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ब्रह्माकुमारीज के मूल्यपरक पाठ्यक्रम से बदल सकती है युवाओं की दिशा एक मुलाकात डॉ निशंक से

ब्रह्माकुमारीज के मूल्यपरक पाठ्यक्रम से बदल सकती है युवाओं की दिशा एक मुलाकात डॉ निशंक से

राजयोग की शिक्षा को आत्मसात करे तो पता चलता है कि व्यक्ति का अस्तित्व उसके शरीर से न होकर आत्मा से है।शरीर केवल एक यन्त्र की तरह है।व्यक्ति के आत्मस्वरूप से मिलन हो जाये तो रूहानियत का सहज ही आभास हो जाता है।आत्मा का स्वरूप एक ज्योति बिंदू की तरह है और वही स्वरूप परमात्मा का भी है।तभी तो आत्मस्वरूप में रहकर परमात्मा से लौ लगाना आसान है।यानि आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से जुड़ जाए तो व्यक्ति में विकार भाव समाप्त होकर पवित्रता जन्म ले लेती है और व्यक्ति ,व्यक्ति न होकर देवत्व में परिवर्तित हो जाता है।राजयोग के इसी रहस्य के बारे में अवगत कराने हेतु ब्रह्माकुमारीज संस्था के सचिव बीके मृत्युंजय भाई ने पिछले दिनों केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक से मुलाकात की थी। इस मुलाकात का माध्यम देश के जाने माने साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण व यह लेखक स्वयं रहा ,इस कारण हमें भी राजनीतिक गलियारे के बीच एक साहित्यकार, एक पत्रकार, एक कवि व मौजूदा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के साथ आध्यात्म,साहित्य,शिक्षा, संस्कृति, संस्कार, नैतिकता जैसे विषयों पर चर्चा करने का अवसर मिला।मृत्युंजय भाई जो कि ब्रह्माकुमारीज संस्था के शिक्षा प्रभाग प्रमुख भी है,उनकी संस्था द्वारा स्कूल,कालेज व विश्वविद्यालय स्तर के लिए तैयार मूल्यपरक शिक्षा पाठ्यक्रम जिसे देश के 17 विश्वविद्यालयों द्वारा पढाया भी जा रहा है,को देशभर के युवाओं के लिए सभी शिक्षण संस्थानों में लागू कराये जाने हेतु इन पाठ्यक्रमो को डा निशंक को दिखाया गया और उन्हें बताया गया कि ये पाठ्यक्रम देश के युवाओं की दिशा और दशा बदलने में सक्षम है।डॉ निशंक ने जब ब्रह्माकुमारीज द्वारा तैयार  पाठ्यक्रम देखे तो उन्होंने भी पाठ्यक्रम को लोकोपयोगी बताया और उनको  सरहाया भी।इसी बीच चली चर्चा  में जहां नई पीढ़ी के भविष्य को लेकर विचार मंथन हुआ, वही हिंदी को राजभाषा के रूप में देशभर में , व्यवसायिक व व्यवहारिक भाषा के रूप में  प्रतिष्ठित करने को लेकर भी  विमर्श हुआ।जिसके तहत डा निशंक ने हमारे इस सुझाव पर कि देश के भविष्य युवाओं के चरित्र निर्माण के लिए मूल्य परक शिक्षा पाठ्यक्रम आवश्यक किए जाए,साथ ही हिंदी को उसका सम्मान हासिल हो,इसपर अपने सकारात्मक दृष्टिकोण से अवगत कराया।एक साहित्यकार मित्र के रूप में हुई चर्चा में  किस तरह उन्हें व हमे बचपन मे गरीबी से संघर्ष करना पड़ा और किस तरह माता, पिता व गुरुजनो की सेवा करते हुए अभाव में भी खुश रहना सीखते थे, उस अतीत को  आज तक नही भूल पाए है।भाई के साथ खेत से गाय के लिए चारा लाना,कच्चे घर मे गोबर से लेपन में मां की मदद करना,स्कूल में बैठने के लिए टाट पट्टी न होने के कारण बस्ते में बोरी का टुकड़ा लेकर जाना,सरवे की लकड़ी से कलम बनाकर उपयोग करना और घर मे प्रेस न होने के कारण खुद कपड़ो को धोकर तकिये के नीचे रखकर उनकी सलवटे कम करना जैसी बातो को याद कर उनकी आंखों में आंसू आ गए।चूंकि ऐसा ही जीवन खुद हमने भी जिया,इसकारण लगा जैसे डॉ निशंक हमारे ही बीते लम्हो को याद करा रहे हो।सच भी है एक माली की मामूली नोकरी करने वाले एक गरीब ब्राह्मण का बेटा यदि देश के मानव संसाधन विकास मंत्री जैसे ओहदे तक पहुंचता है तो यह एक सुखद एहसास ही कहा जायेगा।हालांकि निशंक अचानक इस ओहदे पर नही पहुंचे ,वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, काबीना मंत्री, अविभाजित उत्तर प्रदेश में मंत्री विधायक रहे है, उनकी यह राजनीतिक यात्रा और साथ मे उनकी साहित्यिक छवि उन्हें इस ओहदे तक ले गई। डॉ निशंक के अनुसार वे बचपन से ही कविता और कहानियां लिखते रहे। उनका पहला कविता संग्रह वर्ष 1983 में ‘समर्पण’ प्रकाशित हुआ। अब तक उनके 10 कविता संग्रह, 12 कहानी संग्रह, 10 उपन्यास, 2 पर्यटन ग्रन्थ, 6 बाल साहित्य, 2 व्यक्तित्व विकास सहित कुल 4 दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं  तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वे नियमित लेखन जारी रखे हुए है।
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ मौलिक रूप से साहित्यिक विधा के व्यक्ति हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य की तमाम विधाओं कविता, उपन्यास, खण्ड काव्य, लघु कहानी, यात्रा साहित्य आदि में प्रकाशित उनकी कृतियों ने उन्हें हिन्दी साहित्य में सम्मान दिलाया है। 
उनके साहित्य को विश्व की कई भाषाओं जर्मन, अंग्रेजी, फ्रैंच, तेलुगु, मलयालम, मराठी आदि में अनूदित किया जा चुका है। इसके अलावा उनके साहित्य को मद्रास, चेन्नई तथा हैंबर्ग विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। उनके साहित्य पर श्यामधर तिवारी, डॉ. विनय डबराल, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. सविता मोहन, डॉ. नन्द किशोर और डॉ. सुधाकर तिवारी शोध कार्य तथा पी.एचडी. तक हो चुके हैं।
 डॉ. ‘निशंक’ के साहित्य पर कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों (गढ़वाल विश्वविद्यालय, कुमाऊं विश्वविद्यालय, सागर विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश, रोहेलखण्ड विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय, हैंबर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी, लखनऊ विश्वविद्यालय तथा मेरठ विश्वविद्यालय) में शोध कार्य किया जा रहा है। एक प्रखर साहित्यकार होते हुये वे अपने मौजूदा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री पद के साथ कितना न्याय कर पाते है? इसकी समीक्षा तो बाद में ही होगी लेकिन इससे साहित्य जगत का सम्मान अवश्य बढ़ा है,इतना तो कहा जा सकता है।
 (लेखक - डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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