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बिहार :क्या दो क़दम आगे तीन क़दम पीछे की राह पर ? 

बिहार :क्या दो क़दम आगे तीन क़दम पीछे की राह पर ? 

आधारभूत सुविधाओं के नाम पर देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना जाने वाला राज्य, बिहार पिछले एक दशक से स्वयं को 'बीमारू' राज्यों की सूची से बाहर निकालने की दिशा में अग्रसर था। पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न स्व श्री ए पी जे अब्दुलकलाम के बिहार से हरित क्रांति की शुरुआत किये जाने के आह्वान पर तथा बिहार के अप्रवासी भारतीयों द्वारा आधारभूत सुविधाएं मुहैय्या कराए जाने की शर्त पर बिहार के चेहरे को बदलने का ज़िम्मा निश्चित रूप से राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार के ही कन्धों पर रखा गया। सड़क, बिजली,पानी जैसी ,मूलभूत सुविधाओं के अतिरिक्त राज्य को काफ़ी हद तक बाढ़ से भी मुक्त कराने की कोशिश की गयी। बिहार के विकास में बाढ़ भी एक बड़ी बाधा साबित होती थी। इसके अतिरिक्त अराजकता,रंगदारी व फिरौती वसूलने जैसे वातावरण को भी काफ़ी हद तक ठीक किया गया। हज़ारों अवांछित तत्वों को जेल भेजा गया।  थानों में नेताओं की  नमानी चलनी बंद हुई साथ ही नौकरशाहों को काम करने की छूट दी गई। इन कोशिशों का नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार को विकास पुरुष व सुशासन बाबू के नाम से देश जानने लगा। बिहार के शहरों से लेकर क़स्बों व गांव तक में पक्की काली सड़कें बिछ गयीं। केवल सड़कें का जाल ही नहीं बिछा बल्कि ऐसी व्यवस्था भी की गयी कि कहीं भी सड़कें ख़राब होने पर या उनमें गड्ढा होने की स्थिति में उनकी तत्काल मरम्मत की जाती। गांव गांव में विद्युतीकरण हो गया। बिहार पर बक़ाया बिजली का बड़ा क़र्ज़ उतारने के बाद पूरा बिहार जगमग करने लगा। पूरे वोल्टेजके साथ गांव से लेकर शहरों तक में 16 घंटे से लेकर 22-24 घंटे तक की निर्बाध बिजली आपूर्ति होने लगी।
पिछले डेढ़ दशक के दौरान पूरे बिहार में केंद्र सरकार ने जहाँ कई नए राष्ट्रीय राजमार्ग विकसित किये वहीँ अनेक राष्ट्रीय अन्तर्राज्यीेय राजमार्गों का सुधार किया गया। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ज़रुरत के मुताबिक़ मज़बूत व बाढ़रोधी सड़कें बनीं। परिणाम स्वरूप बिहार के विकास का पहिया जो थमा हुआ था उसने गति पकड़नी शुरू की। बाज़ारों में रौनक़ नज़र आने लगी। सड़कों पर नए नए वाहन तेज़ गति से दौड़ते नज़र आने लगे। बिजली की वजह से शिक्षा का स्तर भी सुधरने लगा। सड़कों ने गांव व  शहरों के बीच की दूरी कम कर दी। तमाम बिहारी कामगार जो अन्य राज्यों में छोटे मोटे काम रहे थे उन्होंने भी घर वापसी कर अपने ही गांव,क़स्बे  शहर में कोई कोई काम करना शुरू कर दिया। गोया बिहार में बहार नज़र आने लगी। और 2014 में तत्कालीन सत्ता प्रमुख नितीश कुमार को जनता से वोट मांगने के लिए उस समय के उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बड़ी असानी से "बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है" जैसा  लोकलुभावन नारा दिया जो लयबद्ध कर जन जन तक पहुँचाया गया। नतीजतन बिहार की जनता ने  एक बार फिर नितीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन को सत्ता सौंप दी।
