YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

दो महामारी, एक कोरोना दूसरी गद्दारी 

दो महामारी, एक कोरोना दूसरी गद्दारी 

जेहन में सवाल उठ रहे हैं। कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में भारत की पराजय की कामना करने वालों, इस लड़ाई में राष्ट्र के खिलाफ षडयंत्र रचने वालों और देश में धर्म की आड़ में वैचारिक प्रदूषण फैला रहे तत्वों के साथ किस तरह निपटा जाए? कई तरह की बातें सुनने में आ रही हैं। मौजूदा कोरोना काल में वैचारिक प्रदूषण का अधिक प्रभाव दिखाई दे रहा है। कोरोना को हथियार बनाकर भितरघात की कोशिशें की जा रहीं हैं। पिछले एक माह की घटनाएं पर विचार करें, उनकी प्रकृति समझें और सूत्र तलाशें। गहरी साजिश की संभावना से इंकार करना मुश्किल होगा। बेहद आम आदमी तक आज सोचने पर विवश है। धारणा प्रबल हो रही है कि कोरोअस्त्र मान बैठी विकृत सोच को तहस-नहस कर दिया जाए। चलते-फिरते कोरोना बमों से राष्ट्र के लिए गंभीर खतरा महसूस किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि कोरोना फैलाने की कोशिश करने वालों को गोली मार देने का आदेश दिया जाए। फिलीपींस में ऐसा ही आदेश दिया गया है। एक उदाहरण मुस्लिम बहुल नाइजीरिया का सामना आया। नाइजीरिया में लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर सुरक्षा बलों ने गोली चला दी। डेढ़ दर्जन लोग मारे गए। खाड़ी देशों जैसी सख्ती लागू किए जाने की जरूरत बताई जा रही है। वहां कोरोना से यारी करने पर भारी जुर्माना लगेगा या फिर  जीवन से हाथ धोना पड़ेगा। सऊदी अरब में कोरोना फैलाने का दोषी पाए जाने पर सजा-ए-मौत का प्रावधान किया जा चुका है। न्यूजीलैंड में कोरोना संक्रमण के इस दौर में यहां-वहां थूकने वालों को 14 सालों की कैद हो सकती है। इधर भारत में देखें तो बेचैनी सी होती हैै। सख्ती की बातें हो रहीं हैं लेकिन उसकी परिभाषा और दायरा तय नहीं है। खुराफातियों के हौसले बुलंद हैं। इरादतन कोरोना ढो रहे उन्मादी-दिमाग को सिर्फ दो-चार डण्डों चिपका कर या रासुका लगाकर दुरूस्त कर पाना संभव नहीं लग रहा है। 
मुरादाबाद में मेडिकल टीम पर हमला किया गया। इसमें एक डाक्टर गंभीर रूप से घायल हुआ है। मेडिकल टीम के अन्य सदस्यों को भी चोटें आईं हैं। उनके वाहन और एम्बूलेंस को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। मेडिकल टीम पर हमले और बाद में पहुंचे पुलिस दस्ते पर पथराव की घटना में महिलाएं तक शामिल थीं। डेढ़ दर्जन लोग गिरफ्तार किए गए हैं। इससे मिलती-जुलती घटना मध्यप्रदेश के इंदौर में हो चुकी है। वहां दो महिला चिकित्सकों पर उग्र भीड़ ने हमला कर दिया था। आए दिन कोरोना वारियर्स पर हमले उन्हें अपमानित किए जाने की घटनाएं सुनने में आ रहीं हैं। डाक्टरों और नर्सों पर थूकने, उनसे झगडऩे और अश्लील हरकतें करने की घटनाएं हो चुकीं हैं। ऐसे कुछ उत्पातियों पर एनएसए के तहत कार्रवाई की गई। कुछ को जेल भेजा गया। फिर भी इस तरह की घटनाएं रुक नहीं पाईं। अब तो डाक्टरों, नर्सोँ, मेडिकल स्टाफ, पुलिस और प्रशासन के मनोबल कमजोर होने की आशंका होने लगी है। जाहिर सी बात है कि यदि डाक्टर या मेडिकल स्टाफ को हर समय असुरक्षा का भाव घेरे रहेगा तो वह भला अपना काम कैसे कर सकेगा?
