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कोरोना: लंदन में बरती जा रही बेहद लापरवाही -हीथ्रो एयरपोर्ट पर नहीं हो रही स्क्रीनिंग

कोरोना: लंदन में बरती जा रही बेहद लापरवाही -हीथ्रो एयरपोर्ट पर नहीं हो रही स्क्रीनिंग

लंदन । स्थानीय हीथ्रो एयरपोर्ट पर बेहद लापरवाही बतरी जा रही है। विदेश से लंदन आने वाले यात्रियों से पूछताछ नहीं की जा रही है न ही उनकी स्क्रीनिंग हो रही है। गत दिनों तेहरान से लौटे ब्रिटिश-ईरानी कारोबारी फरजाद पारिजकर यह देखकर हैरान थे कि वे बिना रोक-टोक के हीथ्रो एयरपोर्ट के टर्मिनल से बाहर आ गए, जबकि तेहरान एयरपोर्ट पर फ्लाइट में सवार होने से पहले लेजर बीम थर्मामीटर से उनका तापमान लिया गया था। फरजाद ने बताया कि तेहरान एयरपोर्ट पर उन्हें एक फॉर्म भी भरने के लिए कहा गया। इसमें पता, नागरिकता, यात्रा की वजह, कोरोना के लक्षणों की जानकारी मांगी गई थी। लंदन आ रही फ्लाइट के सभी 80 यात्रियों को यह फॉर्म भरना पड़ा। पर यहां ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। ऐसा लग रहा था कि सब सामान्य है। यह सिर्फ ईरान के यात्रियों के साथ नहीं हुआ, रोजाना एयरपोर्ट पर 10 हजार यात्री ऐसे ही पहुंच रहे हैं। ब्रिटेन के स्वाथ्य मंत्री मैट हैंकॉक ने एक इंटरव्यू में माना था कि लंदन में 15 हजार यात्री रोजाना आ-जा रहे हैं। इनमें 10 हजार तो हीथ्रो से ही ट्रेैवल कर रहे हैं। बाकी गैटविक, मैनचेस्टर और बर्मिंघम एयरपोर्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं। 
यहां तेहरान, न्यूयॉर्क, लॉस एंजेलिस, शिकागो, वॉशिंगटन और डलास से उड़ानें पहुंच रही हैं। हीथ्रो एयरपोर्ट के अधिकारियों ने बताया कि एयरपोर्ट खुला रखने का उद्देश्य दुनियाभर में फंसे ब्रिटिश नागरिकों को वापस लाने में मदद करना, मेडिकल उपकरण और खाने की चीजें मंगाना है। हालांकि, इस दौरान लोगों की ‌आवाजाही 75 फीसदी तक घटी है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि बाहर से आ रहे लोगों की स्क्रीनिंग तो होनी ही चाहिए। सरकार का तर्क है कि महामारी के इस दौर में स्क्रीनिंग का बहुत महत्व नहीं रह जाता। हैन्कॉक के मुताबिक एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग की जरूरत इसलिए नहीं है, क्योंकि यात्री वैसे ही घट गए हैं। भारतीय मूल के कई डॉक्टर इन दिनों ब्रिटेन में फंसे हुए हैं। दरअसल भारत और दूसरे कई देशों से हर साल सैकड़ों डॉक्टर प्रोफेशनल एंड लिंग्वस्टिक असेसमेंट बोर्ड का टेस्ट देने ब्रिटेन जाते हैं। ये इस टेस्ट का दूसरा भाग होता है। पहला भाग अपने ही देश में देना पड़ता है और पास करना पड़ता है। पास होने वाले डॉक्टर ब्रिटेन एनएचएस में काम करने के योग्य हो जाते हैं। 
इस बार भी बड़ी संख्या में भारत से डॉक्टर गए थे। भारतीय मूल की मनोचिकित्सक राका मोइत्रा ने युवा भारतीय डॉक्टरों के बारे में सबसे पहले लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडियन ओरिजिन (बापियो) और ब्रिटिश इंटरनेशनल डॉक्टर्स एसोसिएशन जैसे संगठनों के जरिए उनकी रहने संबंधी और अन्य मदद की। कोलकाता की डॉक्टर अनीशा अमीन का कहना था कि मेरी जरूरत भारत में ज्यादा है। कर्नाटक के अभिषेक भट्‌टाचार्य ने बताया कि अगर मैं इस वक्त देश में होता तो बहुत सारे लोगों की मदद कर सकता था। 
 

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