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पर्यटन-पर्यावरण और प्रकृति में जंगलों का योगदान 

पर्यटन-पर्यावरण और प्रकृति में जंगलों का योगदान 

दुनियां भर की सारी की सारी पृथ्वी पर चलता फिरता मनुष्य प्रकृति द्वारा संचालित ईश्वर की अनुपम देन है और जब यही मनुष्य कुदरत पर उंगुली उठाता है, उसे चुनौती देता है, उससे अनावश्क छेड़ छाड़ करता है तो विपरीत आते परिणाम मानव समाज को ही भुगतना पड़ते है फिर चाहे वह किसी भी रुप में रहे हो इंसान कुदरत की मार से बच नही पाता। आज सारी दुनियां कोरोना वायरस से परेशान है इस महामारी में भी कही न कही इंसान की गलतियां शामिल है जिसे वह भुगत रहा है।  ठीक इसी प्रकार पर्यावरण भी प्रकृति संचालन का ही एक अहम हिस्सा है यानि मानव समाज और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक है। अतएव यह कहना गलत नहीं होगा कि मानव और पर्यावरण एक ही सिक्के के दो पहलू होकर इनका आपस में चोली दामन का साथ है। जब-जब भी मनुष्य ने आपस में स्थापित संतुलन को बिगाड़ने का प्रयास किया है परिणाम घातक ही सामने आए है।
मानव प्रकृति पर्यावरण में संतुलन सामंजस्य बना रहे इस हेतु हमारे जीवन में हमेशा से पेड़ पौधे हरियाली का उल्लेखनीय महत्वपूर्ण संबंध स्थापित रहा है | मानव जीवन में पेड़ पौधे पर्यावरण तक सीमित नहीं किए जा सकते यह तो मानव जीवन का एक अनिवार्य अंग होकर जीवन जीने का आधार है वगैर पेड़-पौधौं अथवा जंगल के मानवीय जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती। हमें याद रखना होगा कि भारतीय परिवेश में हरे-भरे पेड़ एक नही कई तरह की प्रचलित मान्यताओं के तहत पूज्यनीय है यानि पेड़-पौधों का धार्मिक महत्व भी उजागर है। वही इन तथ्यों से हम भलिभांत परिचित है कि पेड़-पौधौं का हमारे स्वास्थ के अलावा रोजगार चाहे वह गुणकारी जड़ी-बूटी, तेंदू पत्ता आदि के माध्यम से रहा हो, सब मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जंगल अथवा वृक्षों का देश-प्रदेश की समृद्धि में प्रद्धत योगदान को भुलाया नही जा सकता। अतएव हम सब का यह नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक दायित्व बन पड़ता है कि पौधारोपण ही नही करें अपितु उस पौधा की देखभाल भी करें ताकि वह वृक्ष बन कर हरियाली के साथ देश-प्रदेश के विकास में अपना मूक योगदान दे सकें।
जग जाहिर है कि चंदेरी एक प्राकृतिक सौंदर्य युक्त रमणीय पर्यटन स्थल है। नगर में आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों को जितना किला, महल, मंदिर-मस्जिद, मठ-मकबरा, कुंआ-बावड़ियां, पत्थरयुक्त पुरानी गलियां और हथकरघा पर निर्मित चन्देरी साड़ियां इत्यादि आकर्षित करती हैं।
उसी अनुपात में यहां स्थित ऊंची-नीची पहाड़ियां, घने जंगल, बरसात में पहाड़ों पर दिखाई देती घनी-घनी हरियाली उसके मन को एक अलग प्रकार के आनंद और सुकून का अनुभव प्रदान करती है। इतिहास गवाह है कि प्रागैतिहासिक अथवा पाषाणकाल में मानव सभ्यता जंगल, पहाड़ी गुफाओं में ही पली पुसी है।  चंदेरी के जंगल-हरियाली का पर्यटन क्षेत्र में अहम मुकाम है क्योंकि एक नहीं अनेक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भारत सरकार) द्वारा संरक्षित राष्ट्रीय महत्व  के स्मारक एवं म.प्र.शासन पुरातत्व विभाग द्वारा ऐतिहासिक महत्व के संरक्षित स्मारकों के अलावा अन्य दर्शनीय धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल वन क्षेत्र अंतर्गत स्थापित हैं। मसलन बूढ़ी चंदेरी के मंदिर, गढ़ी आदि, बत्तीसी बावड़ी, कटी घाटी, बेहटी मठ, लिखीदांत शैलाश्रय नानौन, सिंहपुर महल, भरकाधाम, मालन खो इत्यादि।
बेशक *पचमढ़ी* मध्य प्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन है। तो यह भी उतना ही सच है कि चंदेरी ग्वालियर संभाग का एकमात्र *हिल स्टेशन* है। दोनों में यदि अंतर देखें तो पचमढ़ी बारह माह *हरी-भरी* दिखाई देती है चंदेरी नहीं।
