YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

(चिंतन-मनन) राजा की उदारता

(चिंतन-मनन) राजा की उदारता

राजा भोज के नगर में एक विद्वान ब्राह्यण रहते थे। एक दिन गरीबी से परेशान होकर उन्होंने राजभवन में चोरी करने का निश्चय किया। रात में वे वहां पहुंचे। सभी लोग सो रहे थे। सिपाहियों की नजरों से बचते हुए वह राजा के कक्ष तक पहुंच गए। स्वर्ण, रत्न, बहुमूल्य पात्र इधर-उधर पड़े थे। किंतु वे जो भी वस्तु उठाने का विचार करते, उनका शास्त्र ज्ञान उन्हें रोक देता। ब्राह्यण ने जैसे ही स्वर्ण राशि उठाने का विचार किया, मन में स्थित शास्त्र ने कहा- स्वर्ण चोर नर्पगामी होता है। जो भी वे लेना चाहते, उसी की चोरी को पाप बताने वाले वाक्य उनकी स्मृति में जाग उठते। रात बीत गई पर वे चोरी नहीं कर पाए। सुबह पकड़े जाने के भय से ब्राह्यण राजा के पलंग के नीचे छिप गए। महाराज के जागने पर रानियां व दासियां उनके अभिवादन हेतु प्रस्तुत हुई। राजा भोज के मुंह से किसी श्लोक की तीन पंक्तियां निकली। फिर अचानक वे रुक गए। शायद चौथी पंक्ति उन्हें याद नहीं आ रही थी। विद्वान ब्राह्यण से रहा नहीं गया। चौथी पंक्ति उन्होंने पूर्ण की।  
महाराज चौंके और ब्राह्यण को बाहर निकलने को कहा। जब ब्राह्यण से भोज ने चोरी न करने का कारण पूछा तो वे बोले- राजन्, मेरा शाŒा ज्ञान मुझे रोकता रहा। उसी ने मेरी धर्म रक्षा की। राजा बोले- सत्य है कि ज्ञान उचित-अनुचित का बोध कराता है, जिसका धर्म संकट के क्षणों में उपयोग कर उचित राह पाई जा सकती है। राजा ने ब्राह्यण को प्रचुर धन देकर सदा के लिए उनकी निर्धनता दूर की दी।  
 

Related Posts