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अब हिंदी विरोध का हथियार चला रहा है नेपाल! 

अब हिंदी विरोध का हथियार चला रहा है नेपाल! 

चीन की गोद मे बैठकर नेपाल भारत के विरुद्ध अब हिंदी को ही हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।यह कार्यावाही नेपाल के प्रधानमंत्री को भारी पड़ सकती है।क्योंकि हिंदी के बचाव के लिए नेपाल के ही दो पूर्व प्रधानमंत्री व कई सांसद प्रधानमंत्री के सामने आ खड़े हुए है।
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपनी सियासी बगावत से लगातार देश की जनता का ध्यान भटका रहे हैं। इसके लिए उन्होंने भारत की लोकप्रिय भाषा हिंदी के विरोध को हथियार बनाया है। नेपाल की तराई आबादी भारतीय भाषाएं ही बोलती है।इसलिए
नेपाल सरकार के लिए हिंदी भाषा पर प्रतिबंध लगाना आसान नहीं होगा। नेपाली के बाद इस हिमालयी देश नेपाल में सबसे ज्यादा मैथिली, भोजपुरी और हिंदी बोली जाती है। नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाली ज्यादातर आबादी भारतीय भाषाओं का ही प्रयोग करती है। ऐसी स्थिति में अगर नेपाल में हिंदी को बैन करने के लिए कानून लाया जाता है तो तराई क्षेत्र में इसका कड़ा विरोध देखने को मिल सकता है। वैसे भी इन इलाकों के लोग सरकार से खुश नहीं हैं।
नेपाल में उभरे इस नए ‘राष्ट्रवाद’ को भड़काकर वे पार्टी में उनके खिलाफ आवाज उठाने वालों और अपने अन्य विरोधियों को उलझाने में लगे हैं। अब वे संसद में हिंदी भाषा को प्रतिबंधित करने की तैयारी  कर रहे हैं।
नेपाल सरकार पहले से ही भारत के साथ सीमा विवाद और नागरिकता को लेकर कड़े तेवर दिखा चुकी है। लेकिन, हिंदी भाषा के मुद्दे पर जनता समाजवादी पार्टी की सांसद और मधेशी नेता सरिता गिरी ने सदन के अंदर नेपाल के प्रधानमंत्री का जोरदार विरोध जताया। उन्होंने कहा कि हिंदी पर प्रतिबंध लगाकर सरकार तराई और मधेशी क्षेत्र में कड़े विरोध को न्यौता दे रही है। उन्होंने ओली से पूछा कि क्या इसके लिए उन्हें चीन से निर्देश दिए गए हैं। उधर, जनता में कोरोना को लेकर ओली सरकार के खिलाफ पहले से ही नाराजगी है।
नेपाल को मालूम होना चाहिए कि हिंदी केवल भारत की भाषा नही है बल्कि यह मनुष्य मात्र की जन्म की भाषा भी है।अंग्रेजी को दुनिया का पासपोर्ट बताने वाले भूल जाते है कि दुनिया मे कही भी,किसी भी देश मे जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसके रुदन की भाषा मे हिंदी के ही स्वर गूंजते है। इसलिए हिन्दी सिर्फ भारत की नही अपितु संसार भर की भाषा है। कुछ वर्ष पूर्व एक सांसद  ने संसद में एक विधेयक प्रस्तुत कर देश का नाम भारत या हिन्दुस्तान रखने और इण्डिया नाम समाप्त करने की मांग की थी। इन सांसद  का तर्क है कि इण्डिया शब्द से अंग्रेजी की बू आती है ,जो हिन्दी के भारत के लिए उचित नही है। एक संत ने तो राष्ट्रपति  को पत्र लिखकर पूछा था कि हमारे देश का वास्तविक नाम क्या है? यानि हिन्दुस्तान है या भारत या इण्डिया अथवा कुछ ओर? भारतीय संविधान में भी देश को इण्डिया देट इज भारत रूप में परिभाषित किया गया है। भारत को छोडकर दुनिया में कोई भी दूसरा ऐसा देश नही होगा जिसके नाम को परिभाषित करने की जरूरत पडती हो।चूंकि भारत शब्द शकुन्तला पुत्र भरत से आया है जो हमारी भारतीय विरासत की पहचान है इसलिए देश का नाम भारत मात्र ही होना चाहिए और अपने देश को किसी भी रूप में परिभाषित करने की आवष्यकता नही है। यही हिन्दी है हम वतन है ,की पहचान भी भारत की है। ऐसा करना हिन्दी के प्रति सम्मान भी है। भारत के ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुडे स्कूलों में बीस साल पहले तक प्राइमरी शिक्षा से अंग्रेजी नदारद थी। यानि बच्चे को उसकी मातृ भाषा में ही अक्षर ज्ञान कराकर पांचवी तक पढाई कराई जाती थी और कक्षा 6 से अंग्रेजी का अक्षर ज्ञान कराया जाता था। परन्तु समय के साथ आए बदलाव से अ,आ,इ,ई व क,ख,ग तथा 1, 2, 3, 4 सीखाने से पहले अब ए बी सी डी और वन टू थ्री सीखाया जाने लगा है। हिन्दी की अंक माला तो जैसे इतिहास ही बन गई है। आज हिन्दी भाषाई भी हिन्दी अंको के बजाए अंग्रेजी अंको को अपनाने लगे है। जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। जब हम हिन्दी में लिखते है तो अंको को अंग्रेजी में लिखने की क्या मजबूरी है। हिन्दी अंक न सिर्फ सहज है बल्कि लिखने और दिखने में भी सुन्दर लगते है। इसलिए हिन्दी अंकमाला को मरने से बचाना चाहिए ,तभी हिन्दी पूर्ण रूप से सुरक्षित कही जा सकेगी।                  