नितीश कुमार 2019 में भी नए राजनैतिक गुणा भाग के साथ वापस आए। परन्तु सत्ता में आते ही उन्होंने अपनी कुर्सी को सुरक्षित रखने के लिए चुनावी गठबंधन के साथी रहे राष्ट्रीय जनता दल व कांग्रेस से नाता तोड़ कर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला लिया। इस क़दम बाद उनके पूर्व सहयोगी नेताओं ने ही 'सुशासन बाबू' का नाम 'पल्टू राम' रख दिया। आज राज्य में जे डी यू +भाजपा+लोजपा की सरकार है। परन्तु नितीश कुमार के प्रमुख रणनीतिकार प्रशांत किशोर उनसे दूर हो चुके हैं और बिहार में विकास की गति धीमी होने को लेकर उनसे अनेक सवाल पूछ रहे हैं। उधर अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर चिंतित नितीश कुमार भी लगता है कि राज्य के विकास से अधिक ध्यान अपने भविष्य के संभावित राजनैतिक समीकरण की ओर लगा रहे हैं।वैसे भी इन दिनों वे अपने राजनैतिक 'कुंबे' के विस्तार पर अधिक ध्यान दे रहे हैं । प्रशांत किशोर ने भी उनके सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। आर जे डी व कांग्रेस महागठबंधन को छोड़ भाजपा+लोजपा से हाथ मिलाकर अपनी सत्ता बचाने जैसी अवसरवादिता ने भी राज्य में उनकी विश्वसनीयता कम की है। इन्हीं हालात के चलते डैमेज कंट्रोल में व्यस्त नितीश कुमार शायद अब विकास से ज़्यादा तवज्जोह जोड़ तोड़ ,विज्ञापन तथा लोक लुभावन नीतियों को दे रहे हैं । परिणामस्वरूप राज्य की सड़कें बिना मरम्मत के पुनः गड्ढेदार होती जा रही हैं। कई इलाक़ों में तो सड़क में गड्ढे नहीं बल्कि गड्ढे में सड़क नज़र आने लगी है। क़स्बों व गांव से गुज़रने वाली अनेक सड़कें एक वर्ष से भी ज़्यादा समय से टूटी पड़ी हैं और धीरे धीरे उन सड़कों का अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है।
यही स्थिति विद्युत् आपूर्ति की भी है। जिस राज्य में दशकों बाद सुचारु बिजली आपूर्ति होने लगी थी उसी राज्य में अब अकारण ही बिना किसी पूर्व सूचना के बिजली कटौती होने लगी है । लगातार बिजली आपूर्ति की आदी हो चुकी जनता के लिए अब पुनः अँधेरे के दौर में वापस जाना संभव नहीं। बिजली के अभाव की वजह से बच्चों की शिक्षा से लेकर व्यवसाय तक प्रभावित होने लगे हैं। देहाती क्षेत्रों में विद्युत् शिकायत केंद्रों की कमी के चलते लोगों को बिजली के जाने के समय,कारण तथा आने का समय पता न चल पाने के चलते अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है । इन दिनों कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में बिहार के कामगारों तथा अप्रवासी मज़दूरों व मनरेगा से जुड़े श्रमिकों को काफ़ी नुक़्सान उठाना पड़ा है। नितीश सरकार को चाहिए कि पूरे राज्य के  शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों का नए सिरे से सर्वेक्षण कराकर इसे पुनः चलने योग्य बनाएं ताकि गांव से शहरों की दूरी कम हो सके अन्यथा अगली बरसात से पहले ही यह सड़कें जो अभी से थोड़ी सी बारिश में तालाब सरीखी दिखाई देती हैं ज़्यादा बारिश में तो शायद अपना वजूद ही खो बैठेंगी।इसी तरह विद्युत् आपूर्ति भी निर्बाध व पहले से अधिक सुचारु किये जाने की ज़रुरत है ।अब सरकार यह भी नहीं कह सकती कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बिजली का बिल नहीं देते।अब तो विद्युत् बिल संग्रह केंद्रों पर गांव गांव में लंबी क़तारें लगी रहती हैं और लोग स्वेच्छा से बिल जमा करते हैं । फिर आख़िर अपरिहार्य कारणों के बिना बिजली कटौती का क्या अर्थ है।हरियाणा पंजाब की ही तरह बिजली कटौती की सुचना देने व पारदर्शिता लाने के लिए उपभोक्ताओं के रजिस्टर्ड मोबाईल नंबर पर विद्युत् विभाग को एस एम एस के द्वारा  बिजली के बिल की सूचना की ही तरह बिजली कटौती के समय की भी पूर्व सूचना देनी चाहिए। यदि सरकार बिजली व सड़क के मामले में और अधिक सुधार नहीं करती तो यही माना जाएगा कि नितीश सरकार विकास के मामले में दो क़दम आगे तीन क़दम पीछे की राह पर चल रही है।
(लेखक-निर्मल रानी )

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