सारी दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही है। हमारे यहां मुकाबला एक साथ दो महामारियों से चल रहा है। एक मोर्चे पर हम कोरोना से लड़ रहे हैं। दूसरी ओर, गद्दारों और देशद्रोहियों को नाकाम करने में हमें शक्ति लगानी पड़ रही है। कोरोना महामारी से आर्थिक चोट के साथ मानव जीवन के लिए गंभीर खतरा खड़ा हो गया है। अभी बताना मुश्किल है कि कोरोना हमारे यहां कितनी जिन्दगियां लील लेगा। इस कोरोना काल ने कुछ भ्रम भी तोड़े हैं। कई चेहरे बेनकाब हुए हैं। संदिग्ध संक्रमितों का धर्म स्थलों में छुपना, ऐसे लोगों की जानकारी होने पर भी इनकी सूचना पुलिस और प्रशासन को नहीं दी जाना, कोरोना वारियर्स पर हमले और अब लॉकडाउन को नाकाम करने की कोशिशें, क्या हमें सतर्क हो जाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं? एक खास तरह के वैचारिक प्रदूषण की कालिख उभरी है। वैचारिक प्रदूषण की गहराई देखिए। कुछ लोग राष्ट्रहित के विरूद्ध खड़े दिखाई दे रहे हैं। गद्दार और देशद्रोही ताल ठोंक रहे हैं। सोचिए, जो लोग देश में महामारी फैलने की कामना करें और जिनके इरादे अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने के हों क्या वो स्वयं किसी महामारी के विषाणु से कम हैं? ऐसे देशद्रोही धेलेभर सहानुभूति के हकदार नहीं हैं। 
मुरादाबाद की घटना के बाद एक वरिष्ठ चिकित्सक  काफी निराश दिखे। वह सवाल करते हैं, यदि डाक्टरों पर हमले किए जाएंगे तो भविष्य में कौन अपने बच्चों को चिकित्सा पेशे में भेजना चाहेगा? कोरोना महामारी के विरूद्ध जंग में अग्रिम पंक्ति में जूझ रहे डाक्टरों, नर्सों, मेडिकल स्टाफ और पुलिस एवं प्रशासन के लोगों पर हमले से तो वही बात हुई जैसे शत्रु देश से लड़ रही सेना पर उसके अपने देशवासी ही पीछे से वार करने लगें। ऐसी गद्दारी दुनिया के किसी देश में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। नि:संदेह यह फैलाए गए वैचारिक प्रदूषण से उत्पन्न उन्माद ही है? इसे पूरी ताकत से कुचलना चाहिए। जाहिल करार दे देने या उनमें से कुछ को गिरफ्तार कर लेने और रासुका लगाने मात्र से बीमारी का स्थाई इलाज संभव नहीं लगता।  इससे आगे सोचने की जरूरत है। बताइये, मुरादाबाद में मकानों की छतों से किए जा रहे पथराव से बचने के लिए पुलिस को टूटे दरवाजों का सहारा लेना पड़ा। सवाल यह है कि पुलिस ने गोली क्यों नहीं चलाई? हवाई फायर ही कर देते। कोरोना काल में बेझिझक कई बार सुना गया कि जहां जरूरी हो वहां गोली चलाने की खुली छूट पुलिस को दी जाए। लाठी भंाजना जरूरी लगे तो जमकर चमकाई जाएं। आखिर, कुछ खुराफातियों को हजारों लोगों की जान से खिलवाड़ करने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? कोरोना महामारी को इलाज दुनिया के चिकित्सा विज्ञानी तलाश ही लेंगे। बड़ी जरूरत भारत में गद्दारी महामारी का इलाज तलाशने की है।  
(लेखक-अनिल बिहारी श्रीवास्तव)

Related Posts