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 दूसरों की भलाई के लिए प्रेरित करता है रमजान  (25 अप्रैल रमजान माह पर विशेष) 

 दूसरों की भलाई के लिए प्रेरित करता है रमजान  (25 अप्रैल रमजान माह पर विशेष) 

‘‘खुदा के प्रति फरमावदारी का ऐसा उत्साह आम दिनों में नहीं देखा जा सकता है, जैसा माह रमजान में नजर आता है प्यास की सख्त शिद्दत, भूख के बावजूद रोजेदार खुशी-खुशी ना केवल इवादत तिलावत करते है, बल्कि यथासम्भव दूसरों की भलाई कर अपने रब को राजी करते है।’’
रोजा तकवा परहेजगारी सिखाता है लगातार 15-16 घण्टे भूखे व प्यासे रहने से गरीबों की भूख प्यास का अहसास होता है, जिससे सामाजिक परोपकार की भावना को बल मिलता है। रोजेदार दुनिया में कही भी कितना ही एकान्त में रहे भूख-प्यास की  कितनी ही शिद्दत हो, लेकिन मजाल है कि वोह पानी का एक कतरा भी हलक में उतारे, क्योंकि उसका भरोसा है कि खुदा देख रहा है खुदा के प्रति फरमावरदारी का यही जज़्वा रोजेदार को ना केवल अच्छा इंसान बनाता है बल्कि यही जज़्वा उसे सेवा के लिए प्रेरित करता है।
एक निश्चित समय तक खाना पीना छोड़ देने का नाम रोजा नहीं है बल्कि रोजे के दौरान खुद को बुरे कामों से रोकना है। यहां तक कि बुरा देखना सुनना भी सख्त मना है इतना ही नहीं बल्कि दिल में ऐसी बातों का ख्याल भी नहीं आना चाहिए जो रोजे की मूल भावना के विपरीत हो।
दरअसल रोजे मुसलमानों पर फर्ज किए गए है, इस्लामी माह रमजान का पैगम्बरे इस्लाम बेसब्री से इंतजार करते थे खुदा की रहमतों, बरकतों एवं इबादत की बारिश का ऐसा महीना जिसमें चारों तरफ नूर ही नूर नजर आता है अमीर गरीब छोटे-बड़े , काले गोरे का भेद भुलाकर लोग एक साथ सेहरी, इफ्तार एवं इवादत करते हैं, इससे एक दूसरे के सुख-दुख को बांटने और समाज कल्याण की मानवता को बढ़ावा मिलता है।
रोजा इंसान से प्रेम, भाईचारा, दया, करुणा, हमदर्दी, माफी और मदद की भावना को प्रोत्साहित करता है। साल के 11 महिनों की अपेक्षा इस माह में लोग ज्यादा से ज्यादा गरीब, बेसहारा लोगों की मदद को आगे आते है, हर रोजेदार इस बात की कोशिश करता है कि हर जरुरतमंद (चाहे वह किसी भी धर्म का हो) की यथा सम्भव मदद की जा सके क्योंकि हर नेक कामों का सवाव (पुण्य) आम दिनों से ज्यादा सत्तर गुना मिलता है।
रोजा इसान को गुनाहों से बचाता है उसके दिल में खुदा का ऐसा खौफ रहता है कि वे खुद को हर तरह के अपराध, अत्याचार, भ्रष्टाचार, लड़ाई, झगड़े, गीवत (चुगलखोरी), झूठ और गुस्से से  बचाता है।
बेशक रमजान बड़ी अजमत बरकत और रहमतों वाला महीना है। इसी माह की रात (शबे कद्र) को हजार रातों से बेहतर बनाया गया है। रमजान में ही खुदा ने कुरान पाक का नायाब तोहफा अता किया जो सारी सृष्टि के लिए आदर्श है।  पैगम्बरे इस्लाम ने रमजान के आमद की  खुशखबरी देते हुए कहा है कि जो नियमों को साथ रमजान में पूरे रोजे रखे उसके अगले पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते है। वो इस तरह पाक साफ हो जाता है, जिस तरह माँ के पेट से पैदा होने वाला बच्चा। शबे कद्र की रात में इबादत तिलावत करने से भी गुनाह माफ कर दिए जाते है।
कोरोना के चलते जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ी
मौजूद हालात में जब कोरोना ने सारी दुनिया को जकड़ कर रखा है ऐसे हालात में रोजदारों की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है उन्हें अपनी रब की रजा के लिए उसूलों का पाबंद रहकर रोजे रखने के साथ ही कसरत से इबादत, तिलावत, दान पुण्य जैसे कार्यों को खूब करना चाहिए। लेकिन ये सब घर में ही रहकर करना चाहिए, घर में ही नमाज पढ़े, तिलावत करे, सहरी करे, अफ्तार करे और परिवार समाज और देश के लिए दुआएं करे कि खुदा हम सब को कोरोना जैसी महामारी से सुरक्षित रखे-आमीन।
(लेखक- तालिब  हुसैन)

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