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अफवाहों के सौदागर बनाम् आधे खाली पेट का दर्द...!! 

अफवाहों के सौदागर बनाम् आधे खाली पेट का दर्द...!! 

अफवाहों के सौदागर देश के दुश्मन बनते जा रहे हैं। एक ओर जहाँ भारत बड़े सुनियोजित तरीके से वैश्विक महामारी कोरोना से जंग लड़ रहा है कि वहीं कुछ सिरफिरे लोगों की कारस्तानी अलग ही तरीके के हालात बनाने में जुटी हुई है। बान्द्रा, सूरत सहित अन्य जगहों से आई तस्वीरें यही इशारा है। जब वक्त सबसे ज्यादा समझदारी दिखाने का है तब फर्जी सहानुभूति के बाजीगर अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे हैं। 
यह सही है कि कई राज्यों में रोजगार और मजदूरी के लिए गए प्रवासियों का वक्त बहुत नाजुक है। तकलीफों के पहाड़ हैं। लेकिन यह भी सच है कि मुसीबत के इस दौर का आधा सफर कट गया है। लॉकडाउन-2 वास्तव में कोरोना की कड़ी को तोड़ने का अचूक रामबाण है और इसे भेदने में हुई जरा सी चूक सारे किए पर पानी फेर देगी।
दरअसल यह वक्त राजनीति का नहीं कोरोना से जंग का है और सभी को मिलकर साथ रहना होगा। समय बहुत ही संयम से काम करने का है। प्रवासियों के पलायन का जो सच सामने आया है वह देश के साथ किसी संगीन अपराध से कम नहीं। यदि बान्द्रा के कुछ स्थानीय चैनलों ने ट्रेन चलाने का झूठ फैलाया है तो भी गंभीर है और हितैषी बने तथाकथित समाजसेवियों ने सोशल मीडिया पर गलत जानकारियाँ फैलाकर निरपराध प्रवासियों को मानसिक रूप से गुमराह कर और भी जघन्यतम अपराध कर डाला। 
इंसानियत के दुश्मन ऐसे अपराधी कितने भी सूरमा हों देर-सबेर गिरफ्त में होंगे। लेकिन उनकी हरकतें इंसानियत का कितना नुकासन कर चुकी होंगी सोचकर ही रूप कांप उठती है। इन हरकतों से देश और समाज के सामने जो चुनौतियाँ हैं वह कतई माफी योग्य नहीं है। सारी दुनिया महामारी से जंग के दौर में है। विकसित और विकासशील देशों की दशा और मौत के आंकड़े डरावने हैं। दुनिया का दारोगा अमरीका तक पनाह माँग चुका है। चीन, इटली, स्पेन, फ्रान्स और न जाने कितने तथाकथित सभ्य और सेहतमंद कहलाने वाले मुल्कों की दुर्दशा सामने है। ऐसे में भारत के लिए चुनौती बहुत बड़ी है। 
सच है कि जब सामने मौत का खौफ हो तो दूर बैठा हर कोई अपनों के साथ रहना चाहता है पर यह भी सोचना होगा कि शायद पहली बार वक्त इसकी इजाजत क्यों नहीं दे रहा है? लेकिन जहाँ भी ऐसी घटनाएँ हो रही हैं उसका दूसरा पहलू भी वहाँ की सरकारों और स्थानीय प्रशासन को समझना होगा। सबसे जरूरी अप्रवासी मजदूरों या कामगारों की खुराक का ध्यान रखनाअफवाहों के सौदागर बनाम् आधे खाली पेट का दर्द...!! 
अफवाहों के सौदागर देश के दुश्मन बनते जा रहे हैं। एक ओर जहाँ भारत बड़े सुनियोजित तरीके से वैश्विक महामारी कोरोना से जंग लड़ रहा है कि वहीं कुछ सिरफिरे लोगों की कारस्तानी अलग ही तरीके के हालात बनाने में जुटी हुई है। बान्द्रा, सूरत सहित अन्य जगहों से आई तस्वीरें यही इशारा है। जब वक्त सबसे ज्यादा समझदारी दिखाने का है तब फर्जी सहानुभूति के बाजीगर अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे हैं। 
यह सही है कि कई राज्यों में रोजगार और मजदूरी के लिए गए प्रवासियों का वक्त बहुत नाजुक है। तकलीफों के पहाड़ हैं। लेकिन यह भी सच है कि मुसीबत के इस दौर का आधा सफर कट गया है। लॉकडाउन-2 वास्तव में कोरोना की कड़ी को तोड़ने का अचूक रामबाण है और इसे भेदने में हुई जरा सी चूक सारे किए पर पानी फेर देगी।
