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दो पाटन के बीच ’कोरोना‘ और ’करो ना‘ के बीच फॅसे शिवराज....। 

दो पाटन के बीच ’कोरोना‘ और ’करो ना‘ के बीच फॅसे शिवराज....। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की स्थिति इन दिनों ”दो पाटन के बीच फॅसे शख्स“ जैसी हो गई है, चौथी बार मुख्यमंत्री का पद सम्भालने के तत्काल बाद जहॉ उन्हे कोरोना महामारी से प्रदेश को बचाने की चुनौति से दो-चार होना पड रहा है, वहीं वे मंत्री-परिषद विस्तार के ’करो ना‘ आग्रह से परेशान है। उनकी अपनी पार्टी में इस करो ना के मुददे पर काफी अर्न्तद्वंद चल रहा है। शिवराज जी पर जहॉ कांग्रेस से सत्ता की चाबी छीनकर उन्हे सौंपने वालो (सिंधिया समर्थकों) का दबाव परेशान कर रहा है, वहीं दूसरी और उनकी अपनी भारतीय जनता पार्टी के मत्री प्रत्याशियों के सब्र का बांध टूटने के कगार पर पहुच गया है। कांग्रेस के सिंधिया समर्थकों को जहॉ भाजपा के वरिष्ठ नेता दबी जुबान अवसरवादी, दलबदलू नेता कहने लगे है, क्योंकि कई वर्षो से चली आ रही मंत्री पद की लालसा पर इन पूर्व कांग्रेसियों ने पानी फेर दिया है, वहीं अपने नेता सिंधिया के साथ दल बदलकर भाजपा में शामिल होने वालो की सफाई यह है कि यदि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का उपचुनावों को जीतकर पुन: सत्ता हथियाने का दावा सही निकल गया तो वे कितने दिन मंत्री रह पाएगें ? इसलिए सिंधिया समर्थक पूर्व मंत्रीगण भी सत्ता का हिस्सा बनने की जल्दी में है।  
अब सत्ता हाथ से फिसलने के डेढ महीने बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ यह सफाई दे रहे है कि उन्हे इन सिंधिया समर्थकों का भाजपा में चले जाने का पूर्वानुमान नही था, और अचानक सत्ता हाथों से फिसल गई। साथ ही उन्होने दावा भी किया कि अगले कुछ ही महीनों मे होने वाले 24 विधानसभा उप-चुनावों में कम से कम 22 सीटें वे जीतेगे और पुन: राज्य की सत्ता पर काबिज हो जाएगे, व्यक्तिगत चर्चा में उनका यह भी दावा है कि दलबदल के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का अपने ग्वालियर-चम्बल क्षैत्र में पहले जैसा दबदबा नही रह गया है और उन्होने सिंधिया का विकल्प भी ढूंढ लिया है, इसलिए अब मध्यप्रदेश के इस अंचल में सिंधिया के खिलाफ वोटिंग होनी है, जिसका फायदा सिर्फ कांग्रेस को मिलेगा, इसी उम्मीद के चलते इस क्षैत्र के वरिष्ठ नेता श्री गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष की कमान सौंपने की तैयारी की गई है और इसी धारणा के चलते राज्य कांग्रेस का प्रभारी महामंत्री भी बदला गया है, यद्यपि फिलहाल यह तय नही है कि ये विधानसभा के उप-चुनाव कब होगे ? क्योंकि कोरोना महामारी के चलते इन तैयारियों पर भी विराम लग गया है, किन्तु यह तय माना जा रहा है कि अगले दो-तीन महीनो (जुलाई-अगस्त) तक तो ये चुनाव हो ही जाएगे और मौजूदा भाजपा सरकार का भविष्य भी तय हो जाएगा। 
यह तो हुई कांग्रेस की बात। अब यदि सत्तारूढ भाजपा की बात की जाए तो उप-चुनावों को लेकर वह बेफ्रिक है, क्योंकि इसकी चिंता का दायित्व भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंप रखा है। चूंकि ये उप-चुनाव सिंधिया समर्थको के क्षैत्रों में ही हो रहे है, इसलिए भाजपा को दो-चार जगह छोड बाकी अधिकांश जगहों के लिए अपने (भाजपा के) प्रत्याशी चुनने की भी चिंता नही है। अब तो भाजपा की नजर सिर्फ इन दो दर्जन उप-चुनावों के परिणामों पर ही रहेगी, क्योंकि इन परिणामों पर ही मौजूदा सरकार का भविष्य निर्भर रहेगा, इसलिए उप-चुनावों की चिंता कांग्रेस और भाजपा में आए सिंधिया जी को ही है, मुख्यमंत्री को नही, वे तो फिलहाल ’कोरोना‘ और मंत्री परिषद का विस्तार ”करो ना“ से ही परेशान है। 
(लेखक -ओमप्रकाश मेहता) 

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