
मुंबई। वैश्विक महामारी से जूझ रही दुनिया में हर देश वैक्सीन की जुगत में लगा है। शोध में नियम मानने, मंजूरी को लेकर लापरवाही जैसी खामियां, कम्युनिकेश गैप नजर आ रहा है। इस दौर में पंकज कपूर की एक फिल्म 'एक डॉक्टर की मौत' मौजूं हो जाती है, जिसमें वे एक वैक्सीन पर शोध कर रहे होते हैं। फिल्म को डायरेक्ट किया था तपन सिन्हा ने। फिल्म में भी वैक्सीन खोजने की जद्दोजहद होती है। पंकज के आलावा शबाना आजमी लीड रोल में हैं। एक डॉक्टर की मौत वैक्सीन खोज के बहाने सिस्टम और मेडिकल सिस्टम में उस वक्त व्याप्त अफसरशाही पर कमेंट है। 1990 में आई फिल्म को नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने प्रोड्यूस किया था।
फिल्म में पंकज कपूर एक सरकारी डॉक्टर बने हैं। वे अपने घर पर ही लेप्रसी का वैक्सीन खोजने के लिए लैब बनाते हैं। वे वैक्सीन बनाने के लिए चूहों-बंदर पर शोध करते हैं। इससे कई मौकों पर पारिवारिक जीवन में दिक्कत भी आती है। हालांकि, इस काम में सिस्टम उनका साथ नहीं देता। एक बार वे जब दावा करते हैं कि उन्हें वैक्सीन मिल गई है और वे जल्द ही पेपर लिखकर सबमिट कर देंगे, तो बाहर के डॉक्टर्स और सिस्टम उनका तबादला दूर के एक गांव में कर देता है, जहां विदेश के डॉक्टर-प्रतिनिधि आकर उनसे मुलाकात करते हैं लेकिन वे फिर भी पेपर लिख नहीं पाते और अपने शोध को अंतिम रूप नहीं दे पाते। इस बीच विदेश में इसी बीमारी पर और कई लोग काम कर रहे होते हैं वे वैक्सीन बना लेते हैं। विदेशी संगठन से जब लेटर आता है तो उसमें जिक्र होता है कि पेपर सबमिट ना होने के कारण पंकज कपूर के शोध को मान्यता नहीं मिली। इस फिल्म में पंकज कपूर के अलावा इरफान खान ने भी शानदार एक्टिंग की थी। इरफान कि ये शुरुआती फिल्म थी। फिल्म में इरफान खान एक जर्नलिस्ट की भूमिका में होते हैं जो पकंज कपूर के शोध के बारे में अखबारों में लेख प्रकाशित करते हैं।