
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 यथा संशोधित 2019 की अधिसूचना भारत सरकार ने गत 15 जुलाई को जारी कर दी है ।जिसके तहत 20 जुलाई सन 2020 से उक्त संशोधित कानून प्रभावी माना गया है। इस बदले कानून से उपभोक्ताओं को शोषण और अन्याय से मुक्ति आसानी से मिलने लगेगी। बदलते समय के साथ इस कानून में किये गए बदलाव से उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के क्षेत्र में नई पहल का सूत्रपात होगा। इस नये उपभोक्ता संरक्षण संशोधित कानून, 2019 के तहत उपभोक्ता अब कही से भी उपभोक्ता अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करा सकेगे। नए कानून में उपभोक्ताओं के हित में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं,साथ ही पुराने नियमों में सुधार की भी कोशिश की गई है।
इस बदले कानून की कुछ उपलब्धियों में सेंट्रल रेगुलेटर का गठन, भ्रामक विज्ञापनों पर भारी दंड और ई-कॉमर्स फर्मों और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बेचने वाली कंपनियों के लिए सख्त दिशानिर्देश इस नये कानून में शामिल किये गए हैं. अब कहीं से भी उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।
उपभोक्ताओं की शिकायतें निपटाने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता अदालतें हैं जिन्हें आयोग के रूप मान्यता दी गई है।नए कानून के तहत उपभोक्ता अदालतों के क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है। राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालतों के मुकाबले जिला अदालतों तक पहुंच ज्यादा होती है। इसलिए अब जिला उपभोक्ता अदालतें 1 करोड़ रुपये तक के मामलों की सुनवाई कर सकेंगी।"
इस नए संशोधित कानून की खास बात यह है कि अब उपभोक्ता अपनी शिकायत कही से भी दर्ज कर सकता है। पहले उपभोक्ता वहीं शिकायत दर्ज करा सकता था, जहां विक्रेता अपनी सेवाएं देता है या फिर उसकी कोई शाखा या कार्यालय जहां मौजूद है। ई-कॉमर्स अर्थात ऑन लाइन से बढ़ती खरीदारी को देखते हुए यह उपभोक्ताओं के हित मे एक अच्छा कदम है।क्योकि इस मामले में विक्रेता किसी भी लोकेशन से अपनी सेवाएं देते हैं। इसके अलावा कानून में उपभोक्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी सुनवाई में शिरकत करने की इजाजत दी गई है। इससे उपभोक्ता का पैसा और समय दोनों बच सकेंगे और उसे न्याय भी जल्दी मिल सकेगा। उपभोक्ता कानून के इतिहास में जाए तो पता चलता है कि सन 1966 में जेआरडी टाटा के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के तहत फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन की मुंबई में स्थापना की गई थी और इसकी शाखाएं कुछ प्रमुख शहरों में स्थापित की गईं। भारत मे उपभोक्ताओं के हित सुरक्षित करने के लिए उपभोक्ता आंदोलन का यह प्रथम प्रयास कहा जा सकता है।वही स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बीएम जोशी द्वारा 1974 में पुणे में की गई।समय के साथ अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ। इस प्रकार उपभोक्ता आन्दोलन देश मे आगे बढ़ता रहा और सन 24 दिसम्बर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद ने पारित किया और जो राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के रूप में लागू हुआ। इस अधिनियम में बाद में सन 1993 ,सन 2002 व अब 2019 में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह एक सरल व सुगम अधिनियम हो गया है। इस अधिनियम के अधीन पारित उपभोक्ता अदालतों के आदेशों का पालन न किए जाने पर धारा 27 के अधीन कारावास व दण्ड तथा धारा 25 के अधीन कुर्की का प्रावधान किया गया है।
