
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की 'न्यूनतम आय योजना' भले ही किसान कर्ज माफी की तर्ज पर लोकप्रिय हो रही हो पर इसमामले में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़ियां इत्तेफाक रखते हैं। दरअसल, चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश की 20 फीसदी सबसे गरीब आबादी को सालाना 72 हजार रुपये की मदद देने का वादा किया है। राहुल गांधी ने इसे 'न्यूनतम आय योजना' का नाम दिया है। हालांकि खर्च को लेकर यह योजना सवालों के घेरे में है। अरविंद पनगड़िया ने भी कई सवाल खड़े किए हैं।
पनगड़िया ने सोमवार को कहा, 'किसी ने यह नहीं बताया कि इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था कहां से की जाएगी जबकि खर्च की स्थिति हमेशा तंग रहती है।' अरविंद पनगड़िया ने कहा, अगर आप साल में 5 करोड़ लोगों को 72 हजार रुपये देते हैं तो इसमें 3.6 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह रकम केंद्र सरकार के कुल बजट की 13 फीसदी है। यह रक्षा बजट से भी ज्यादा है। इसलिए यह संभव ही नहीं है कि बजट की 13 फीसदी रकम इस योजना पर खर्च की जाए।
ज्ञात हो कि साल 2015 से 2017 तक नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे पनगड़िया पहले भी इस योजना को मुश्किल और चुनौतीपूर्ण बता चुके हैं। उन्होंने कहा था, इस योजना से तीन सवाल पैदा होता हैं- क्या इसका लाभ सबको मिलेगा, इसे पारदर्शिता के साथ लागू किया जा सकेगा और क्या यह राजकोषीय चुनौती नहीं है। वहीं आरबीआई के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा था कि इस योजना के लिए राजकोषीय गंजाइश बनाने की जरूरत है। उन्होंने न्याय योजना को भविष्य की असरदार योजना बनाया था। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) पिछली दोनों सरकारों के बीच एक कॉमन थीम रही है। यह एक गरीबी मिटाने वाली योजना है और गरीबी मिटाने को लेकर दोनों ही सरकारें सहमत हैं। हालांकि अन्य अर्थशास्त्रियों व नीति नियंताओं ने कांग्रेस की इस योजना की व्यवहार्यता पर सवाल खडे़ किए हैं।