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बीच बहस में :सेना का मनोबल व सम्मान 

बीच बहस में :सेना का मनोबल व सम्मान 

इन दिनों भारत चीन के मध्य तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गयी है। पूर्वी लद्दाख़ की चीन सीमा से लेकर अरुणाचल प्रदेश -चीन सीमा तक कई जगह चीनी सेना द्वारा भारतीय सीमा के भीतर कई बड़े क्षेत्रों में चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा न केवल घुसपैठ किये जाने बल्कि कुछ ठिकानों पर सैन्य आधार स्थापित किये जाने तक की ख़बरें हैं। सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार चीन ने गलवान क्षेत्र में भारतीय सीमा क्षेत्र के भीतर घुसपैठ की यह कार्रवाही 5 मई के बाद की गयी है। इस विषय पर दो बातें बहस का केंद्र बनी हुई हैं । एक तो गलवान घाटी में 15 जून की रात सीमाओं की रक्षा करते हुए भारतीय सेना व पी एल ए के बीच हुई मुठभेड़ में एक अधिकारी सहित 20 भारतीय जवानों का शहीद होना। और दूसरे 19 जून को बुलाई गयी सर्व दलीय बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा इसी घटना के संबंध में यह बयान दिया जाना कि - 'न वहाँ कोई हमारी सीमा में घुस आया है,न ही कोई घुसा हुआ है ,न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के क़ब्ज़े में है'। ग़ौर तलब है कि भारत चीन सीमा से 45 वर्षों बाद पहली बार सैनिकों के शहीद होने के दुःखद समाचार मिले हैं।
एक लोकताँत्रिक देश होने के नाते पक्ष-विपक्ष के नेता तो क्या देश के प्रत्येक नागरिक को इन परिस्थितियों में चिंतित होना स्वभाविक है। ख़ास तौर पर देश की सेना, जागरूक व अनुभवी पूर्व सैनिकों,सैन्य अधिकारियों व सैन्य विषज्ञों का न केवल चिंतित होना बल्कि सरकार व देश को यथास्थिति से अवगत करना व सलाह मशविरा देना भी स्वभाविक है। हमारे देश के कई सैन्य अधिकारियों द्वारा अपने आलेखों व अन्य माध्यमों से सरकार को बाख़बर करने कोशिशें की जाती रही हैं कि गलवान घाटी में चीनी सेना अपनी घुसपैठ बढ़ाती जा रही है। सीमा पर पेट्रोलिंग व सैन्य अभ्यास के बहाने घुसी चीनी पी एल ए अब वहां से वापस जाने के बजाए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में पक्के निर्माण व बनकर आदि बना रही है। वर्तमान आधुनिक सूचना प्रणाली के युग में जब हर समय सैटलाइट्स द्वारा पूरी दुनिया के चप्पे चप्पे पर नज़र रखी जा सकती है और संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना द्वारा ख़ास तौर पर सीमा क्षेत्रों में हवाई गश्त करने के साथ साथ विशेष सैन्य सैटलाइट्स के ज़रिये भी निगरानी की जाती है। ऐसे में यह समझ पाना बहुत मुश्किल है कि भारत की और से चीनी सेना का जमावड़ा शुरू होने के पहले ही चरण में भारत ने अपना विरोध क्यों नहीं दर्ज कराया।
दूसरी समस्या प्रधानमंत्री के उस बयान से खड़ी हुई जिसमें उन्होंने 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद यह कहा कि-'न वहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है,न ही कोई घुसा हुआ है ,न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के क़ब्ज़े में है। इसपर सवाल यह उठा कि फिर आख़िर हमारे जवानों ने शहादत किस लिए दी ? चीन ने भी प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान को अपने पक्ष में पाया और उनकी तारीफ़ की जाने लगी। हालांकि बाद में इस संबंध में प्रधान मंत्री कार्यालय से कुछ स्पष्टीकरण भी आए परन्तु तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी। और मोदी का न कोई घुसा न कोई घुसा हुआ है वाला बयान चीनी मीडिया व सोशल मीडिया में हू  बहु छा चुका था। बहरहाल इस ऊहापोह के मध्य भारत में दो तरह के विचारों के बीच बहस छिड़ गयी । एक वे भारतीय वे राजनेता,राजनैतिक दल,सैनिक,पूर्व सैन्य अधिकारी व सैन्य विशेषज्ञ,बुद्धिजीवी,लेखक व पत्रकार आदि,जो सरकार से यह सवाल कर रहे हैं कि सरकार से इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हुई कि चीनी सेना भारतीय सीमा क्षेत्र में घुस आई ? और दूसरा सवाल यह कि चीनी सैनिकों के भारतीय सीमा क्षेत्र में घुसे होने के बावजूद प्रधानमंत्री ने यह कैसे कह दिया कि-' न कोई घुसा न कोई घुसा हुआ है'? दूसरी विचारधारा वह है जो प्रधानमंत्री की हर बात को व हर फ़ैसले को