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 43 फीसदी भारतीय चिंता और डिप्रेशन का शिकार -कोरोना काल में बढ़े डिप्रेशन और चिंता के मरीज

 43 फीसदी भारतीय चिंता और डिप्रेशन का शिकार -कोरोना काल में बढ़े डिप्रेशन और चिंता के मरीज

नई दिल्ली । स्मार्ट तकनीक से लैस रक्षात्मक स्वास्थ्य देखभाल मंच जीओक्यूआईआई के आंकड़े बताते हैं कि मार्च से लेकर अब तक लॉकडाउन के दौरान 43 फीसदी भारतीय चिंता और डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं। जीओक्यूआईआई ने यह 10 हजार भारतीयों पर एक सर्वेक्षण किया है, जिसमें इस बात का पता चला है। महीने भर पहले इंडियन साइकेट्री सोसाइटी के एक सर्वे में कहा गया था कि लॉकडाउन के कारण लोगों की जीवनशैली में अचानक कई तरह के बदलाव आये हैं। जिसने देश के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। लोगों की नौकरी चली गई है, खुद का व्यवसाय बंद हो चुका है। किसी के परिवार का सदस्य कोरोना से पीड़ित हो गया है, इस तरह का तमाम कारण हैं, जिसके चलते आज देश के 43 फीसदी लोग डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं। 
लॉकडाउन में सिर्फ बेरोजगार ही नहीं बढ़ें हैं, इस दौरान चिंता और डिप्रेशन के साथ ही मानसिक बीमारियां भी बढ़ी हैं। ऐसे में लॉकडाउन के बाद से मानसिक रोगों को दूर करने वाली न्यूरोट्रॉपिक और साइकोट्रॉपिक मेडिसिन्स की खपत भी बढ़ गई है। हालांकि यह खपत सैनेटाइजर और मास्क की तरह नहीं है। महीने भर पहले इंडियन साइकेट्री सोसाइटी के द्वारा किये गये सर्वे में पता चला था कि लॉकडाउन के बाद से मानसिक बीमारी के मामले 20 प्रतिशत तक बढ़े हैं। देश में हर पांच में से एक व्यक्ति मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। आईपीएस ने चेतावनी दी थी कि लॉकडाउन जारी रहा तो देश में आर्थिक परेशानी और बढ़ सकती है। साल 2019 में 18 अक्टूबर को जानकारी के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कहा था कि 18 फीसदी भारतीय डिप्रेशन यानी अवसाद के शिकार हैं। यह आंकड़ा लॉकडाउन में बढ़कर 43 फीसदी हो गया है। इसके अनुपात में न्यूरोट्रॉपिक मेडिसिन्स की खपत भी बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि चिंता और डिप्रेशन दोनों ही अलग-अलग चीजें हैं। चिंता में घबराहट, बेचैनी और मन न लगना जैसी चीजें होती हैं। 
वहीं डिप्रेशन में उदासीपन और मन में नकारात्मक विचार आते हैं। उन्होंने कहा कि दोनों ही समस्याओं के तीन चरह होते हैं, जिनमें पहले चरण में लोग डॉक्टर के पास नहीं आते। जब समस्या बढ़ती है और दूसरे और तीसरे चरण में जाती है तो लोग डॉक्टर के पास आते हैं। डॉ नगपाल ने बताया कि हमारे पास जो मरीज आते हैं उनमें 60 फीसदी लोग चिंता का शिकार होते है। करीब 25-30 फीसदी लोग तनाव से पीड़ित होते है। बाकी कुछ लोगों ऐसे होते हैं, जिनको दोनों समस्या होती है। डॉ नागपाल कहती हैं कि मॉडरेट और सीवियर स्टेज के लोगों के उपचार के लिए हम न्यूरोटापिक मेडिसिन (चिंता और तनाव दर करने की) देते हैं। मालूम हो कि भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 17 लाख को पार कर गया है। कोविड -19 के रिकार्ड मामले रोज सामने आ रहे हैं, जो देश के लिए चिंता का विषय है, लेकिन इससे भी बड़ी चिंता के विषय ये ताजा सर्वे में आए डिप्रेशन के आंकड़े हैं। 
 

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