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(सियासी सवाल) सिंधिया : मजबूर या मजबूत .......?  

(सियासी सवाल) सिंधिया : मजबूर या मजबूत .......?  

जिस तरह भगवान श्री कृष्ण ने द्वपर युग में महाभारत युद्व के दौरान अपने ’गीतोपदेश‘ में यह कहा था कि ’यदा यदा हि धर्मस्य‘ श्लोक के माध्यम से यह कहने का प्रयास किया था कि ”जब जब धर्म की हानि होगी, तब तब युग देवता का अवतरण होगा“ ठीक उसी की तर्ज पर भारत देश व मध्यप्रदेश का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि जब जब देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस में ’राजनीतिक धर्म‘ की हानि हुई और अहंकार पनपा तब तब मध्यप्रदेश के सिंधिया परिवार ने नए रूप में अवतरित होकर उसे ठीक किया, इसकी शुरूआत आज से त्रैपन साल पहले  (1967) में हुई जब  ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र द्वारा भरी सभा में उन्हे अपमानित करने पर रातों रात संविद (संयुक्त विधायक दल) का गठन कर डी पी मिश्र की सरकार गिरा दी थी, इस घटना के सत्ताईस साल बाद राजमात के बेटे स्व: माधवराव सिंधिया ने 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव के रवैये से खिन्न होकर कांग्रेस से अलग मध्यप्रदेश निकाल कांग्रेस नई पार्टी बना ली थी, बाद में मजबूर होकर कांग्रेस आलाकमान को माधवराव जी को मनाना पडा और वे फिर कांगेस में आए। इसके बाद इसी इतिहास को दोहराते हुए ढाई दशक बाद माधवराजी के सुपुत्र ज्योतिरादित्य को कांग्रेस में अपमान का घूट पीना पडा और वे अपने संगी समर्थको के साथ भाजपा मे आए और यहां कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट दिया। 
देश में जब रियासती राज्यों का जमाना था तब ग्वालियर रियासत को सबसे लोकप्रिय रियासत का दर्जा प्राप्त था, ग्वालियर रियासत के राजवंश अपने जनहितैषि कार्यो के कारण अपनी पुरी रियासत में वंदनीय था। बाद में रियासती प्रथा चाहे खत्म हो गई किन्तु सिंधिया वंश की लोकप्रियता में कोई कमी नही आई, और वही परम्पराऍ आज तक चली आ रही है। मध्यप्रदेश के मध्यभारत तथा मालवा क्षेत्र में आज भी सिंधिया वंशजो का ही वर्चस्च है, जिसका फायदा हर राजनीतिक दल उठाता आया जब राजमाताजी कांग्रेस छोड जनसंघ में चली गई तो जनसंघ का खतरा बढ गया और जब तक माधवराव जी कांग्रेस मे रहे, कांग्रेस की सरकारे बनती रही, यही स्थिति उनके बेटे ज्योतिरादित्य के साथ है, जिन्होने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को एक झटके में गिरवा दिया और शिवराज की सरकार बनवा दी। 
पिछले दिनों मध्यप्रदेश में मंत्रियो को शपथ दिलाने का जो घटनाक्रम हुआ, उसी को लेकर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य में को ’मजबूर सिंधिया‘ कहा था। यद्यपि मध्यप्रदेश के नए मंत्रीमंडल में सिंधिया गुट का चालीस फीसदी हिस्सा है, किन्तु यह स्वाभाविक ही है कि यह कांग्रेस को क्यों रूचेगा ? इसलिए कमलनाथ के इस व्यंग के जबाव में सिंधिया सर्मथको को यह कहना पडा कि ’मजबूर कौन है, यह उपचुनाव परिणामों के बाद पता चलेगा ? 
आज कांग्रेस की सबसे बडी चिंता भी यही है कि राज्य में जिन दो दर्जन से अधिक विधानसभा सीटो पर उपचुनाव होना है, उनमे से अधिकांश सीटे ग्वालियर , चम्बल संभाग की है, जो सिंधिया के वर्चस्व वाला क्षेत्र है, अब कांग्रेस इस क्षेत्र में सिंधिया का विकल्प नही खोज पा रही है, इसलिए वह उपचुनाव के परिणामों को लेकर चिंतित है, जबकि भाजपा इन सीटो को लेकर सिंधिया के कारण आश्वस्त है।  
यद्यपि वर्तमान में शिवराज जी व उनकी सरकार के सामने कोरोना से मजबूती से निपटने की चुनौती है, किन्तु इसके साथ ही सत्तारूढ दल में शुरू हुई असंतोष की खुसर पुसर को शांत करने और उपचुनावो को सुखद बनाने की भी चुनौती है। चूंकि शिवराज जी अनुभवी व सिद्वहस्त राजनेता है, इसीलिए कोई चिंता की आशंका नही है किन्तु फिर भी उन्हे हर तरफ से सतर्क तो रहना ही पडेगा ? 
 (लेखक-ओमप्रकाश मेहता)

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