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मलेरिया और कोरोना में कॉमन क्या?  (वर्ल्ड मलेरिया डे-25 अप्रैल) 

मलेरिया और कोरोना में कॉमन क्या?  (वर्ल्ड मलेरिया डे-25 अप्रैल) 

वर्ष 2020 का विश्व मलेरिया दिवस 25.अप्रैल इसलिए भी खास है कि हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन का आविष्कार भारत के महान आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय ने किया था। आचार्य राय की संस्था  ’बंगाल-केमिकल्स-एंड-फर्टिलाइजर्स’ की देन हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन आज कोरोना महामारी से लड़ने का एकमात्र सहारा है संसार के पास। भारत की इस दवाई की मांग पूरी दुनिया में है। अमेरिका जिसे भारत से लेने के लिए गुहार लगायी है। उस जीवन रक्षक दवा की खोज और उसे तैयार करने का श्रेय श्री प्रफुल्लचंद्र राय को है। यह विश्व मलेरिया दिवस आधुनिक भारतीय विज्ञान परम्परा को विशेष श्रेय देने का दिन भी है। भारतीय विज्ञान ने मानवता की रक्षा में अपने इस अवदान को मानव सेवा और विश्व कल्याण में समर्पित करने का ऐसा निर्णायक समय अपने देश को दिया जो समूची मानवता भारतीय वैज्ञानिक प्रफुल्लचंद्र राय को अपने जीवन के लिए ऋणी मान रही है। हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन कोरोना वायरस से जीवन की रक्षा में संजीवनी बनकर आयी है। जब पूरी दुनियां को कोई राह नजर नहीं आ रही थी ऐसे में मलेरिया बुखार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन कोरोना संक्रमण से जीवन जंग जीतने का बड़ा हथियार बनी है। यह सवाल सबके दिमाग में कांधना स्वाभाविक है कि कोरोना और मलेरिया में कोई मेल है क्या? इस बात की पुख्ता पुष्टि तो वैज्ञानिक हलकों में अभी लम्बे अनुसंधानों और अनुभवों के बाद ही होगी। पर कोरोना संक्रमण की इस पीड़ा में मलेरिया की इस दवाई का राहत देना और बिहार के दरभंगा स्थित संस्थान ’डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन’ का फरवरी माह से ही लगातार यह आग्रह कि दुनियां में जहां-जहां भी मलेरिया जोन्स है वहां कोरोना संक्रमण ज्यादा प्रभावी नहीं रहेगा। मलेरिया और कोरोना में कुछ तो कॉमन है, यह आग्रह भी इस ओर संकेत करता है। संस्थान से जुड़े मुकेश झा पटना के चिकित्सकों से जानने में जुटें है। जिन्होनें प्रथम दृष्टया इस बात को मान लिया है कि कोरोना के साथ सुगमता से लड़ने में हमारी इम्युनिटी के साथ इस क्षेत्र का मलेरिया जोन होना भी सहायक सिद्ध हुआ है। 
विश्व में मलेरिया से प्रतिवर्ष लगभग पांच लाख लोग मर जाते है। भारत में हर साल लाखों लोग मलेरिया के चलते मर जाते है। इस बीमारी की गंभीरता और व्यापकता को देखते हुए ही इसके बचाव और निवारण के प्रति प्रबिद्धता को बताते हुए पूरा विश्व 25 अप्रैल को ’विश्व मलेरिया दिवस’ के रुप में मनाता है। ताकि दुनियां इसके बारे में जागरुक हो सके। पूरे विश्व से मलेरिया का उन्मूलन किया जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया की लगभग 3.3 अरब जनसंख्या को मलेरिया से खतरा है। विश्व के विकासशील देशों का बड़ा हिस्सा मलेरिया प्रकोप की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है। 
