
नई दिल्ली । अमेरीका के वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारी की शुरुआत से ही यदि हाथ धोने की जगह मास्क लगाने को लेकर ज्यादा ध्यान दिया जाता तो कोरोना संक्रमण के प्रसार को कम किया जा सकता था। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी सेन फ्रांसिस्को में मेडिसिन विभाग की प्रोफेसर मोनिका गांधी ने बताया कि संक्रमित व्यक्ति के मुंह और नाक से निकले ड्रॉपलेट और एयरोसोल के जरिये वायरस सबसे आसान तरीके से फैलता है। यह सतह के जरिये नहीं फैलता। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि वायरस के तेजी से फैलने का सबसे बड़ा कारण सतह को छूना और आंखों को स्पर्श करना नहीं है, बल्कि एक दूसरे के संपर्क में आना है। डॉ जूलियन टैंग का कहना है कि ड्रॉपलेट के जरिये वायरस तेजी से फैलता है और इससे निपटने के लिए मास्क पहनना जरूरी है। हालांकि, सतह के संक्रमण ने दुनिया को भटका दिया। उन्होंने कहा कि सतह की साफ-सफाई में बहुत समय और पैसा खर्च होता है, जबकि सबसे ज्यादा जोखिम बिना मास्क के एक दूसरे से बातचीत में है। न्यूजर्सी की एक यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर इमैनुएल गोल्डमैन का शोध भी इसी ओर इशारा करता है। उन्होंने लिखा कि सतह के जरिये वायरस का प्रसार बहुत कम है। सिर्फ ऐसे उदाहरण हैं जिसमें संक्रमित व्यक्ति के सतह पर छींकने और खांसने के बाद यदि कोई व्यक्ति एक या दो घंटे में इसे छूता है तो संक्रमित हो जाता है। वहीं लिसेस्टर विश्वविद्यालय के श्वसन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ जूलियन टैंग के मुताबिक, हाथ धोने का विचार ठीक है, लेकिन वायरस के प्रसार के अन्य कारणों को इसने पीछे कर दिया है। ब्रिटेन के साइंटिफिक एडवायजरी ग्रुप ऑफ इमरजेंसी (सेज) का अनुमान है कि सांस के जरिये फैलने वाले संक्रमण को रोकने में यह तरीका सिर्फ 16 फीसद कामयाब रहा है। कोविड-19 महामारी से पहले ही भारत में हाथ धोने पर जोर दिया जाता रहा है।