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हिन्दुस्तान में उपेक्षित बाल फिल्में 

हिन्दुस्तान में उपेक्षित बाल फिल्में 

हिन्दुस्तान में भले ही गरीबी निरक्षता और अधिक आबादी जैसी तमाम समस्याए है मगर विश्व कें सबसे ज्यादा फिल्में भी हमारे मुल्क में ही बनती है। बावजूद इसके हमारे पास बच्चों को दिखाने के लिए उम्दा बाल फिल्में नहीं है जबकि  सर्वाधिक जनसंख्या वाले हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा संख्या बच्चों की ही है । एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में तकरीवन 32 करोड से भी ज्यादा बच्चे है।यह विडंबना ही है कि इनके स्वस्थ मनोरंजन की हमारे मुल्क में माकूल व्यवस्था नही है। कडवा सच तो यह है कि उन्हे जो भी फिल्म देखने को मिलती है वह उसी को देखने लगते है। इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चे व्यस्को के लिए बनी अश्लील  सेक्सी फिल्मो का वेहिचक होकर छककर मजा ले रहे हैं।यही वजह है कि व्यस्को के लिए बनी फिल्मों के डायलाक बच्चों को जबानी याद है। 
बालक -बालिकाओं के मस्तिश्क को व्यापक द्धश्टिकोण की ओर मोडने में बाल साहित्य की अहम भूमिका रहती है। वैसे भी बच्चो के मस्तिश्क को पुश्ट व स्वस्थ बनाने के लिए सिनेमा  का माध्यम वेहतर साधन है; जो गहरी छाप छोडता है। सच तो यह है अच्छा बाल  सिनेमा बिना अच्छे बाल साहित्य के नही बनाया जा सकता । एक मायने में बाल फिल्म वह फिल्म है जो बच्चो के लिए अच्छी मजेदार मनोरंजक और शिक्षाप्रद हो और किसी भी पहलू से हानिकारक न हो । 
विश्वभर में जो बाल फिल्में बनाई जाती है वे इन दो स्तरों की द्धश्टि से ही बनाई जाती है। हमारे मुल्क में लेखक अंगेजीका अन्धानुकरण करते हैं। लेकिन वे हिन्दी सहित भारतीय भाशाओं की ओर भी ध्यान दे तो वेहतर होगा । अंग्रेजी माध्यम से पढने वाले बच्चों का मानसिक स्तर और ज्ञान कुछ उंचा होता है। इसलिए इनके अलावा हमें देश के सभी बच्चों को खासकर औसत बच्चो को ध्यान में रखना होगा । तभी बाल फिल्मा की सार्थकता है।  
बच्चों को कम सम्वाद शैली वाली फिल्में नाटक कार्टून फिल्में जानकारी देने वाली फिल्में तथा प्रकृति वाली फिल्में अधिक प्रिय होती है।लेकिन हम यह जरूर कहेगे कि सुविचारित सुनियोजित और अच्छी फिल्म किसी भी विधा में हो वह कसौटी पर खरी उतरेगी दूरदर्षन पर भी बाल फिल्मो को बढावा दिया जाना चाहिए । इस द्वश्टि से किसी एक भाशा की  वेहतरीन बाल फिल्मो का अन्य भाशा में डबिग न करने प्रथक -प्रथक क्षेत्रीय  भाशाओ में उन्हें स्वतंत्र रूप से स्थानीय परिवेश को देखकर बनाया जाना वेहतर होगा । 
शहर कस्बे और गाव में बाल फिल्में दिखाई जाना चाहिएं और बच्चों की प्रतिक्रिया देखकर फिल्मों में उत्तरोतर सुधार व नये प्रयोग किए जाते रहने चाहिए । कडवा सच तो यह हैं कि हमारे मुल्क में बच्चों के लिए हंसने -खेलने और मनोरंजन के साधन बहुत कम है। इस बात पर अधिक गौर किया जाना चाहिए कि उन्हें क्या देखना सबसे ज्यादा पंसद है।बहुत छोटे बच्चे रंगीन फिल्में देखना सबसे ज्यादा भाता है। वे सुनने के बजाय देखने में अधिक दिलचस्पी रखते है। वे जादू ;फंतासी ;तिलिस्म, कार्टून ,कठपुतली,जानवरों की कथाओं तथा सहदयता ,प्यार और सच्चाई केप्रसंगों में अधिक रस लेते है  
