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झूंठी आशा देना अनुचित ! मजदूरों को अप्रैल का वेतन देना मालिक के ऊपर निर्भर ! (

झूंठी आशा देना अनुचित ! मजदूरों को अप्रैल का वेतन देना मालिक के ऊपर निर्भर ! (

जिस राज्य में आदेशों का फरमान अलग अलग तरह से निकलता हैं ,उस राज्य की व्यवस्था भगवान मालिक हैं ,२२ मार्च २०२० में श्रम विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया था कि मजदूरों का किसी भी प्रकार का वेतन नहीं काटा जायेगा।अब इस निर्देश जारी किये हैं कि इसका अधिकार मालिक को होगा कि वह वेतन दे या न दे। समाचार बहुत ही विसंगतिपूर्ण हैं। शायद इस विषय पर मुख्य मंत्री का स्पष्ट रुख क्या हैं यह नहीं पता चला पर नियत साफ़ समझ में आ  रही हैं। 
भृत्यंशक्यंप्रयोजनम  च जनं नाशया क्लेशयेत। 
असमर्थ व्यक्ति कि ,सेवक कि और निःस्वार्थी व्यक्ति को झूंठी आशा देकर पीड़ित न करे। पाठान्तर का अर्थ हैं कि स्वामी को प्रोयजन -सिद्धि करने में असमर्थ सेवक के लिए पारितोषिक -आदि का प्रलोभन देकर क्लेशित नहीं करना चाहिए। 
इस बात कि पुष्टि शुक्र आचार्य ने भी कि हैं। --
पुष्टिम नेतुं न  शक्येत यो जनाः पृथ्वीभुजा। वृथाशया  न संक्लेश योविशेषना -निष्यप्रयोजनाः । 
यह प्रदेश में कुप्रबंधन का उदाहरण है. अभी सत्ता में होने से अनियमितताएं ढंकी और छुपी रहती हैं पर यह समझना आवश्यक हैं कि अनियमितता सांप का पिटारा होता हैं जब खुलता हैं तो वह अपना फन उठाता हैं। 
इस आदेश से प्राइवेट मालिक को विशेषाधिकार मिल गया कि हमें वेतन देना हैं या नहीं। न देने कि कोई बाध्यता नहीं हैं। जबकि कर्मचारी सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत कार्य स्थल पर नहीं आ सके। दूसरी बात २२ मार्च २०२० को ऐसा आदेश निकालने का क्या  औचित्य था और आज उसको निरस्त किस आधार पर किया। क्या यह संभव नहीं हैं कि श्रम विभाग और निजी मालिकों के बीच परोक्ष सौदा होना प्रतीत होता हैं। 
मार्च माह से लॉक  डाउन के कारण व्यपारियों ,मालिकों कि माली हालत ठीक नहीं हैं पर उनका पूर्ण दायित्व हैं कि वे अपने अधीनस्थों को भरण पोषण के लिए वेतन दे। यह न देना एक प्रकार से मजदूरों कर्मचारयों के साथ अन्याय और शोषण हैं। जिनके श्रम से उनका व्यवसाय बढ़ा और बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं खड़ी हुई उनको दर दर के लिए भटकाना कितना नैतिक होगा। 
जिन श्रमिकों की बदौलत मालिकों को सब कुछ मिला और उनकी उपेक्षा करना किसी भी स्तर पर न्याय संगत नहीं होगा। सरकार में बैठे अधिकारी, मंत्री पर अब कौन विश्वास करेगा। जब एक बार विश्वास ख़तम हो जाता हैं तब श्रमिकों का उत्साह कम होकर पूर्ण निष्ठां से मालिक  के प्रति बफादार  नहीं होंगे। इसमें राज्य सरकार की भूमिका संदेहजनक हैं। इस बिंदु पर पुनर्विचार किया जाना उचित होगा। अन्यथा कुशल ,अनुभवी कर्मचारियों के जाने से ,उनको स्तरीय बनाने में बहुत समय लगता हैं और कार्य में गुणवत्ता न होने से मालिकों को नुक्सान होने का भय रहेगा। 
किसी का दिल मत दुखाओ
रहिमन हाय गरीब की
कभी न निष्फल जाए।
लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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