अंग्रेजी सीखना और उसमें विद्वता प्राप्त करना बुरी बात नही है, लेकिन हिन्दी की कीमत पर यानि हिन्दी को दांव पर लगाकर अगर अंग्रेजियत सिर चढकर बोलती है तो यह भारत के लिए भाषाई खतरे का संकेत है। यही ख़तरा नेपाल भी जानबूझ कर पैदा कर रहा है।भला वह जन्म की भाषा हिंदी को कैसे प्रतिबंधित कर सकता है।जब बच्चे के रूदन की भाषा एक है और वह हिंदी है तो फिर यह विरोध कैसा ? बच्चों के  रूदन में अंग्रेजी, जर्मनी, फ्रेंच ,जापानी आदि भाषा कही दिखाई नही पड़ती। जबकि हिन्दी भाषा के स्वर व व्यंजन का समावेश हर नवजात शिशु के रोने पर सुनाई पडता है। जिससे कहा जा सकता है कि हिन्दी पूरी दुनिया की प्राकृतिक भाषा है।
दुनिया भर के शिशुओं की भावाभिव्यक्ति रूदन भाषा का एक होना, उसका हिन्दीमय होना, यह प्रमाणित करता है कि हिन्दी हर भाषा के मूल में है अर्थात हिन्दी ही सब भाषाओं की जननी है। दुनिया मे हिन्दी के पिछड़ने का कारण हिन्दी के अज्ञानियो द्वारा अंग्रेजी का लबादा ओढ़कर स्वयं को श्रेष्ठ प्रदर्शित करने से भी है। हांलाकि ऐसे लोगो को न हिन्दी आती है और न ही  अंग्रेजी। अंग्रेजी को हिन्दी में मिलाकर काॅकटेल भाषा के नाम पर हिन्दी और अंग्रेजी दोनो की भदद् पीटने वालो ने दोनो भाषाओं को क्षति पहॅुचाने का काम किया है।  हिन्दी को समृद्व करने के लिए सरकार और जनता दोनो को इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।  हिन्दी फिल्मों के नाम पर पेट भरने वाले फिल्मकार जब पर्दे से बाहर हिन्दी छोड़कर अंग्रेजी में बात करते है तो शर्म आने लगती है। लोगो को जान लेना चाहिए हिन्दी किसी भी दृष्टि से कमजोर भाषा नही है। वह ऐसी भाषा है जिसे बौध धर्म ने संसार भर में अपने अनुयायीयो के माध्यम से फैलाया। भगवान महावीर ने तो ढाई हजार साल पहले वनस्पति में जीवन का रहस्य हिन्दी में ही प्रकट किया था। सर्वाधिक अक्षरों की भाषा हिन्दी हर दिल पर राज करे इसके लिए राजनेताओ को भी इच्छाशक्ति जागृत करनी होनी।उन्हे वोट मांगने के लिए हिन्दी और संसद में जाकर अंग्रेजी का लबादा ओढने की प्रवति से बचना होगा। ऐसे नेताओ को ससंद में भी हिन्दी अपनाकर यह संदेश देना होगा कि हिन्दी हमारी मातृ भाषा ही नही देश  और विश्व की राष्ट्रभाषा भी है।  जिस तरह से हिन्दी सिनेमा के कलाकारो को हिन्दी फिल्मों में काम करने के लिए हिन्दी सीखनी पडती है। उसी तरह देश के नेताओ के लिए भी ससंद व विधान सभा पहुंचने लिए हिन्दी अनिवार्य करनी होगी। तभी हिन्दी एक पूरा संसार का नारा सार्थक माना जाएगा और हिन्दी अपने पैरो पर खडे होकर देश दुनिया में गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त कर सकेगी । हिन्दी चूंकि हमारे जन्म की भाषा है और जन जन की भाषा है इस लिए अपने देश ही नही पूरी दुनिया में हिन्दी सिर चढकर बोली जानी चाहिए।तथा नेपाल की जनता को भी हिंदी बचाने के लिए अपने प्रधानमंत्री की हिंदी विरोधी मानसिकता का विरोध करना चाहिए।तभी नेपाल टूटने से बच सकता है।
जन्म के समय जो मिली
वही भाषा होती महान
मातृभूमि जितनी पावन
मातृभाषा को भी जान
मातृभाषा ह्रदय की भाषा
सरल सबसे उसको जान
अभिव्यक्ति में सशक्त बहुत
लेखन में भी प्रबल जान
मातृभाषा ईश्वरीय भाषा
उसी में पाओ प्रभु का ज्ञान
जन्म की भाषा हिंदी है
दुनिया मे बस वही महान।
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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