नई दिल्ली । कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में अब तक सबसे कारगर मानी जा रही रेमडेसिविर समेत कई दवाएं क्लीनिकल परीक्षण में विफल पाई गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने परीक्षण के शुरुआती नतीजे जारी करते हुए बताया कि यह दवा गंभीर मरीजों की जान बचाने में असफल साबित हुई। भारत ही नहीं, दुनिया के लगभग 50 देशों में इसी दवा से कोरोना के गंभीर मरीजों का इलाज किया जा रहा था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप को भी रेमडेसिविर का इंजेक्शन लगाया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, रेमडेसिविर के अलावा हाइडॉक्सीक्लोरोक्वीन, एचआईवी एड्स की दवा लोपिनाविर रीटनावीर और इंटरफैरॉन भी कारगर नहीं पाई गईं। 28 दिन तक इलाज के बाद भी कोरोना मरीजों को मरने से बचाने में कोई फायदा नजर नहीं आया। अस्पताल में इलाज करा रहे मरीजों की सेहत पर भी इन दवाइयों का कोई खास असर नहीं दिखा। इन्ही दवाओं का इस्तेमाल अभी तक मरीजों के इलाज के लिए किया जा रहा था। छह महीने तक 30 से ज्यादा देशों में 11,266 मरीजों पर यह शोध किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, यह दुनिया का सबसे बड़ा रैंडम ट्रायल था, जिसमें मौजूदा दवाइयों के कोराना के इलाज में प्रभाव की जांच की गई। जानने की कोशिश की गई कि अलग-अलग दवाओं के उपचार से मृत्युदर पर क्या असर पड़ रहा है। दवा का इस्तेमाल करने वाले लोगों को कितने दिन वेंटिलेटर पर रखना पड़ा, कितने दिन आईसीयू में रखना पड़ा और क्या दवा से उनकी जान बचाई जा सकी या नहीं। हालांकि, अभी यह शुरुआती नतीजे हैं, इनका पुन: मूल्यांकन किया जाएगा। कोरोना की तबाही झेल रही दुनिया को मई में जब पता चला कि रेमडेसिवीर एंटीवायरल दवा मरीजों की जान बचाने में असरदार साबित हो रही है तो बड़ी उम्मीदें पैदा हो गई थीं। शुरुआती जांच से पता चला कि यह दवा संक्रमितों को जल्दी ठीक कर सकती है। कुछ मामलों में ऐसा हुआ भी था। इसके बाद लगभग सभी देशों में इस दवा से मरीजों का इलाज करने की अनुमति दे दी गई। मांग ज्यादा होने की वजह से कई जगह इसकी कालाबाजारी भी शुरू हो गई थी। रेमडेसिवीर दवा पहले इबोला वायरस, मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम मर्स और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम सार्स के खिलाफ भी असरदार पाई गई थी। तमाम मरीजों का इस दवा से इस्तेमाल किया जा रहा था जून में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और लोपिनाविर रीटनावीर को अप्रभावी पाया गया था, जिसके बाद इससे इलाज न करने की सलाह दी गई थी। हालांकि, 500 से अधिक अस्पतालों में इन दवाओं का परीक्षण किया जा रहा था। अब हमारी नजर मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज पर टिकी हुई है। कुछ दिनों में नतीजे आ जाएंगे और उम्मीद करते हैं कि कोई कारगर दवा हमें मिल पाएगीरे मडेसिवीर दवा बनाने वाली कंपनी गिलियड साइंस ने नतीजों पर चिंता जताई। कंपनी ने बयान जारी कर कहा कि अभी सही समीक्षा नहीं की गई है। एक ओपन लेबल परीक्षण का मतलब है कि शोधकर्ता व मरीज दोनों को पता है कि कौन सी दवा दी जा रही है। इसलिए शायद नतीजे उतने आशाजनक नहीं मिले। हम आखिरी नतीजों का इंतजार करना चाहेंगे। इस बीच आईसीएमआर ने शुक्रवार को कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में आयोजित सॉलिडैरिटी थेरेप्यूटिक्स ट्रायल में एक सक्रिय भागीदार था। परीक्षण में हाइडॉक्सीक्लोरोक्वीन, एचआईवी की दवा लोपिनाविर/रीटनावीर व इंटरफैरॉन कारगर नहीं पाई गईं। कोरोना के किसी भी समूह में रेमेडिसविर का कोई लाभ नहीं है। एपेक्स हेल्थ रिसर्च बॉडी ने कहा कि इससे पहले आईसीएमआर ने कोरोना के इलाज में इसका कोई फायदा नहीं होने का संकेत देते हुए प्लाज्मा के लिए प्लासिड ट्रायल किया था। आईसीआरआर-डिवीजन महामारी विज्ञान और संचारी रोग के प्रमुख समीर पंडा ने कहा कि परीक्षण में भारत में 937 प्रतिभागी शामिल थे। हम इन महत्वपूर्ण निष्कर्षों पर योगदान देने के लिए परीक्षण प्रतिभागियों और उनके परिवारों के आभारी हैं।
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रेमडेसिविर दवा से बच सकती है कोरोना मरीजों की जान