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(दो टूक) स्वतंत्रता के मामले में नीचे खिसकती भारतीय प्रेस की रैंकिंग  - चिंताजनक है पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती हिंसा

(दो टूक) स्वतंत्रता के मामले में नीचे खिसकती भारतीय प्रेस की रैंकिंग  - चिंताजनक है पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती हिंसा

भारतीय लोकतंत्र में प्रेस को सदैव लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की संज्ञा दी जाती रही है क्योंकि लोकतंत्र की मजबूती में इसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। यही वजह है कि स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की स्वतंत्रता को बहुत अहम माना गया है लेकिन पेरिस स्थित ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ नामक संस्था ने 22 अप्रैल को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर जो तथ्य पेश किए हैं, उससे भारत को एक बार फिर झटका लगा है। दरअसल संस्था की वर्ष 2020 की इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत इस बार फिर दो पायदान और नीचे खिसक गया है। कुल 180 देशों पर आधारित इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब 142वें स्थान पर पहुंच गया है, जो 2017 में 136वें स्थान पर, 2018 में 138वें और 2019 में 140वें पायदान पर था।
‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ एक ऐसा गैर लाभकारी संगठन है, जो दुनिया भर के पत्रकारों पर हमलों का दस्तावेजीकरण करने और मुकाबला करने के लिए कार्यरत है और प्रतिवर्ष ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ अर्थात् ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ नामक रिपोर्ट पेश करता है। ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की स्थापना वर्ष 1985 में रॉबर्ट मेनार्ड द्वारा की गई थी। इस संस्था का मुख्यालय पेरिस में है तथा बर्लिन, ब्रसेल्स, जेनेवा, मेड्रिड, रोम, स्टॉकहोम इत्यादि स्थानों पर भी इसके कार्यालय हैं। संस्था विश्वभर में मीडिया पर होने वाले हमलों पर नजर रखती है तथा विभिन्न देशों में सरकारों के साथ मिलकर उन देशों में प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कार्य करती है। संस्था की ‘द वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2020’ नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि भारत में वर्ष 2019 में किसी भी पत्रकार की हत्या नहीं होने से देश में मीडिया के लिए सुरक्षा स्थिति में सुधार नजर आया है क्योंकि वर्ष 2018 में देश में छह पत्रकारों की हत्या कर दी गई थी। इसके बावजूद रिपोर्ट कहती है कि देश में मीडिया की स्वतंत्रता का खूब उल्लंघन हुआ है।
स्वतंत्रता के मामले में भारतीय प्रेस की रैंकिंग नीचे खिसकने का सबसे बड़ा कारण रहा गत वर्ष 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 खत्म करते हुए जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना। दरअसल उसके बाद राज्य में कई प्रकार के कठोर प्रतिबंध लगा दिए गए थे, जिस कारण वहां मीडिया को रिपोर्टिंग करने में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा भी गया है कि कश्मीर में उत्पन्न हुई स्थिति की वजह से भारत की रैकिंग पर काफी प्रभाव पड़ा है। ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का लगातार उल्लंघन किया गया, जिनमें पत्रकारों के खिलाफ पुलिसिया हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा हमला, बदमाशों और भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा बदले में हिंसा इत्यादि शामिल हैं। रिपोर्ट कहती है कि रिपोर्टिंग के समय पत्रकारों को पुलिस की हिंसा सहनी पड़ी, राजनैतिक दलों और अपराधियों द्वारा हमले भी किए गए, साथ ही कई भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा भारत में पत्रकारों का अपमान भी किया गया।
‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020’ में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति की विवेचना करने के अलावा यह भी स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार दुनियाभर में पत्रकारों के खिलाफ घृणा हिंसा में बदल गई है, जिससे विश्वभर में पत्रकारों में डर बढ़ा है। ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की वर्ष 2019 की रिपोर्ट में भी साफतौर पर कहा गया था कि भारतीय पत्रकारों को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पत्रकार कई तरह के खतरों का सामना करते हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-अंग्रेजी भाषी मीडिया के लिए कार्यरत पत्रकार। भारत में हिन्दुत्व वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणित अभियानों पर चिंता जताने के साथ रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में उन पत्रकारों को सोशल मीडिया पर टारगेट किया गया, जिनकी किसी रिपोर्ट ने हिन्दुत्व विचारधारा के अनुयायियों को परेशान किया या उनके खिलाफ कुछ लिखा गया।
संस्था के सर्वे में हर साल कुल 180 देशों की सूची होती है और इन सभी देशों में सालभर प्रेस की स्वतंत्रता के मामलों का बारीकी से अध्ययन करने के पश्चात् ही ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ नामक रिपोर्ट तैयार की जाती है। ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020’ के अनुसार प्रेस स्वतंत्रता के मामले में नार्वे लगातार चौथी बार पहले पायदान पर है और उत्तरी कोरिया सबसे निचले अर्थात् 180वें पायदान पर। 22 अप्रैल को जारी किए गए इस सूचकांक में दूसरे नंबर पर फिनलैंड, तीसरे पर डेनमार्क, चौथे पर स्वीडन, पांचवें पर नीदरलैंड, छठे पर जमैका, सातवें पर कोस्टारिका, आठवें पर स्विटजरलैंड, नौवें पर न्यूजीलैंड, दसवें पर पुर्तगाल और ग्यारहवें स्थान पर जर्मनी को रखा गया है। सर्वे रिपोर्ट में फ्रांस 34वें पायदान पर, यूके 35वें पर, अमेरिका 45वें पर, जापान 66वें, मालदीव 79वें, ब्राजील 107वें, नेपाल 112वें, अफगानिस्तान 122वें, श्रीलंका 127वें, पाकिस्तान 145वें तथा बांग्लादेश 151वें पायदान पर हैं। ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की इस रिपोर्ट में इन दिनों पूरी दुनिया में खलनायक के रूप में उभरा चीन प्रेस स्वतंत्रता के मामले में 177वें स्थान पर है। सूचकांक के अनुसार दक्षिण एशिया ने अन्य सभी क्षेत्रों की तुलना में सबसे कमजोर प्रदर्शन किया है।
बहरहाल, अगर बात केवल भारत के संदर्भ में की जाए तो ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट में पिछले कुछ वर्षों से लगातार यही कहा जाता रहा है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति में से एक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा है,जिसमें पुलिस की हिंसा, माओवादियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है। इसका सीधा और स्पष्ट अर्थ यही है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता के मामले में स्थिति केवल तभी बेहतर हो सकती है, जब पत्रकारों पर होने वाले हमलों को पूरी तरह रोका जा सके। 
(लेखक- योगेश कुमार गोयल/) 

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