कारण है चंदेरी की पहाड़ियों को मनुष्य अपने स्वार्थवश बहुत हद तक नंगा करने में जुटा हुआ है वह यह नही समझ रहा है कि नुक्सान मानव समाज को उठाना है और यह भी सत्य है कि उसके द्वारा किए जा रहे प्रकृति के विरूद्ध कृत्यों का   बेबजह खामियाजा नगर का पर्यावरण-पर्यटन भुगत रहा है। फिर भी बरसात के मौसम में हरी-भरी पहाड़ियां चंदेरी को पचमढ़ी के मुकाबले में लाकर खड़ा कर देती है। हम खुशनसीब है कि जिला अशोकनगर अंतर्गत सर्वाधिक जंगल चन्देरी क्षेत्र में मौजूद है। बेतबा एवं ओर (उर्वशी) नामक दो प्राचीन नदियां भी चन्देरी क्षेत्र से गुजरती है। आशय यह है कि कुदरत ने अपनी नायाब नियामतों से हमें नवाजा है तो हमारा भी नैतिक दायित्व बनता है कि हम उस कुदरती दौलत को संभाल कर रखें लेकिन विपरीत इसके देखा यह जा रहा है जंगलों में खड़े पेड़ों को बेहताशा काटा जा रहा है अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते अतिक्रमण, दोहन आदि कर प्रकृति की छाती को छलनी किया जा रहा है। 
चंदेरी स्थित *मुड़िया पहाड़, कटी घाटी पहाड़, किला-कोठी पहाड़, अन्य छोटी पहाड़ियां* ऐसे प्राकृतिक स्थल हैं  जो चंदेरी के प्राकृतिक सौंदर्य में जबरदस्त चार गुना ज्यादा इजाफा करते हैं। विशेष रूप से *किला-कोठी नामक पहाड़* एक ऐसा रमणीय स्थल है जो नगर से लगभग 225 फीट की ऊंचाई लिए हुए साथ ही पहाड़ पर *किला, जौहर स्मारक, बैजू बावरा स्मारक, बारादरी, किला सुरक्षा दीवार एवं कोठी* की स्थापना होने के कारण चंदेरी पर्यटन में अहम किरदार है। किला से दिखाई देता चारों दिशाओं का खूबसूरत दिलकश नजारा आंखों को ठंड़ा कर देता है। 
मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा कोठी को *हेरिटेज होटल* में परिवर्तित किए जाने से उक्त पहाड़ की भूमिका चंदेरी पर्यटन में प्रमुख हो गई है। यही वह मुख्य कारण हैं जिनके चलते *किला-कोठी नामक पहाड़* पर सैलानियों की आवक- जावक प्रतिदिन जारी रहती है। भले आज कोरोना प्रभाव के कारण पहाड़ी पर सब दूर सन्नाटा पसरा है लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि रात के बाद सुबह होती है यानि कोरोनारूपी काली रात गुजरेगी और फिर से दुनियां पटरी पर लौटेगी। अतएव चंदेरी पर्यटन-पर्यावरण परिस्थितियों के मद्देनजर उक्त पहाड़ी के साथ-साथ अन्य पहाड़ियों पर सघन पौधारोपण की आवश्यकता जान पड़ती ही नहीं अपितु अनिवार्य है। उत्तम जानकारी अनुसार नगर स्थित संपूर्ण पहाड़ियां पूर्णरूपेण स्वत्व, स्वामित्व एवं आधिपत्यधारी वन विभाग अंतर्गत समाहित है।इस क्रम में यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि नगर के चारो और वन भूमि वह भी जंगल के रूप में विद्यमान है। यहां के जंगलों में पाया जाने वाला तेंदू पत्ता, सीताफल,महुआ फल दूर-दूर तक प्रसिद्ध है वही जंगलों में पाई जाने वाली एक नही नाना-नाना प्रकार की जड़ी बूटियां जीवनदायक है। लेकिन वन भूमि पर पिछले कुछ वर्षो से बढ़ रहा अतिक्रमण चिंताजनकहै।
उल्लेखनीय है कि शासन मंशा अनुसार जल जंगल के संरक्षण संवर्धन हेतु एक नही कई योजनाओं के माध्यम से क्रियान्वयन भी किया जा रहा है। हाल ही में मनरेगा अंतर्गत कार्य योजना में पर्यावरण बचाने हेतु जल जंगल हेतु कार्य किए जा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि स्थानीय वन विभाग ने इस दिशा में कोई कार्य न किए हो कुछ वर्ष पूर्व में किला कोठी पहाड़ी पर पौधारोपण हुआ, उनकी सुरक्षा की गई फलस्वरूप आज पहाड़ी सड़क किनारे बांस के झुंड गवाही देते हुए पर्याप्त सबूत समक्ष में हैं। लेकिन नगर में छप्पन इंच का सीना ताने पेड़विहीन सामने खड़ी पहाड़ियां चीख चीख कर पुनः हरा-भरा करने की मौन किंतु ठोस मांग करती नजर आती हैं।
ग्रीष्म काल विदाई की विदाई हो चुकी है और वर्षा काल ने अपनी आमद या यह कहें कि मानसून ने नगर में पिछले दिनों अपनी जोरदार आगाज के साथ उपस्थिती दर्ज करा दी है। ऐसे में *ग्रीन चंदेरी* की अवधारणा को मूर्त रूप देने हेतु एवं चंदेरी पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण, नगर सौन्दर्यकरण हित में *मुड़िया पहाड़, कटी घाटी पहाड़, किला-कोठी पहाड़ के अलावा अन्य छोटी पहाड़ियों* पर वन विभाग द्वारा पौधारोपण किया जाना *हेरिटेज चंदेरी* की आज से नहीं पूर्व से मांग रही है। जिसका हम पूर्ण समर्थन करते हैं |
पिछले तीन वर्षो से वन विभाग के समक्ष लिखित और मौखिक रूप से निवेदन किया जाता रहा है कि उक्त पहाड़ियों विशेष रूप से किला कोठी पहाड़ी पर सघन पौधारोपण किया जावें ताकि नगर का पर्यावरण एवं चन्देरी पर्यटन दोनो क्षेत्र लाभांवित हो सकें। 
(लेखक-मजीद खां पठान)

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