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चिंतनीय सामाजिक सरोकार   चिकित्सा क्षेत्र में विकास - युध्य या महामारी से ही हुआ हैं 

चिंतनीय सामाजिक सरोकार   चिकित्सा क्षेत्र में विकास - युध्य या महामारी से ही हुआ हैं 

वर्तमान में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान हिप्पोक्रेट से शुरू हुआ और लगभग 400 से 500 वर्षों का इतिहास रहा हैं और जिससे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में खोजों के माध्यम से विश्व व्यापी मान्यता मिली जबकि भारत में आचार्य चरक सुश्रुत आदि ने हज़ारो वर्ष पूर्व बहुत परिपूर्ण चिकित्सा शास्त्र लिख दिया था और उससे मानव जाति केअलावा पशु, पक्षियों का इलाज़ का भी विवरण मिलता हैं। 
इतिहास साक्षी हैं कि युध्य के दौरान शल्य चिकित्सा में बहुत अनुसन्धान हुए और अनुभव मिले जिससे शल्य विज्ञान बहुत विकसित हुआ। जैसे आजकल औद्योगिक सर्जरी, रोड एक्सीडेंट, स्पोर्ट्स सर्जरी का विकास हुआ और उस कारण नै तकनिकी विकसित हुई। इसी प्रकार आचार्य चरक, सुश्रुत आदि ने भी चिकित्सा विज्ञानं में औषधियों का भरपूर उपयोग कर, लाभ के आधार पर उन योगों को लिपिबद्ध किया जो आज उपलब्ध हैं। 
वैसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान रसायनों के उपयोग के कारण विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कर लेती हैं जो सभी के प्रभाकारी होती हैं पर आयुर्वेद में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया हैं कि जो व्यक्ति जिस जलवायु और देश का होता हैं उसे उसी देश कि जड़ी बूटी, औषधि लाभकारी होती हैं, जिस कारण आयुर्वेद औषधि अन्य देशों में उतनी लाभकारी नहीं होती हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक हैं। 
वास्तव में आक्रामक व्यापारिक प्रभाव के कारण विश्व ने आधुनिक रसायनों का भरपूर उपयोग किया, एंटीबॉयटिक्स का भरपूर उपयोग होने से मानव शरीर रसायन युक्त हो गया और आधुनिक जीवन शैली खान पान के कारण जीवन पद्धत्ति में बहुत परिवर्तन हुआ। और हम सब इनके प्रभाव से इतने अधिक प्रभावित हो चुके हैं कि रसायनों का एंटीडोट रसायन होने से हमारे शरीर में आयुर्वेद औषधियां वर्तमान में असरकारक नहीं हो पा रही हैं। जिस प्रकार खेती में रसायन खादों का उपयोग होने के बाद जैविक खेती उतनी अधिक प्रभावकारी वर्तमान में नहीं हो पा रही। लगातार जैविक खाद का उपयोग होने से वह भी लाभकारी हो जाएँगी। 
आयुर्वेद विज्ञानं में हमारी दिन चारे, ऋतू चर्या, खान पान, रहन सहन आदि का बहुत सूक्ष्म अध्ययन किया गया हैं, उस तरीके कि जीवन शैली अपनाने से बहुत सीमा तक हम निरोग रह सकते हैं। यहाँ पहले स्वास्थ्य रक्षण के बाद चिकित्सा पर ज़ोर दिया गया हैं, जबकि आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में पहले चिकित्सा बाद में रक्षण या बचाव कि बात का उल्लेख हैं। 
इस समय कोरोना वायरस का इलाज़ विश्व में नहीं मिल पा रहा हैं, पर भारत में इसका इलाज़ बहुत सीमा तक संभव हैं, एक बात बहुत महत्वपूर्ण हैं कि यह कोई जरुरी नहीं हैं कि हमें बीमारी का नाम मालूम हों। यदि रोग का नाम नहीं मालूम हैं तो कोई बात नहीं, चिकित्सक दोष्य -दुष्य के आधार पर भी चिकित्सा अनुभवी वैद्यों चिकित्सको के द्वारा की जा सकती हैं। 
शासन को विशाल दृष्टिकोण रखकर शास्त्रोक्त कच्ची द्रव्यों को संगृहीत करके गुणवत्ता युक्त औषधि निर्माण कर प्रभावितों का इलाज़ करवाएं। हो सकता हैं की हमारे देश के रोगियों को हम सीमा तक सुरक्षित रख सकते हैं। इस पर पूर्ण आश्रित न होकर संयुक्त रूप से औषधियां देकर हम लाभान्वित कर सकते हैं। यह विषाणुजन्य रोग के कारण भयभीत हैं पर यह दोष दुष्य के आधार पर चिकित्सा कर सकते हैं। जैसे आज हम लाक्षणिक चिकित्सा कर रहे हैं और हम ट्रायल और एरर को आधार मानकर चिकित्सा कर रहे हैं। अभी तक एक कोई मापदंड स्थापित नहीं किया जा पा रहा हैं, इस कारण लाखों की संख्या में मौतों का अम्बार लग रहा हैं। दूसरी बात कोई भी इलाज़ हर देश में सामान्य तौर पर लागू नहीं हो रहा हैं, कारण उस देश का वातावरण, जलवायु, रहन -सहन, खान- पान का प्रभाव पड़ता हैं। 
मजेदार बात यह हैं की अभी भी कोई कोई वैज्ञानिक, चिकित्सक मांसाहार, मछली अंडा, मांस खिलने की वकालत कर रहे हैं, यह भी शोध का विषय हो सकता हैं की संक्रमित होने वाले, ठीक होने वाले और मरने वालों का खानपान किस प्रकार का रहा हैं। अधिकांश मांसाहारी अधिक प्रभावित हो रहे हैं। इस कारण चिकित्सको और शासन को शाकाहार, साग सब्जियों के खाने को प्रोत्साहित करना चाहिए। वैसे भी अंडा, मांस मच्छली, शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं और इस संक्रमण के कारण और अधिक प्रभावित हो रहे होंगे। 
जिस प्रकार व्यक्तिगत दुरी, मास्क, हाथ का धोना जरूरी हैं इसके साथ शाकाहार की भी उपयोगिता बताकर प्रोत्साहन देने के लिए प्रयास करना चाहिए। खान पान रहन सहन धार्मिक आस्था व्यक्तिगत होती हैं पर स्वास्थ्य ये सब बाते प्रभावित करता हैं। 
अभी कुछ भी देर नहीं हुई हैं, चिंता की जगह चिंतन कर जनकल्याण की भावना से क्रियान्वयन करे। 
(लेखक- डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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