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ऑनलाइन पढ़ाई का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर 

ऑनलाइन पढ़ाई का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर 

कोरोना ने मानव के स्वास्थ्य का सन्तुलन ही अनियन्त्रित नहीं किया, बल्कि दुनिया का भविष्य कहे जाने वाले कोमल बच्चों की दिनचर्या पर भी गहरा असर डाला है। दुनिया के सवर्णिम भविष्य का मानचित्र तैयार करने में शिक्षा का अहम रोल है। माता-पिता अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं। हर व्यक्ति अपने बच्चों को जीवन की दौड में प्रथम आने की उम्मीद लगाये स्कूल भेजता है। प्रथम आने की डिमांड बच्चों को प्रतियोगिता की सुनहरी जाल में फंसा देती है। जहां असफलता का नामों-निशान नहीं होता। बच्चें सफल हुए तो वाह-वाही का दौर, उपहार और पुरस्कार में बदल जाता है। प्रतिस्पर्धा का समाज बढ़चढ़ कर बच्चों को कॉपी करने की सलाह में जुट जाता है, जो उन्हें असफलता के लिए तैयार ही नहीं होने देता तनाव का यहीं मुख्य कारण बनता है। बच्चा खेल में आनन्द नहीं, जीत तलाशने लगता है। 100 प्रतिशत का स्कोर कब बच्चों से बचपन छीन लेता हैं, हम समझ ही नहीं पाते। बच्चे मानसिक तनाव से अवसाद की ओर बढ़ने लगते हैं। बच्चों का तनाव इतना बढ जाता है कि कई बार उनके मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न होने लगी है। वर्तमान में बच्चों में कोरोना के काले संकट के अलावा लॉकडाउन में अकेलेपन और पैरेन्टस का ऑनलाइन पढाई का दबाव उनपर नकारात्मक प्रभाव भी छोड रहा हैं। संकट का यह दौर आज नहीं तो कल चला ही जाएगा लेकिन यह इन कोमल हृदय पर क्या छाप छोड़कर जाएगा यह चिन्तन मनन करने का विषय है। हमें बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ तनाव मुक्त बचपन देने पर भी गम्भीरता से काम करने की जरूरत है। 
हाल ही में बच्चों में पढाई का दबाव कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने ’हैप्पीनेस क्लास’ प्रारम्भ की थी, जिसकी सराहना अमेरिका की प्रथम महिला मेलानिया टृम्प ने अपने भारत दौरे में दिल्ली के सरकारी स्कूल जाकर की। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को तनाव मुक्त करने का यह तरीका आने वाले समय में शिक्षा प्रणाली की नयी इबारत लिखेगा। शिक्षा पर तकनीकि के प्रयोग का लम्बा इतिहास है। मौजूदा दौर शिक्षा की आनॅलाइन उपलब्धता आने वाले भविष्य के लिए एक नया प्लेटफार्म है, जिसमें लगातार प्रयोग किये जा रहे हैं। ऐसे समय में जब दुनिया के ज्यादातर कामकाज घरों से किये जा रहे हैं, स्कूल-कॉलेज सब बन्द हैं, आनॅलाइन शिक्षा जारी रखना एक बेहतर विकल्प के रूप में हमारे सामने उभर रहा है, जिसमें भविष्य की ढेरों सम्भावनाऐं मौजूद हैं। हालांकि स्कूली वातावरण से भिन्न आनॅलाइन रहकर पढाई करना वो भी ऐसे समय जब बच्चों के पास खेलने-कूदने के लिए पहले जैसा न खुला माहौल है, न साथ रहने वाले दोस्त, बच्चों में तनाव देने वाला है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 11से 17 वर्ष की आयु वर्ग के स्कूली बच्चे उच्च तनाव के शिकार हो रहें हैं। जिससे उनके मानसिक स्वस्थ्य पर बुरा असर पड रहा है। ऐसे में अकेले पन से उपजे गहरे तनाव में बच्चों की मनोदशा और भी चिन्ता का प्रश्न खडा करती है। 