नए कानून में उत्पाद व विक्रेता कंपनी की जवाबदेही तय की गई है ।उत्पाद में निर्माण त्रुटि या खराब सेवाओं से अगर उपभोक्ता को नुकसान होता है तो उसे बनाने वाली कंपनी को हर्जाना देना होगा. यानि निर्माण त्रुटि में खराबी के कारण प्रेशर कुकर के फटने पर उपभोक्ता को चोट पहुंचती है तो उस हादसे के लिए कंपनी को हर्जाना देना होगा। पहले उपभोक्ता को केवल कुकर की लागत मिलती थी. उपभोक्ताओं को क्षति पूर्ति के लिए भी सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता था. जिससे मामले के निपटारे में सालों साल लग जाते थे।पहले कंपनियां अनैतिक तरीके से कोर्ट से तारीख पर तारीख ले लेती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। उपभोक्ताओं को 90 दिन में न्याय मिल सकेगा और पहले जहां से उपभोक्ता ने सामान खरीदा था, वहीं के उपभोक्ता फोरम में वाद दायर करना होता था। अब उपभोक्ता कहीं से भी सामान खरीदा हो, यदि उसमें खराबी है तो उसकी शिकायत घर या काम की जगह के आसपास के उपभोक्ता अदालत में कर सकता है। इस नये कानून का सबसे ज्यादा असर ई-कॉमर्स बिजनेस के क्षेत्र में होगा।अब इसके दायरे में सेवा प्रदाता भी आ जाएंगे. "उत्पाद की जवाबदेही अब निर्माता के साथ सेवा प्रदाता और विक्रेताओं पर भी होगी. इसका अर्थ यह हुआ कि ई-कॉमर्स साइट खुद को एग्रीगेटर बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं."ई-कॉमर्स कंपनियों पर सीधे बिक्री पर लागू सभी कानून प्रभावी होंगे. अब अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसे व्यापारिक मंच को विक्रेताओं के ब्योरे का खुलासा करना होगा. इनमें उनका पता, वेबसाइट, ई-मेल इत्यादि शामिल करना जरूरी हैं.ई-कॉमर्स फर्मों की जिम्मेदारी होगी कि वे सुनिश्चित करें कि उनके स्तर पर किसी तरह के नकली उत्पादों की बिक्री न हो. अगर ऐसा होता है तो कंपनी पर दंड लग सकता है, क्योंकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर नकली उत्पादों की बिक्री के मामलो की शिकायतें मिलती रही हैं.
कानून में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) नाम का केंद्रीय रेगुलेटर बनाने का प्रस्ताव है. यह उपभोक्ता के अधिकारों, अनुचित व्यापार व्यवहार, भ्रामक विज्ञापन और नकली उत्पादों की बिक्री से जुड़े मामलो को देखेगा और जरूरत पड़ने पर उनके विरुद्ध कार्यवाही कर सकेगा।नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के पारित हो जाने के बाद कंपनियों पर इस बात की ज़िम्मेदारी अब और ज़्यादा होगी कि उनके उत्पादों के विज्ञापन भ्रामक न हों और उनके उत्पाद दावों के अनुरुप ही हों.
अब अगर कोई सेलीब्रिटी किसी ऐसे उत्पाद का प्रचार करता है, जिसमें दावा कुछ और हो और दावे की सच्चाई कुछ और, तो उस पर भी जुर्माना लगेगा.अभी तक किसी सामान की शिकायत करनी हो तो पहले उसे खरीदना जरूरी होता था परंतु नया उपभोक्ता कानून उपभोक्ताओं को अधिकार देता है कि वह बिना सामान खरीदे भी, किसी सामान की उत्पाद गुणवत्ता को लेकर शिकायत कर सकते है। अक्सर देखा गया है कि कंपनियां अपने उत्पाद के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर विज्ञापन करती हैं। अगर आपको पता चल गया कि उसमें वैसी खूबी नहीं है तो बिना सामान खरीदे उसकी शिकायत सीसीपीए से की जा सकती है। सीसीपीए में एक इंवेस्टिगेशन विंग होगी जो शिकायत की जांच करेगी। यदि शिकायत सही पाई गई तो दोषी कंपनी पर कार्रवाई होगी। यानि उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम में किये गए बदलाव और संशोधित कानून के लागू हो जाने से उपभोक्ता सहज,सुलभ व सस्ता न्याय प्राप्त कर सकेंगे।
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)