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स्वस्थ रहने करें हरड़ का उपयोग  

स्वस्थ रहने करें हरड़ का उपयोग  

स्वस्थ रहने के लिए हरड़ का प्रयोग नियमित करना चाहिए। शास्त्र में इसकी सात जातियां बतायी गयी है। विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवंती और चैतकी। व्यावहारिक दृष्टिकोण से तीन प्रकार की होती है। छोटी हर्रे, पीली हर्रे और बड़ी हर्रे। यह तीनों एक ही वृक्ष के फल है। यह कॉम्ब्रेटेसी परिवार का पौधा है। इसका उपयोगी भाग फल है।
इसका वृक्ष विशाल लगभग 80-100 फीट ऊंचा होता है। फूल छोटा, सफेद या पीले रंग का होता है। फल एक से डेढ़ इंच लंबा अंडाकार, पृष्ठ भाग पर पांच रेखाओं से युक्त, कच्चा में हरा, पकने पर धूसर पीला रंग का हो जाता है़। प्रत्येक फल में एक बीज होता है़। पके हुए फलों का संग्रहण अप्रैल-मई माह में करना चाहिए। 
यह कफ वात व पित जनित रोगों में उपयोगी है। पाचन शक्ति बढ़ती है़। खांसी, सांस, कुष्ठ, बवासीर, पुराना ज्वर, मलेरिया, गैस, अपच, प्यास, त्वचा रोग, पेशाब की जलन, आंखों के रोग, दस्त, पीलिया आदि में लाभदायक है। खट्टेपन से वात रोगों को दूर करती है। चटपटेपन से पित रोग और कसैलेपन से कफ का नाश करती है। इसका सेवन बरसात में सेंधा नमक के साथ, जोड़ों में मिश्री के साथ, हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ, बसंत ऋतु में शहद के साथ, गर्मी में गुड़ के साथ करना चाहिए। 
खाना खाने से पहले इसे लेने से भूख बढ़ती है़। बाद में खाने से खाना आसानी से पचता है़ 
छोटी हर्रे का चूर्ण लगभग चार से छह ग्राम रात में भोजन करने के एक से दो घंटे बाद पानी के साथ प्रयोग करने से कब्ज की समस्या दूर होती है़।  
इसका चूर्ण गुड़ व गिलोथ के काढ़े के साथ प्रयोग करने से गठिया में आराम मिलता है़।  
इसे तंबाकू की तरह चिलम में रखकर पीने से सांस की समस्या दूर होती है़  
मुख व गले के रोगों में इसका काढ़ा बना कर कुल्ला किया जाता है़।  
इसका चूर्ण दो ग्राम गुड़ के साथ खाना चाहिए़। छोटी हर्रे को सुपारी की तरह छोटा-छोटा टुकड़ा कर लें और दिन में खाना खाने के बाद लगभग एक टुकड़े को मुंह में डाल कर अच्छी तरह से चबाना चाहिए़। इसके नियमित प्रयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है़।  
 

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