दरअसल यह वक्त राजनीति का नहीं कोरोना से जंग का है और सभी को मिलकर साथ रहना होगा। समय बहुत ही संयम से काम करने का है। प्रवासियों के पलायन का जो सच सामने आया है वह देश के साथ किसी संगीन अपराध से कम नहीं। यदि बान्द्रा के कुछ स्थानीय चैनलों ने ट्रेन चलाने का झूठ फैलाया है तो भी गंभीर है और हितैषी बने तथाकथित समाजसेवियों ने सोशल मीडिया पर गलत जानकारियाँ फैलाकर निरपराध प्रवासियों को मानसिक रूप से गुमराह कर और भी जघन्यतम अपराध कर डाला। 
इंसानियत के दुश्मन ऐसे अपराधी कितने भी सूरमा हों देर-सबेर गिरफ्त में होंगे। लेकिन उनकी हरकतें इंसानियत का कितना नुकासन कर चुकी होंगी सोचकर ही रूप कांप उठती है। इन हरकतों से देश और समाज के सामने जो चुनौतियाँ हैं वह कतई माफी योग्य नहीं है। सारी दुनिया महामारी से जंग के दौर में है। विकसित और विकासशील देशों की दशा और मौत के आंकड़े डरावने हैं। दुनिया का दारोगा अमरीका तक पनाह माँग चुका है। चीन, इटली, स्पेन, फ्रान्स और न जाने कितने तथाकथित सभ्य और सेहतमंद कहलाने वाले मुल्कों की दुर्दशा सामने है। ऐसे में भारत के लिए चुनौती बहुत बड़ी है। 
सच है कि जब सामने मौत का खौफ हो तो दूर बैठा हर कोई अपनों के साथ रहना चाहता है पर यह भी सोचना होगा कि शायद पहली बार वक्त इसकी इजाजत क्यों नहीं दे रहा है? लेकिन जहाँ भी ऐसी घटनाएँ हो रही हैं उसका दूसरा पहलू भी वहाँ की सरकारों और स्थानीय प्रशासन को समझना होगा। सबसे जरूरी अप्रवासी मजदूरों या कामगारों की खुराक का ध्यान रखना होगा। यह तबका रूखी-सूखी खाकर पेट भरने और परिवार को पालने के लिए ही दूसरे प्रदेश से आया है और वही एक वक्त आधा पेट खाए बिलबिला कर रह जाए तो मार दोहरी होगी! इन्हें जरूरत के हिसाब से दो वक्त का खाना तो नसीब हो न कि सरकारी मीनू से क्योंकि सूरत से आई तस्वीरों ने यही सच दिखाया।
जहाँ भी बड़ी तादाद में अप्रवासी फँसे हों वहाँ उनको मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाया, बुझाया जाए और दाल-रोटी का मुकम्मल इंतजाम हो। जिम्मेदार अफसरों की निगरानी हो ताकि भूख की ऐसी तस्वीरें दोबार न दिखे क्योंकि देश में पर्याप्त अनाज है। यह वक्त तमाम प्रदेशों में अप्रवासियों के लिए बड़े पहाड़ सा जरूर है लेकिन सभी राज्य सरकारों को हनुमान बन पहाड़ हाथ पर उठाना ही होगा ताकि परीक्षा की मुश्किल घड़ी भी चुपचाप कट जाए। 
(लेखक-ऋतुपर्ण दवे) होगा। यह तबका रूखी-सूखी खाकर पेट भरने और परिवार को पालने के लिए ही दूसरे प्रदेश से आया है और वही एक वक्त आधा पेट खाए बिलबिला कर रह जाए तो मार दोहरी होगी! इन्हें जरूरत के हिसाब से दो वक्त का खाना तो नसीब हो न कि सरकारी मीनू से क्योंकि सूरत से आई तस्वीरों ने यही सच दिखाया।
जहाँ भी बड़ी तादाद में अप्रवासी फँसे हों वहाँ उनको मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाया, बुझाया जाए और दाल-रोटी का मुकम्मल इंतजाम हो। जिम्मेदार अफसरों की निगरानी हो ताकि भूख की ऐसी तस्वीरें दोबार न दिखे क्योंकि देश में पर्याप्त अनाज है। यह वक्त तमाम प्रदेशों में अप्रवासियों के लिए बड़े पहाड़ सा जरूर है लेकिन सभी राज्य सरकारों को हनुमान बन पहाड़ हाथ पर उठाना ही होगा ताकि परीक्षा की मुश्किल घड़ी भी चुपचाप कट जाए। 
(लेखक-ऋतुपर्ण दवे)

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