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बच्चों पर ज्यादा नम्बर लाने का दबाव नहीं डालना चाहिये। सही तैयारी के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्होंने जितना तैयार किया है उसमें अपना बेस्ट दें पाए। इसमें अभिभावकों का अहम रोल होता है। आमतौर पर भाग-दौड वाली लाइफ स्टाइल, बच्चों पर भारी स्कूल बैग का बढता बोझ शारीरिक रूप से बीमार करने वाली होती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे के भारी भरकम बैग उनके कंधों, कमर और सिर दर्द का कारण बनते हैं। एक कदम आगे, बेस्ट करने की होड लगातार बढता पारिवारिक दबाव से तंग आकर अकसर बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठाने तक पहुंच जाते है। उन्हें लगने लगता है कि वह अपने माता-पिता की उम्मीदों में खरा नहीं उतरे। बच्चों का यह नकारात्मक दृष्टिकोण हमारी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह तो लगाता ही है साथ ही सामाजिक ताने बाने के मूल्यांकन पर भी प्रश्न खडा करता है। ऐसे में आनॅलाइन स्टडी पढाई के नये-नये तरीके एवं अवसर के तौर पर देखी जा सकती है, जो आने वाले दिनों में इसका सही तरीके से किया गया उपयोग विकासशील देशों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। हमें शिक्षा व्यवस्था की इन नयी चुनौतियों को नये अवसर में बदलना होगा, क्योंकि इतिहास गवाही देता है कि दुनिया का कोई भी साधारण अंक पत्र किसी बालक की असाधारण प्रतिभा का आंकलन नहीं कर पाया है। भारतीय इतिहास में दर्ज लम्बी सूची है जिनमें चन्द्रगुप्त, अशोक, अकबर से लेकर महात्मा गांधी, नोबेल पुरस्कार विजेता गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर एवं वर्तमान युग में ऐसे हजारों उदाहरण हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में महान कार्य किए हैं भले ही वे कक्षा में अच्छा प्रर्दशन न कर पाये हो या शिक्षा ही न हासिल कर पाये हो, अपने जीवन से परिवार, समाज और देश का नाम रोशन किया है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र में महारथी होता है जरूरत तो बस उस शिक्षक की होती है जो बच्चे की रूचि एवं प्रतिभा को पहचान कर सही दिशा दे।
लगातार बढता तानव तथा मानसिक दबाव बच्चों में निराशा का भाव पैदा करता है। ऐसे में बच्चों के मन में डर जन्म ले लेता है जो अकसर बडे होने पर भी साथ नहीं छोडता। प्राइमरी लेवल से ही बच्चे पर क्लास पर टॉप आने का प्रेशर यकीनन कामयाबी दिलाता है लेकिन हमेशा नम्बर वन रहना बच्चे को बचपन खुल कर जीने नहीं देता। पता ही नहीं चलता कब बच्चे के मन में डर अपनी जगह बना लेता है, कि लाइफ में केवल अंक ही जरूरी है और कुछ नहीं। बच्चों के स्वस्थ्य भविष्य के लिए माता-पिता को यह जानना आवश्यक है कि बच्चे की क्षमता क्या है? वह खुद से क्या करना चाहता है? वह किस फील्ड में अपना बेस्ट दे सकता है? भले ही वह माता-पिता के सपनो के क्षेत्र से अलग हो। बच्चों के अंकों से उनकी क्षमता का आकंलन करना ठीक नहीं। हमें अपने नज़रिये में बदलाव की आवश्यकता है तभी देश का हर बच्चा अपनी प्रतिभा का सही उपयोग कर पायेगा। कोरोना का डर देर सवेर चला जाएगा लेकिन बच्चों के विकास की चुनौतियां मौजूद रहेंगी। उनका हल परिवार और समाज में ही संभव है। दुनिया के ज्यादातर बच्चे एक समान प्रतिभा लेकर जन्म लेते हैं। उनका सामाजिक और शैक्षणिक