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मजदूर घर जाने पर क्यों मजबूर ? 

मजदूर घर जाने पर क्यों मजबूर ? 

    आज जब विष्व व्यापी महामारी कोरोना वायरस के प्रतिकूल प्रभाव से पूरा देष संकटमय है जिसे रोकने के लिये लॉकडाउन देषभर में लागू किया गया। जिसका तीसरा चरण के बाद चौथा चरण षुरू हो गया। जहां कोरोना थमने का नाम नहीं ले रहा है। दिन पर दिन इसमें वृद्धि होती जा रही है। जिससे बचने के लिये अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं हो सका है। जिससे बचाव के लिये फिलहाल घर में रहने एवं सोषल डिस्टेंसेग के नियमों को बार - बार पालन करने की सलाह दी जा रही है। जहां केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार  लॉकडाउन से प्रभावित आम जन में विषेश रूप से मजदूर वर्ग को भोजन के साथ - साथ हर तरह की सुविधा अपलब्ध कराये जाने की बार - बार घोशणा कर रही है फिर देष के कोने - कोने से लाखों की संख्या में अपने परिवार के साथ अपने - अपने घर जाने को क्यों मजबूर हो रहे है, विचारणीय पहलू है।  इस विकट परिस्थिति में जहां कोरोना से संक्रमण होने का सर्वाधिक रूप से खतरा बना हुआ है फिर भी उनके सामने कौन सी ऐसी मजबूरी आ खड़ी हो गई जिसके चलते ऐनकेन प्रकारेण अपने धर लौटने के लिये मजबूर हो रहे है। जबकि लॉकडाउन काल में उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि देष में रेल, बस सेवा से लेकर तमाम यातायात के सारे संसाधन बंद पड़े है। फिर भी अपने कार्यस्थल से अपने गृह प्रदेष को पैदल ही रेल की पटरियों के सहारे नन्हें बच्चों, अपने वृद्ध माता पिता के साथ जाते हुये नजर आ रहे है। जहां तपती धूप है, तो वर्शा व आंधी, तूफान का मौसम सामने है। उन्हें मार्ग में आने वाली अनेक तरह की विपदा भी मालूम है, वे अपने गंतव्य तक पहुंच पायेंगें भी कि नहीं, पता नहीं फिर भी अपने अपने कार्यस्थल को छोड़ अपने घर जाते दिख रहे है। उनके इस प्रयास में जो भी साधन मार्ग में दिखाई पड़ता है, उसे हर हालत में पकड़ कर षीघ्र से षीघ्र घर की ओर जाते दिखाई दे रहे है। इस दिषा में कहीं कहीं भेड़ बकरियों जैसी हालत नजर आ रही है जहां बाहर से माल लेकर आये वाहनों की वापसी पर चढ़कर जाते दिखाई दे रहे है। आज इनकी इस विकट परिस्थितियों को देखकर दिल दहल जाता है । 
    विष्वव्यापी इस महामारी कोरोना वायरस का प्रतिकुल प्रभाव आम जनजीवन पर विषेश रुप से पड़ा तो है ही, सर्वाधिक रूप से रोजगार प्रभावित हुआ है। सबसे ज्यादा रोजगार क्षेत्र में इसका प्रतिकूल प्रभाव दैनिक मजदूरी से जुड़े सर्वाधिक आमजन पर पड़ा है। लॉकडाउन के बाद देष के बड़े षहरों, महानगरों में देष के सभी भागों से काम धंधे की तलाष में आये लाखों की तयदाद में दिहाड़ी मजदूर कोरोना वायरस काल में नियंत्रण हेतु उठाये लॉकडाउन से बूरी तरह प्रभावित अवष्य हुये पर कोरोना वायरस जैसे खतरनाक महामारी को फैलने से रोकने की दिषा में लॉकडाउन से बेहतर फिलहाल कुछ नहीं हो सकता। जब से देष के एक प्रदेष से दूसरे प्रदेष में रोजगार करने आये आम मजदूरों के रोजगार बंद हो गये, उनके सामने रहने एवं खाने पीने की समस्या जटिल हो गई। उनके रोजगार खुलने के आसार नजर नहीं लगे तो वे चिंतित हो उठे। एक तरफ खतरनाक महामारी का डर तो दारी ओर  रोजगार छिन जाने की स्थिति,घर की ओर लौटने की मानसिकता पैदा कर दी। इस तरह के हालात में सरकारी मदद उंट के मूंह में जीरा सदृष लगा।  ऐसी परिस्थिति में उन्हें जीवन बचाने के मार्ग बंद नजर आने लगे। सरकार द्वारा बार - बार उन्हें संरक्षण देने की बात संतोशजनक नहीं दिखाई दी। लॉकडाउन के बार - बार बढ़ने से वे और ज्यादा चिंतित हो उठे। मकान मालिक किराया मांगे, राषन वाला बकाया मांगे, इधर काम नहीं, सरकारी सहायता का सही वितरण नहीं। इस तरह के उपजे हालात उन्हें घर जाने को मजबूर कर दिये हों। आखिर कोई न कोई कारण रहा ही होगा जो प्रवासी मजदूरों को अपने घर की ओर लौटने को मजबूर कर रहा होगा। वर्तमान हालात में जहां महामारी थमने का नाम नहीं ले रही है प्रवासी मजदूरो का पलायन होना किसी के हित में नहीं है। इससे इस महामारी को फैलने में और मदद मिल सकती है। इस दिषा में विषेश रूप से मंथन कर ऐसा मार्ग निकालने जाने की जरूरत है जिससे पलायन रूक सके। 
(लेखक -डॉ. भरत मिश्र प्राची )

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