इग्लैड और रूस बाल फिल्मों की क्रान्ति वाले अगुआ देश रहे हैं। ब्रिट्रिस फिल्में मुगल लार्ड रैक पहला व्यकित था,जिसने बच्चों के लिए विशेष चित्रो की अहमियत को समझा और उसे मूर्तरूप दिया 1930 में वाल्ट डिस्ने ने अमेरिका में जानवरों की जीवन्त फिल्मों का निर्माण कर तहलका मचाया  ।ये फिल्में दुनिया भर में लोकप्रिय और प्रंसिद्व हुई क्योंकि इसने भाशा की बाधा को तोड डाला था। इसके पश्चात रूस ,कनाडा और जर्मनी में बाल फिल्मों की बाढ सी आ गयी।,द्वश्य तकनीक कथा कहने की सशक्त शैली सिद्वध हुई ।यह लहर नीदरलैण्ड और योरोप तक चलतै गई। कुछ फिल्में ऐसी भी हैं जिन्हें बडे और बच्चे दोनो ही पंसद करते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका की स्टार वार्स और इटृस ए मैड,मैडवर्ल्ड नामक प्रसिद्व फिल्में बच्चो और बडों द्वारा काफी पंसद की गई।इसी तरह हिन्दी की परिचय फिल्म ने भी खूब ख्यति पाई। 
वैसे तो विदेशों में बाल फिल्में काफी बडी संख्या में बनाई गई है लेकिन उन सबके नाम का यह जिक्र करना उचित नही होगा ।लेकिन उनमें से कुछ के नामो का जिक्र में यह अवश्य करना चाहूगा । फ्रांस में बच्चों के लिए वेहतरीन  फिल्में का निर्माण किया जाता है। यहीं की ही एक प्रसिद्व फिल्म रही है मोनस्युर पापा ।इसी तरह जापान की बहुचर्चित जीवन्त फिल्म रही है एडवेचर्स आफ ए पोलर कब । चार्ली चैपलिन और लौरेल हार्डी की फिल्मों से बच्चों का बहुत मनोरंजन होता है। ओलीवर टिवस्ट भी एक अच्छी बाल फिल्म रही है। द लव वग और हर्बी राइडूस अगेन द चैम्प भी मनोरंजक फिल्मों में गिनी जाती है।वाल्ट दिस्ने सुक्ष्मद्वश्टि वाले प्रतिभा संपन्न् व्यकित थे और उन्होने डिस्नेलैण्ड की रचना करके और उम्दा फिल्में बना कर दुनिया के बच्चों की बहुत बडी सेवा की है। इसके लिए बच्चे उनके ऋणी रहेगे । उनकी बाल फिल्में इसी लिए प्रसिद्व हुई उन्हे फिल्म वनाते समय स्मरण रहता था कि बचपन में उन्हें कौन सी चीजे किस तरह अच्छी लगती थी। इस वजह से वे उसी मानसिक स्तर से बारीकियों को लेकर फिल्में बनाते थे और रहस्य रोमांच को लेकर बच्चो को आहलादित करते थे हमारे यहां यह पैनी और सूक्ष्म द्वश्टि वी शान्ताराम में थी।हिन्दुस्तान में सर्वप्रथम उनके ही द्वारा बाल फिल्मों का श्रीगणेश किया गया था।  
1929 में पहली बाल फिल्म रानी साहिबा बी शान्ताराम द्वारा बनाई गई थी ।जो कि एक कामेडी फिल्म थी ,जिसकी कथा एक सात साल के बच्चे बजर बटूटू के इर्द गिर्द घूमती हे। 1955 में उन्होने तूफान और दिया का निर्माण किया जिसमें ग्यारह बर्शीय लडके और चौदह बर्शीय बहन को समाज से जुझते हुए दिखाया गया इसमें बहन का रोल नन्दा ने अदा किया था । शान्ताराम ने बच्चो के लिए फूल और कलिया फिल्म का भी निर्माण किया था।हालाकि तपन सिन्हा की कावुली वाला राजकपूर की अब दिल्ली दूर नही और सत्यजीत रे की गूपी गाईने बागा वाइने बगला ने भी  काफी धूम मचाई थी । 
कुछ अन्य बाल फिल्में भी काफी चर्चित रही जिसमें प्रमुख है-रानी और लाल परी जाग्रति,नौनिहाल ,अनमोल तस्वीर सफेंद हाथी,जादू का शंख ,सजरे फूल प्रमुख है।इन सभी फिल्मों में हिन्दुस्तानी सिने जगत के नामचीन नायक -नायिकाओं ने अभिनय किया है।तेलुगू की गंगा भवानी बंगली की सबुज दीपेर राजा, कन्नड की हगेयडा मकालु अपने दौर की चर्चित फिल्म रही हमारे मुल्क में इस दिशा में क्रान्ति तभी लाई जा सकती है जब फिल्म निर्माता इस दिशा में ठोस पहल करे और ज्यादा से ज्यादा बाल फिल्मो ंका निर्माण करे इतना ही काफी नही छवि ग्रह और मल्टीफलेक्स के संचालको को भी बाल फिल्मों के प्रदर्षन का तरजीह देना होगा।   
(लेखक-मुकेश तिवारी )

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