विकास बहुत कुछ वातावरण पर निर्भर रहता है। कोई भी बच्चा दुनिया की बडी से बडी प्रतियोगिता में सफल हो सकता है, जरूरत तो बस उसकी प्रतिभा तरासने वाले हाथों की है। यदि प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे को एल्बर्ड एडिसन बनाना चाहते हैं, तो अपनी सोच भी एडिसन की मां के समकक्ष लानी होगी। बच्चे की प्रतिभा और रूचि जानना अति आवश्यक है। तभी हम स्वस्थ्य एवं खुशहाल भारत का निर्माण कर पायेंगे। बच्चे तनाव मुक्त होंगे तभी खुलकर विकास कर पाएंगे। 
लॉकडाउन का दौर है, ऐसे में उन्हें स्नेह, प्यार, दुलार और सहयोग की खासा जरूरत है। हर अनावश्यक दबाव एवं तनाव से दूरी बनाये रखने की जिम्मेदारी माता-पिता एवं टीचरों की भी हैं। चैबीसों घण्टे बच्चे घरों में बंद हैं, हमारे ज्यादातर परिवार एकांकी हैं, जिनमें बच्चों को परिवार में सीमित लोगों का स्नेह प्राप्त हो पाता है। ऐसे में लॉकडाउन का तनावपूर्ण वातावरण ने बच्चों में मानसिक तनाव-हिंसा की प्रवृत्ति ने तेजी से अपने पैर पसारने शुरू कर दिये हैं। चाइल्ड केयर में लगातार बच्चों से सम्बन्धित समस्याओं का इजाफा हो रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण बच्चों के मुकाबले शहरी बच्चों में मानसिक स्वस्थ्य की समस्याऐं ज्यादा सामने आती हैं। गांवों में जहां 6.9 प्रतिशत बच्चों में मानसिक समस्या है, वहीं शहरों में यह 13.5 प्रतिशत है लगभग दोगुनी रफतार से समस्या बढ़ रही है। यह आंकलन उन सामान्य दिनों की हैं, जब कोरोना जैसी समस्या से कोसो दूर का कोई नाता नहीं था। आज भी गांवों की अपेक्षा शहरों में नम्बरों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। ग्रामीण समाज परिवार एवं समाजिक परिवेश से भरा-पूरा है। इसलिए यहां समस्या का शहरी रूप कम देखने को मिलता है। एन.सी.आर.बी. के अनुसार अकसर 10वीं 12वीं रिजल्ट के बाद कम नंबरों के कारण या फेल होने के डर से आत्महत्या जैसी घटनाऐं सामने आती है जो समाज के दम घोटू माहौल की तसवीर बयान करती हैं, जिसमें अंकों का अधिक महत्व होता है। बच्चों को इन तमाम तरह के तनाव से मुक्त रखने के लिए विशेषज्ञों की राय लेना आवश्यक है। अभिभावकों को बच्चों का पूरा ध्यान रखना चाहिए। सीबीएससी, यूपी बोर्ड की परीक्षाएं आधी से ज्यादा हो चुकी हैं, कोरोना के चलते कुछ रह गयी हैं, जो अभी आगे होंगी। ऐसे में बच्चों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। बच्चों पर पढाई का प्रेशर न बढने देना, अकेले न छोडना, संकट के साथ भी और संकट के बाद भी उनके साथ समय बिताना हर माता-पिता के लिए आवश्यक है तभी वह बच्चों को इस समस्या से निकालने में मदद कर पायेंगे। यदि बच्चा पढाई में कमजोर है तो माता-पिता को बच्चों को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है कि पढाई के अलावा भी बहुत क्षेत्र हैं जिनमें वह अच्छा कर सकता है। अपना बेहतर भविष्य बना सकता है। उन्हें समझाएं की परीक्षा का आनन्द लें। बच्चों में अनावश्यक पढाई का दबाव न बढने दें। बच्चों को समझे ऑनलाइन पढाई को चुनौती नहीं अवसर के रूप में बदले क्योंकि बच्चों को मानसिक तनाव से दूर रखने की जिम्मेदारी हमसब की है। बच्चे ही देश का भविष्य हैं। आज की आनॅलाइन स्टडी एक बेहतर कल की शुरूआत है। 
(लेखक-डॉ. नाज परवीन)
 

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