
देश मे परम्परागत कांग्रेसियो की संख्या कम नही है ।ऐसे कांग्रेसी ही कांग्रेस के प्रत्याशियों को जिताने व कांग्रेस को सत्ता में लाने का आधार बनते है।परंतु सत्ता में आने के बाद आगे बढ़ने की होड़ में पार्टी के नेता न सिर्फ अपने परम्परागत वोटरों को बल्कि उस कांग्रेस को भी भूल जाते है ,जो उनके लिए प्राण वायु का कार्य करती है।जिस तरह से मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य की पहचान कांग्रेस से थी,ठीक उसी प्रकार किसान नेता रहे राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट की पहचान भी कांग्रेस के कारण ही है।कांग्रेस ने इन दोनों नेताओं के साथ साथ अन्य युवाओं को भी भरपूर तवज्जो दी।ज्योतिरादित्य व सचिन बड़े बड़े ओहदों पर रहे परन्तु फिर भी ओर ऊंचा पद पाने की चाहत ने उन्हें पार्टी का बागी बना दिया।मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस को ज्योतिरादित्य के विद्रोह की कीमत सत्ता गंवाकर चुकानी पड़ी लेकिन राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सूझबूझ से कांग्रेस किसी तरह से सरकार बचाने में कामयाब हो गई।
72 घंटे की कोशिशों के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस हाईकमान का विश्वास जीतने में सफल रहे,वही सरकार बचाने में भी उन्हें कामयाबी मिली।कांग्रेस पार्टी ने गहलोत की काबलियत पर भरोसा करते हुए बागी तेवर दिखा रहे सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी से हटा दिया, पायलट के करीबी दो मंत्रियों को भी बर्खास्त किया गया है, अब सचिन पायलट के भविष्य पर सबकी नजर है।इस संकट से उभारने में मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत के करीबी और 3 बार विधायक रह चुके प्रद्युम्न सिंह की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
सचिन पायलट गुट के साथ गये बागी कांग्रेस विधायकों को समझा-बुझाकर वापस लाने के लिये वह दिल्ली डटे रहे, इन 4 विधायकों में प्रद्युम्न सिंह के बेटे रोहित बोहरा, दानिश अबरार, प्रशांत बैरवा, चेतन डूडी शामिल हैं, जो सचिन के करीबी माने जाते हैं, गहलोत ने किसी तरह रोहित बोहरा से फोन पर संपर्क किया, फिर उनके जरिये ही बाकी तीनों विधायकों को मनाया गया।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चारों विधायकों को समझाया कि सचिन पायलट के साथ जाकर उनका राजनीतिक भविष्य अधर में चला जाएगा, जिस समय यह प्रयास किये जा रहे थे ,उस समय पायलट के भाजपा में जाने की चर्चा जोरों पर थी, गहलोत ने चारों विधायकों की बात सुनने के बाद उन्हें सरकार में अहम जिम्मेदारी देने का भरोसा दिया।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से फोन पर बातचीत होने के बाद ये चारों विधायक सुबह 4 बजे ही दिल्ली छोड़ जयपुर पहुंच गए थे ,फिर मुख्यमंत्री के साथ उनकी अलग-अलग बैठक हुई,इन विधायकों ने बातचीत के दौरान बताते है मुख्यमंत्री से माफी भी मांगी। बाद में इन चारों विधायकों ने प्रेस कांफ्रेंस करके ऐलान किया, कि वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हैं, इनमें शामिल अबरार ने कहा कि हम पीढियों से कांग्रेस के सिपाही हैं और पार्टी में ही हमेशा रहेंगे।
पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को भी मनाने की भरपूर कोशिश हुई और अभी भी जारी है।पार्टी हाईकमाम से लेकर दिग्गज नेताओं ने बार-बार उन्हें फोन और मैसेज के जरिये संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन सचिन पायलट अपनी मांग पर अड़े हुए हैं, उनका कहना है कि या तो मुझे मुख्यमंत्री बनाओ, या फिर किसी तीसरे को यानि उन्हें अशोक गहलोत किसी भी हालत में मुख्यमंत्री के रुप में स्वीकार्य नहीं हैं।लेकिन हाई कमान किसी भी हालत में मुख्यमंत्री की कुर्सी से अशोक गहलोत को हटाने के मूड में नही है।कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का यह बयान कि 'जिसे जाना है जाए' स्पष्ट संकेत है कि कांग्रेस झुककर कोई फैंसला नही करेगी।
सचिन पायलट ने कहा था कि, ''2018 से पहले वह(अशोक गहलोत) 1999 और 2009 में दो बार सीएम बने। लेकिन दोनों ही कार्यकाल के बाद 2003 और 2013 के चुनाव में वह पार्टी को 56 और 26 सीटों तक ले आए, इसके बावजूद उन्हें तीसरी बार सीएम पद से नवाजा गया।उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन का वादा किया, लेकिन गहलोत के अपने बूथ पर कांग्रेस उम्मीदवार नहीं जीत सका, ये उनका एक्सपीरियंस है। इस सबके बावजूद मैंने(सचिन पायलट), उन्हें सीएम बनाने के राहुल गांधी जी के फैसले को स्वीकार किया।''
राजस्थान में फिलहाल कांग्रेस अपनी सरकार को बचाने में सफल हो गई है। सचिन पायलट की ओर से कांग्रेस आलाकमान के सामने तीन मांगें रखी गई थी और इनमें से दो पर कांग्रेस राजी होती हुई भी दिख रही थी।
लेकिन सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनाये जाने पर अड़े रहे,वही वह अविनाश पांडे को राजस्थान के प्रभारी पद से हटाया चाहते थे।उनकी मांग उनके साथियों को मंत्रिमंडल में अहम जगह दिलाने की भी रही।
इस बीच वह कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं,जिस कारण पार्टी को उनपर कार्यवाही करनी पड़ी।
कांग्रेस ने अभी तक कई बार सचिन पायलट से बात की है।कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट को जयपुर में विधायक दल की बैठक में शामिल होने को भी कहा गया था लेकिन सचिन पायलट और उनके समर्थक अपनी मांगों पर अड़े रहे और बैठक में नही गए।इसी कारण पायलट को पदों से हटाया गया, साथ ही विधानसभा अध्यक्ष द्वारा भी उन्हें नोटिस भिजवाकर उनकी सदस्यता क्यो न रदद् की जाए,की बाबत स्पष्टीकरण मांगा गया है।सचिन पायलट का भविष्य क्या होगा यह तो समय बताएगा,लेकिन विधायको की खरीदफरोख्त का जो खेल विभिन्न राज्यो के बाद अब राजस्थान में भी खेला गया उससे निश्चित ही लोकतंत्र बार बार शर्मसार हो रहा है।जिसके मूल में युवा नेताओं का अतिमहत्त्वाकांक्षी होना ही प्रमुख आधार है।
(लेखक-श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )