
बर्लिन । कोरोना संक्रमण के मामले में जर्मनी पांचवे नंबर पर है। यहां लगभग डेढ़ लाख लोग कोरोना पॉजिटिव हैं। यह आंकड़ा चौथे नंबर के देश फ्रांस के लगभग बराबर है। हालांकि तीनों ही यूरोपियन देशों स्पेन, इटली और फ्रांस में मौत की दर के मुकाबले जर्मनी में मौत का प्रतिशत काफी कम है। यहां अब तक कोरोना के कारण 5,086 मौतें हुई हैं।
क्या वजह है कि संक्रमण दूसरे देशों की तरह तेजी से फैलने के बाद भी मृत्यु दर इतनी कम है? जर्मनी की कोरोना से जंग में जीत का श्रेय एंजेला मर्केल को दिया जा रहा है। वे राजनेता के साथ-साथ एक वैज्ञानिक की तरह भी इस वायरस को ट्रीट कर रही हैं। मर्केल के वैज्ञानिक पक्ष को कम ही लोग जानते हैं। साल 1954 में पश्चिमी जर्मनी में जन्मी मर्केल के पिता लूथरन पादरी थे। वे मार्टिन लूथर किंग के विचारों पर चलने वाले थे, जो क्रिश्चियनिटी को नहीं मानते। अलग आस्था के कारण एजेंला मर्केल के पिता पर हरदम सख्त पहरा रहा।
इसी बीच नन्ही मर्केल की पढ़ाई-लिखाई चलती रही। मर्केल की जीवनी पर काम कर रहे स्टीफन कोर्नेलियस के मुताबिक उन्होंने घर पर सख्त निगरानी के बाद भी अपना ध्यान अपनी ही पढ़ाई पर रखा। 1989 में मर्केल क्वांटम केमेस्ट्री में डाक्टरेट कर चुकी थीं। उन्होंने बतौर रिसर्चर काम की शुरुआत की थी कि तभी बर्लिन की दीवार ढहा दी गई। इस घटना के बाद मर्केल ने विज्ञान छोड़ दिया और राजनीति में आने का इरादा बना लिया। एक छोटे से राजनैतिक ग्रुप से शुरुआत कर एंगेला साल 2005 में जर्मनी की चांसलर बन गईं।
एंगेला का जर्मन सरकार के सबसे अहम ओहदे पर आना हैरानी की बात है क्योंकि वे पढ़ाई और पेशे से भी वैज्ञानिक ही रहीं। दूसरे राजनेताओं की तरह उनके पास कानून या सिविल सर्विस का कोई अनुभव नहीं था। हालांकि उनका यही वैज्ञानिक बैकग्राउंड अब पूरे देश के काम आ रहा है। 28 जनवरी को जर्मनी में कोरोना का पहला मरीज आया लेकिन हालात बिगड़ने शुरू हुए मार्च से। धीरे-धीरे देश में बंदी होने लगी। 18 मार्च को चांसलर ने देश की जनता को संबोधित किया। जर्मनी और यूरोपियन यूनियन के झंडों के बीजच बैठी मर्केल ने स्पीच में एक वैज्ञानिक की तरह सारे तथ्य दिए। साथ में यह भी कहा कोरोना काल दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का सबसे मुश्किल वक्त है।
इसके साथ ही प्रतिबंधों के बीच टेस्टिंग की तैयारी होने लगी। अपील की गई कि सार्वजनिक जगहों पर तीन से ज़्यादा लोग एक साथ नहीं रह सकते। कंप्लीट शटडाउन न होते हुए भी मर्केल की समझाइश के कारण लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया। जर्मनी ने शुरू से ही टेस्टिंग को प्राथमिकता दी। यहां जांच के लिए लोगों को अस्पताल आने की जरूरत नहीं, बल्कि यहां टेस्टिंग टैक्सियां चलने लगीं जो मर्केल के दिमाग की उपज है।
ये घर-घर पहुंचकर लोगों की कोरोना जांच करने लगी। वहां लोगों से कहा गया कि अगर आपको कोरोना के लक्षण दिखें तो घबराकर भागने की बजाए सीधे पास के अस्पताल फोन करें। वहीं से हेल्थ वर्कर आकर संदिग्ध की जांच करेंगे। आम लोगों के साथ-साथ डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के लक्षणों पर भी नजर रखी गई और हल्का सा भी लक्षण दिखने पर टेस्ट किया गया। इससे हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स भी कोरोना की चपेट में आने से बचे रहे।