
मैं घर की खिड़की से बाहर गली में झांक रहा था। तभी मियां मसूरी आते दिखे। मुंह पर मॉस्क, हाथों में ग्लब्ज और हाथ में एक लाठी; जिसे दिखाकर वे करीब से गुजरने वाले लोगों से 'डिस्टेंस' बनाने की हिदायत दे रहे थे।
जैसे ही वो खिड़की के करीब आए मैंने छेड़ दिया-'मियां..सुबह-सवेरे किधर को?'
मियां ने सपाट भाव से कहा-'बस..चप्पल टूट गई..उसे सुधरवाने जा रहा था?'
मैंने हैरानी जताई-'मियां..ऐसी कहां..घिस रहे हो चप्पलें?'
मियां ने नाक से मॉस्क नीचे सरकाया और अजीब-सा मुंह बनाकर कहा-'लॉकडाउन में कहां जाएंगे..मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक?'
मैंने बगैर किसी हाव-भाव के जवाब दिया-'तो घर पर नमाज क्यों नहीं पढ़ते?'
मियां ने मुझे घूरा-'मैंने कहावत कही थी, ये चप्पलें तो..छत पर बच्चों के साथ उछलकूद करते टूटी हैं।'
मैंने पंच किया-'तो...इतना क्यों उछलकूद करते हो..आराम से बैठो..?'
मियां ने गुस्सा जाहिर किया-'जनाब.., इस कलमुंहे कोरोना ने जीना मुहाल कर दिया है। पहले जब कोई काम-धंधा नहीं करता था, तो बीवी कहती थी, दिनभर घर पर पड़े रहते हो..घर से बाहर निकलो..कुछ काम करो। अब कहती है, बड़ी चुल्ल छूट रही बाहर जाने की, घर में पैर नहीं टिकते क्या?'
मैंने पलटवार किया-'तो..अभी बाहर निकलने की आवश्यकता क्या है..कोरोना में घर में रहोगे..तो सुरक्षित रहोगे।'
मियां ने मुझे घूरा-'और खाएंगे-पीयेंगे क्या?'
मैंने व्यंग्य कंसा-हवा खाओ-पानी पीयो?
मियां ने कहा-'महोदय, उड़ा लो गरीबों का मजाक..वैसे हवा भी कौन-सी शुद्ध बचने दी..और पानी...क्या फ्री में मिलता है!'
मियां के इस सवाल पर मैं निरुत्तर हो गया। इस बीच गली से निकले एक आवारा सांड को भगाने मियां ने अपनी लाठी को लहराते हुए जोर से 'हट-हट' किया।
मैंने हंसकर कहा-'मियां..आपको हाथों में लाठी पहली बार देख रहे..आप ठहरे गांधीवादी ये लाठी-डंडे क्यों चला रहे?'
मियां ने पलटवार किया-'लाठी तो गांधीजी भी साथ लेकर चलते थे! खैर, मैं तो इसे इसलिए लेकर चल रहा, ताकि कोई करीब से गुजरे, तो उसे लाठी से टोंचकर सोशल डिस्टेंसिंग बनाने को कह सकूं।'
मैंने ताना मारा-'मियां ये भी गजब है..यह तो ठीक वैसी बात हुई कि कल तक जिन्हें हम हिंदी चीनी, भाई-भाई कहकर गले लगाते थे..आज उनसे सोशल डिस्टेंसिंग बना रहे हैं।'
मियां ने बुरा-सा मुंह बनाया-ये चीनी क्या कम है..गले मिलकर गलवान में घुसते हैं..और कोरोना भी तो इन्होंने ही फैलाया है..आप यह क्यूँ भूल गए?'
मियां की बात सुनकर मैंने उत्सुकता जताई-चीनी कम.. से याद आया..हमारे अमिताभ बच्चन भी पॉजिटिव निकले हैं?'
मियां ने व्यंग्य मारा-'तो क्या बिग बी निगेटिव थे...?'
मैंने पलटवार किया-जनाब..यह मजाक का विषय नहीं।'
मियां ने गहरी सांस खींची-'हूं..मैं तो यह सोच रहा हूं कि जब कोरोना सुपरस्टार को हो सकता है..तो हमलोग कौन खां?'
मैंने व्यंग्य कंसा-'हमलोग खामख्वाह!'
मियां ने दार्शनिक शैली में जवाब दिया-'महोदय, मन की बात कहूं?'
मैंने बनावटी गंभीर होकर मोबाइल घड़ी पर नजर डालते हुए कहा-'अभी तो सुबह के 10 बजे हैं..रात के 6-8 तो बजने दो!'
मियां ने गहरी सांस खींची-'महोदय....मेरे कहने का आशय यह है कि अब तो हमारी अपने मन की सुनने में भी फटती है...समझ नहीं आता...क्या करें..किधर जाएं...?
मैंने पलटवार किया-'सरकार के मन की बात सुनो..वो कहती है..घर में ही रहिए...जब तक न कहें..कहीं न जाएं?'
मियां ने पलटवार किया-'यह ज्ञान तो अमिताभ बच्चन भी हर घंटे-दो घंटे में टीवी पर बांटते थे..फिर वे संक्रमित कैसे हुए..क्या मास्क नहीं लगाते थे, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करते थे?'
मैंने इतना कहकर खिड़की बंद कर ली-'वो बड़े लोग हैं..उनकी सेहत की सलामती के लिए लाखों हाथ उठेंगे...सरकार..अस्पताल..सब सेवा में जुट जाएंगे..लेकिन हमें या तुम्हें संक्रमण हुआ..तो मियां..मर गए..तो कंधा देने 4 लोग भी नहीं आएंगे।'
(लेखक- अमिताभ बुधौलिया /)