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भारत किसी भी सूरत में चीन के सामने नहीं पड़ेगा नरम

भारत किसी भी सूरत में चीन के सामने नहीं पड़ेगा नरम

नई दिल्ली । केंद्रीय मंत्री और सेना के शीर्ष अधिकारियों ने  पूर्वी लद्दाख की सुरक्षा हालात की समीक्षा की। इसमें लद्दाख के अग्रिम मोर्चों पर लंबे वक्त तक डटे रहने की तैयारियां तेज करने पर चर्चा हुई। भारत औऱ चीन के सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत के सकारात्मक नतीजे न मिलने के बीच यह बैठक हुई है। घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि भारत एलएसी के संवेदनशील क्षेत्रों में उच्च स्तर की सतर्कता बरतेगा। सेना ने लद्दाख सेक्टर में सर्दियों के दौरान भी सैनिकों की अच्छी संख्या और हथियार बनाए रखने से जरूरी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। समझा जाता है कि जनरल नरवणे ने बैठक में बताया कि भयंकर सर्दी में -20 डिग्री के तापमान में ऊंचे पर्वतीय इलाके में सैनिकों के वहां ठहरने और हथियारों के लिए क्या-क्या इंतजाम करने होंगे। हालांकि यह तय किया गया कि भारत किसी भी सूरत में अपना रुख नरम नहीं करेगा। बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, अजीत डोभाल, सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे और अन्य शीर्ष अधिकारी सम्मिलित हुए। चीन मामलों में विशेषज्ञता रखने वाली कई अधिकारी भी बैठक में थे। विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला और रक्षा सचिव अजय कुमार भी इसमें शामिल थे। गौरतलब है कि चीन पैंगोंग सो, देपसांग से पीछे हटने में टालमटोल कर रहा है। बैठक में हुई बातचीत की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, सैनिकों की संख्या कम करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। सैन्य वार्ता के पांचवें दौर में भारतीय सेना ने चीन की पीएलए को स्पष्ट तौर पर बताया था कि वह भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर समझौता नहीं करेगी और पैंगोंग सो तथा पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले कुछ अन्य बिंदुओं से सैनिकों की वापसी जल्द से जल्द पूरी तरह होनी चाहिए। दूसरी ओर, चीन ने मंगलवार को कहा कि भारत के साथ सीमा समस्या को द्विपक्षीय संबंधों में उचित स्थिति में रखा जाना चाहिए। साथ ही दोनों देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मतभेद विवादों में न बढ़ें। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि बीजिंग को उम्मीद है कि नई दिल्ली द्विपक्षीय संबंधों के समग्र हितों की रक्षा के लिए मिलकर काम करेगी। भारत के चीनी उत्पादों पर निर्भरता में कटौती के कदम उठाने के संदर्भ में एक टिप्पणी मंत्रालय ने कहा कि कृत्रिम रूप से दोनों देशों के बीच व्यापार में सहयोग को नुकसान पहुंचाना भारत के उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है।
 

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