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तो क्या प्रियंका गांधी किराए पर बसों को लेकर योगी सरकार को सौंपती? 

तो क्या प्रियंका गांधी किराए पर बसों को लेकर योगी सरकार को सौंपती? 

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी की प्रभारी श्रीमती प्रियंका गांधी ने गत 15 मई को जब मजदूरों के लिए बसें उपलब्ध करवाने का प्रस्ताव रखा, तब प्रियंका को उम्मीद नहीं थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेंगे। प्रस्ताव के अनुरूप जब योगी सरकार ने प्रियंका गांधी से एक हजार बसें मांग ली तो आनन-फानन में कांग्रेस शासित राजस्थान और पंजाब से तीन सौ बसें मंगवा कर राजस्थान यूपी बॉर्डर पर खड़ी कर दी गई। ये बसें 18 मई से ही बार्डर पर खड़ी है और भाजपा को पंजाब और राजस्थान से बसें मंगवाने पर ऐतराज है। सवाल उठता है तो क्या प्रियंका गांधी किराए पर बसें लेकर योगी सरकार को उपलब्ध करवाती? आखिर प्रियंका गांधी बसों को कहां से लाती। देश में ऐसा कोई राजनेता है जो राजनीति के कारणों से बसों को किराए पर लेकर जरुरतमंद को उपलब्ध करवाए। आखिर प्रियंका गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव हैं और यदि अपनी पार्टी के शासन वाले दो राज्यों से बसों को मंगवा लिया तो इसमें हर्ज क्या है? राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने भी तो राजनीतिक नजरिए से ही बसें उपलब्ध करवाई। राजस्थान में निजी क्षेत्र की लोक परिवहन सेवा की बसें ही सरकार के रोडवेज में काम आती है। लोक परिवहन सेवा की बसों के मालिकों को रोडवेज के मार्गो पर बसें चलानी है तो प्रियंका गांधी की राजनीति के लिए बसें भेजनी ही पड़ेगी। इसी प्रकार पंजाब से भी जो बसें बॉर्डर पर आई, उनके मालिक भी पंजाब में सरकारी मार्गों पर ही बसें चलाते हैं। जिस बस मालिकों की नकेल राजस्थान और पंजाब के परिवहन मंत्रियों के पास हो वो बस मालिक किसी से किराया मांगने की हिम्मत कर सकता है? यह बात अलग है कि ऐसे बस मालिक किराए को लेकर अपनी जुबान पर ताला लगाए रखेंगे। आखिर इस नुकसान की भरपाई भी तो पंजाब और राजस्थान की सरकारें ही करेंगी। भाजपा का ऐतराज बेवजह का है। क्या यूपी में प्रियंका गांधी की राजनीति चमकाने के लिए अमरेन्द्र सिंह और अशोक गहलोत दो-चार सौ बसें भी उपलब्ध नहीं करवा सकते? बसों का उपयोग हो या नहीं इससे प्रियंका गांधी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने तो योगी सरकार के मांगने पर बसें उपलब्ध करवा दी है। ताजा जानकारी के अनुसार यदि 20 मार्च को सायं चार बजे तक योगी सरकार ने बसें ग्रहण नहीं की तो प्रियंका गांधी बसों को वापस अमरेन्द्र सिंह और अशोक गहलोत के पास भिजवा देंगी। सवाल यह नहीं है कि बसों का फिटनेस नहीं है या फिर चालक का मेडिकल टेस्ट। सवाल यह है कि इन तीन दिनों में तीन सौ बसों से हजारों मजदूरों को अपने घरों तक पहुंचाया जा सकता है। एक ओर सड़क पर चल कर मजदूर अपनी जान देने को मजबूर है तो दूसरी ओर तीन दिन से तीन सौ बसें खाली खड़ी हैं। राजनीति के शतरंज में कोई नेता किसी से मात नहीं खाना चाहता, अब प्रियंका गांधी कह सकती है कि हमने तो मजदूरों के लिए बसें उपलब्ध करवा दी थी, लेकिन योगी सरकार ने उपयोग नहीं किया। वहीं बसों का उपयोग नहीं करने के सौ कारण यूपी सरकार गिनवा देगी। इस बीच प्रियंका गांधी की राजनीति की वजह से भरतपुर जिले की ऊंचा नंगला सीमा राजनीति का अखाड़ा बन गई है। भरतपुर  के जिला कलेक्टर नथमल डिडेल तथा पुलिस अधीक्षक हैदर अली जैदी स्वयं बॉर्डर पर तैनात है। यूपी के आगरा जिले में प्रवेश करने वाली सीमा के एक तरह अशोक गहलोत की पुलिस खड़ी है तो दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ की फोर्स। सीमा पर सिर्फ राजनेता ही आमने सामने नहीं है, बल्कि अखंड भरत में दो राज्यों की पुलिस भी आमने-सामने है। कोई कुछ कर ले, लेकिन भरतपुर जिले की सीमा में खड़ी पुलिस वो ही करेगी जो अशोक गहलोत कहेंगे। इसी प्रकार आगरा जिले की सीमा में खड़ी पुलिस को योगी आदित्यनाथ का इशारा समझना ही पड़ेगा। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और राजस्थान में गहलोत को सीएम बनवाने का दावा करने वाले विवेक बंसल ने सीमा पर ज्यादा उछल कूद की तो योगी की पुलिस ने आगरा के पुलिस स्टेशन पर ले जाकर बैठा दिया। राजस्थान में जहां बड़े बड़े आईपीएस बंसल को सेल्यूट मारते हैं, वहीं आगरा के थाने पर कांस्टेबल ने पानी के लिए नहीं पूछा। बेहतर हो कि विवेक बंसल राजस्थान की सीमा में ही रहें।  
(लेखक-राजकुमार अग्रवाल)

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