सही बताने पर आमादा है। इतना ही नहीं वह देश की जनता से यह उम्मीद भी रखती है कि वह भी प्रधानमंत्री की हर बात को अक्षरशः माने। और यदि कोई व्यक्ति यहाँ तक कि  कोई पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारी व सैन्य विशेषज्ञ भी अपने अनुभव के आधार पर तथ्यों के साथ कुछ लिखता,बोलता या मशविरा देता है तो सत्ता के हिमायती विचारधारा के लोग उसे गलियां देने व अप शब्द कहने तक से बाज़ नहीं आते। इस मिशन में सत्ता की भाषा बोलने वाला पूरा मीडिया तंत्र भी अपने व्यावसायिक फ़ायदे की नज़र से लगा हुआ है। यहाँ तक कि सरकार को बचाने के लिए यदि सैनिकों को भी अपमानित करना पड़े तो भी इन्हें कोई एतराज़ नहीं। ऐसा ही पहला प्रयास 'आज तक' टी वी चैनल की एक न्यूज़ एंकर श्वेता सिंह द्वारा अपनी एक असाधारण टिप्पणी में किया गया जब उन्होंने यह कहा कि -'ये सवाल उठाना कि चीनी सेना हमारी ज़मीन पर आ गई और हम सोते रहे, ये सरकार पर नहीं सेना पर ही सवाल होता है क्योंकि पेट्रोलिंग की ड्यूटी सरकार की नहीं होती है सेना की होती है।' इस टिप्पणी को सेना के शौर्य को लेकर जानबूझकर ग़लत व भ्रामक जानकारी फैलाए जाने व देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा व देश की सीमाओं की रक्षा में शहीद सैनिकों का अपमान मानते हुए श्वेता सिंह को क़ानूनी नोटिस भेजा गया है।
इसी तरह मई 2017 को वजूद में आया एक ऐसा ही एक नया टी वी चैनल है रिपब्लिक टी वी। वैसे तो इसका स्वामित्व अर्नब गोस्वामी के नाम बताया जाता है परन्तु सूत्रों के अनुसार इसमें एक भाजपा सांसद की पूँजी लगी हुई है। शायद यही वजह है कि यह चैनल न केवल सत्ता पक्ष के एजेंडे के अनुसार अपने कार्यक्रम निर्धारित व प्रसारित करता है बल्कि उसके निशाने पर सत्ता के बजाए विपक्षी दल या सत्ता से सवाल करने वाले लोग ही रहते हैं। इसी चैनल में मेजर गौरव नाम का एक ऐसा व्यक्ति कार्यरत है जिसने शॉर्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से सेना में केवल 5 वर्ष  नौकरी की है। यह व्यक्ति अपने से कहीं वरिष्ठ और पूरा जीवन भारतीय सेना की सेवा में गुज़ारने वाले तथा वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञों को ट्वीटर के माध्यम से सिर्फ़ इसलिए गालियां देता है क्यों कि यह लोग सरकार को सचेत करने उसे सीमा की यथास्थिति से अवगत कराने व सीमा पर मंडराने वाले  ख़तरों से अवगत कराते रहते हैं। परन्तु सरकार को अंधेरे में रखने व अपनी चाटुकारिता के बल पर सरकार से फ़ायदा उठाने वाले इस प्रवृति के और भी अनेक लोगों से यह स्पष्टवादिता या आलोचना सहन नहीं हो पाती। नतीजतन लेफ़्टिनेंट जनरल  हर चरणजीत सिंह पनाग,ब्रिगेडियर संदीप थापर व अजय शुक्ला जैसे वरिष्ठ सैन्य विशेषज्ञ  मन अमन सिंह चिन्ना जैसे सम्मानित लोग इस व्यक्ति से गालियां खाते हैं। पिछले दिनों गौरव ने ट्वीटर  पर कहा -'सैंडी थापर ,जनरल पनाग और मन अमन सिंह चीमा - यह मत सोचो कि मैं जवाब नहीं दे सकता। रोना मत अगर सार्वजनिक तौर पर तुम्हारी पिटाई होगी। जो करना है करलो -इसके बाद उसने इन अधिकारियों को भद्दी गलियां दीं। हालाँकि सूत्रों के मुताबिक़ बाद में मामले को तूल पकड़ता देख गौरव ने ब्रिगेडियर संदीप थापरको फ़ोन कर माफ़ी भी मांग ली व अपना विवादित ट्वीट भी डेलीट कर दिया। 
सत्ता के चाटुकारों द्वारा सेना में उम्र गुज़ारने वालों व देश की सरहदों की रक्षा करने वालों के साथ ऐसे शब्दों का प्रयोग तब किया जा रहा है जबकि हमारे प्रधानमंत्री जनता का यह आवाह्न कर चुके हैं कि जहाँ कहीं भारतीय सैनिक दिखाई दें तो उनके सम्मान में खड़े होकर तालियां बजानी चाहिए। परन्तु आज गौरव जैसे अनेक लोग हैं जो सैन्य अधिकारियों और रक्षा विशेषज्ञों को गालियों व ऐसे अपशब्दों से 'नवाज़' रहे हैं जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। सरकार यदि वास्तव में सैनिकों के सम्मान के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे श्वेता सिंह व गौरव जैसे लोगों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई करते हुए यह सन्देश दे देना चाहिए कि राष्ट्रवाद को सर्वोपरि समझने वाली यह सरकार सेना के मनोबल व सम्मान के प्रति कितनी गंभीर है।
(लेखक-तनवीर जाफ़री)

 

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