
नई दिल्ली । बीते दिनों वैज्ञानिकों ने पाया है कि महासागरों में जमा प्लास्टिक अब तक के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया है। इटली के पास स्थित भूमध्यसागर के हिस्से थिरियेनियन सागर के निचले तल में करीब 19 लाख प्लास्टिक के टुकड़े प्रति वर्ग मीटर में पाए गए है। इस खोज ने इस तथ्य पर रोशनी डाली है कि गहरे समुद्र में चल रही धाराएं माइक्रोप्लास्टिक को कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में पहुंचाने का माध्यम बन रही हैं। यह उसी तरह के हैं जिस तरह से प्रशांत महासागर में बहुत से गार्बेज पैचेस यानि कचरे के धब्बे दिखाई देते हैं। एक अंतरराष्ट्रीय टीम के प्रमुख डॉ इयान केन का कहना है कि ये धाराएं एक ड्रिफ्ट डिपोजिट्स बनाती है। ऐसे रेगिस्तान में रेत के टीले पर हवा से रेत जमा होती जाती है।उसी तरह से समुद्र के अंतर एक निश्चित दिशा में बहने वाली धाराएं एक स्थान पर कचरा जमा करती जाती हैं। समुद्र के अंदर के ये ढेर कई किलोमीटर लंबे और सैकड़ों मीटर ऊंचे हो सकते हैं।
यह पृथ्वी के महासागरों में जमा होने वाले सबसे बड़े अवसादों में शामिल हैं। इनमें महीन सिल्ट की बहुतायत होती है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि इनमें माइक्रोप्लास्टिक भी शामिल होगा। महासागरों में कचरा जमा होने की मात्रा चिंता जनक स्थिति में पहुच गई है। ये इलाके समुद्री जीवन को भी आकर्षित करते हैं। उनके लिए पोषण भूमि की तरह काम करते हैं जो माइक्रोप्लास्टिक अपने भोजन के साथ खा सकते हैं। इसका मतलब है कि अगर आप कोई समुद्री मछली खा रहे हैं तो हो सकता है उसमें वह कचरा मौजूद हो जो आपने फेंका था। एक बार पानी के जीव के अंदर यह कचरा पहुंच जाए तो यह बहुत आसान होता है कि यह फूड चेन में चला जाए और देर सबेर आपकी प्लेट में भी पहुंच जाए।
भूमध्य सागर में हुई खोज पर हुए शोध की लेकिका,ब्रीमेन यूनिवर्सिटी जर्मनीकी प्रोफेसर एल्डा मिरामेन्टेस का कहना है कि महासागर प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने का एक तरीका यह है कि इससे उसी तीव्रता से निपटा जाए जितनी तीव्रता से हम वर्तमान में फैली कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए लड़ रहे हैं। मालूम हो कि दुनिया भर का ध्यान इस समय केवल कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुए संकट पर है। लेकिन इसके बावजूद कई वैज्ञानिक और पर्यावरणविद ऐसे हैं जिन्हें पृथ्वी की अन्य समस्याओं की भी उतनी ही चिंता है। इस समय बेशक कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन के कारण पर्यावरण की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। दुनिया में कार्बन उत्सर्जन में बड़ी मात्रा में गिरावट आई है। वायु प्रदूषण के स्तर में भी बहुत उल्लेखनीय गिरावट आई है। जल प्रदूषण में भी जगह जगह गिरावट आई है। दुनिया भर के जल स्रोत साफ हो गए हैं। लेकिन महासागरों में सब कुछ ठीक नहीं है।