2012 में मलेरिया के कारण दुनियाभर में लगभग 6,27,000 मौतें हुई। अफ्रीकी, एशियाई, लैटिन अमेरिकी देशों में ही इनकी ज्यादा संख्या रही। वहीं भारत में मलेरिया की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील राज्य उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, त्रिपुरा और मेघालय तथा नॉर्थ ईस्ट के राज्य है। दुनियां में वर्ष 2016 में मलेरिया के 21.60 करोड़ मामले दर्ज हुए। जिनमें से लगभग साढ़े चार लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई। वहीं सन् 2015 में यह आंकड़ा 21.10 करोड़ मलेरिया मरीजों के रुप में दर्ज हुआ। इस वर्ष में भी 4.46 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। भारत सरकार ने सन् 2030 तक देश को मलेरिया मुक्त करने का उददेश्य रखा है। भारत दुनिया का चौथा देश है जहां मलेरिया से आज भी सबसे ज्यादा मौतें हो रही है। एक रिपोर्ट बताती है लगभग 70 प्रतिशत मौत भारत में मलेरिया के कारण हो जाती है प्रतिवर्ष। विश्व में सबसे अधिक मौत का कारण मलेरिया नाइजिरिया में बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग और दिशा निर्देशन में विश्व के विभिन्न देशों की सरकारें मलेरिया उन्मूलन करने के उद्देश्य से ’मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम’ चला भी रही है। क्योंकि मलेरिया एक वैश्विक जन-स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में हर वर्ष क़रीब 50 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित रहते हैं। जिनमें से करीब 27 लाख रोगी जीवित नहीं बच पाते है। उनमें भी आधी संख्या पाँच साल से कम के बच्चों की होती हैं।
मलेरिया का संक्रमण होने और बीमारी फैलने में रोगाणु की किस्म के आधार पर एक से छः सप्ताह तक का समय लग जाता हैं। मलेरिया के शुरूआती दौर में सर्दी और जुकाम तथा पेट का खराब होना सामने आता हैं। कुछ दिन बाद सिर में, शरीर में, और जोड़ों में दर्द के साथ ठंड लगती है तथा अचानक तेज बुख़ार और दस्त होने लगते है। लेकिन जब बुखार अचानक उतर जाता है तो यह मलेरिया की सबसे खतरे वाली स्थिति है। अपने शुरुआती लक्षणों में कोरोना भी कुछ इसी तरह दस्तक देता है। बहरहाल कोरोना के उपचार के लिए विश्व को राहत देने में आगे आयी हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवाई ने दुनियां में भारत की शान बढ़ायी। जिसके लिए पूरा भारतीय वैज्ञानिक समुदाय बधाई का हकदार है। महान रसायनविद् भारतीय वैज्ञानिक प्रफुल्लचंद्र राय को शत्-शत् नमन्। जिन्होंने सन् 1894 में सबसे पहले मर्करी की खोज की और एक अस्थाई पदार्थ मरक्यूरस नाइट्रेट अपनी प्रयोगशाला में बनाया। फिर उसकी सहायता से प्रफुल्लचंद्र राय ने नये 80 यौगिक तैयार किए। जो बाद में कई महत्वपूर्ण और जटिल समस्याओं से पार पाने में उनके काम आये। उनकी दूरदृष्टि और देश की दयनीय हालत ने उन्हें सन् 1901 में ’बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड’ की शुरुआत करने को प्रेरित किया। निजी प्रयासों से घर में ढ़ेरों अनुसंधान अपने खर्च से किए। उनका ज़ज्बा आज समूची मानवता को जीवन बख़्शने वाला बना। हम समस्त भारतीयों को अपने पुरखों की इस महान तपस्या पर नाज करने की वजह मिली। निरन्तर बंगाल केमिकल्स ने महान किर्तिमान स्थापित करते हुए, आज 120वें साल में अपने संस्थापक प्रफुल्ल चंद्र राय को सही मायनों में सार्थक साबित कर दिया। जीवन रक्षक दवाओं के मसीहा की सूची में सर्वोच्च स्थापित कर दिया। कहीं न कहीं इस संक्रमण पर नियंत्रण का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया है। जरुर मलेरिया औषधि हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन के सहारे कोरोना उपचार की कोई राह निकलेगी और प्रफुल्लचंद्र राय के लिए दुनियां से दुआ निकलेगी।लेखक समाजशास्त्री है!
(लेखक- डॉ. राकेश राणा )

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