव्यवस्था आज दुनिया में सबसे बेहतर अर्थ व्यवस्था होती। लाक डाउन का जो निर्णय मात्र 3 घंटे की समयावधि में लागू कराया गया। यदि उसे 4 दिन का समय देकर लागू कराया जाता तो आज देश के आर्थिक हालात कुछ और होते लाक डाउन लागू कराने  में की गई जल्दबाजी के कारण देश में जिस तरीके की अफरा-तफरी मची है। उसके कारण देश की अर्थव्यवस्था बद से बदतर हालत में पहुंच गई हैं। इसी तरह केंद्र सरकार द्वारा जो राहत पैकेज घोषित किए जा रहे हैं। उससे कोई राहत अर्थव्यवस्था को सुधारने में मिलेगी इसमें संदेह है। उल्टे जो उद्योग और व्यापार चल रहे हैं, उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा। वर्तमान केंद्र सरकार बड़े सतही अंदाज में जिस तरह बैंकर्स अपनी पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए निर्णय करते हैं। लगभग वही सोच केंद्र सरकार ने बना रखी है। उद्योगों और कामगारों के लिए केंद्र सरकार द्वारा जो राहत पैकेज दिए जा रहे है। यदि वह 0 फ़ीसदी ब्याज पर दिए जाते तो सरकार को ब्याज के रूप में जो राशि खर्च करनी पड़ती वह बहुत कम होती। इससे अर्थव्यवस्था को सुधारने में मदद मिलती। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार जिस घबराहट और जल्दबाजी में निर्णय किए जा रहे हैं। उससे एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच अर्थव्यवस्था को लेकर ना केवल भारत में वरन, सारी दुनिया में दोनों का कार्यकाल को लेकर चर्चा हो रही है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से यह सरकार सलाह भी नहीं ले रही है। इसे सारी दुनिया आश्चर्य के रुप में देख रही है। 
(लेखक-सनत कुमार जैन)

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