
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी माना है, जिसकी सजा पर आज सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण ने सजा पर सुनवाई को स्थगित का अनुरोध किया है। प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति उनके दो अपमानजनक ट्वीट के लिए 14 अगस्त को अदालत की आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया गया था। न्यायालय की अवमानना कानून के तहत अवमानना के दोषी व्यक्ति को छह महीने तक की साधारण कैद या दो हजार रूपए जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा ने कहा था कि इस अपराध के लिये प्रशांत भूषण को दी जाने वाली सजा के बारे में 20 अगस्त को बहस सुनी जायेगी। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने 14 अगस्त को अपने फैसले में प्रशांत भूषण को दोषी पाया था। -प्रशांत भूषण सजा पर सुनवाई टालने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज शीर्ष न्यायालय ने सजा तय करने पर अन्य पीठ द्वारा सुनवाई की भूषण की मांग अस्वीकार की। प्रशांत भूषण की ओर से दवे ने आग्रह किया कि सजा तय करने के मामले को अलग पीठ द्वारा विचार किया जाना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप भूषण हमसे अनुचित काम करने को कह रहे हैं कि सजा पर दलीलें किसी अन्य पीठ को सुननी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से कहा, 'हम आपको विश्वास दिला सकते हैं कि जब तक आपकी पुनर्विचार याचिका पर फैसला नहीं होता, सजा संबंधी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही में सजा सुनाने को लेकर होने वाली सुनवाई टालने की मांग की। उन्होंने कहा, संभवत आपने भी उनके 30 साल के कार्यों के लिए उन्हें पद्म विभूषण दिया होता। दवे ने यह भी कहा था कि कि यह मामला नहीं है जिसमें उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए। आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों के स्थगित करने के एडीएम जबलपुर के मामले का संदर्भ देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ अत्यंत असहनीय टिप्पणी किए जाने के बावजूद अवमानना की कार्यवाही नहीं की गई। अपने 142 पन्नों के जवाब में भूषण ने अपने दो ट्वीट पर कायम रहते हुए कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति, ‘हालांकि मुखर, असहमत या कुछ लोगों के प्रति असंगत होने की वजह से अदालत की अवमानना नहीं हो सकती। वहीं, शीर्ष अदालत ने भूषण के ट्वीट का संदर्भ देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह आम लोगों की नजर में सामान्य तौर पर उच्चतम न्यायालय की संस्था और भारत के प्रधान न्यायाधीश की शुचिता और अधिकार को कमतर करने वाला है।