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हमारे दोनों आराध्य गोरे नहीं थे 

हमारे दोनों आराध्य गोरे नहीं थे 

इन दिनों फेयर एण्ड लवली दिखने  का जमाना है। पुरुष भी इस दौड़ में  कूद पड़े हैं। महिलाओं का फिर  क्या कहना ?  हर तरफ सुन्दर और गोरा दिखने की होड़ लगी है। ऐसे में क्या  आप विश्वास करेंगे कि हमारे दोनों आराध्य श्याम वर्ण के थे ? यदि इस सम्बन्ध में प्रचलित  लोक कथाओं और लोक गीतों  का विश्वास करें  
तो दोनों राम तथा कृष्ण श्याम वर्ण के थे। वे जिनके अवतार थे वे विष्णु स्वयं मेघवर्ण के थे। भगवान विष्णु 
के लिए यह श्लोक प्राय: कहा जाता है शान्ताकारम्  भुजगशयनम्। इस श्लोक में आगे कहा गया है कि 
मेघवर्णम्। इसका अर्थ यह है कि भगवान विष्णु  का रंग मेघ के समान हैं अर्थात काला है। ऐसा लगता है कि हम गोरा दिखना चाहते हैं क्योंकि हम विदेशी संस्कृति से प्रभावित हैं। विदेशों में गोरा दिखनेका फैशन इस हद तक   है कि वहां रंगभेद  शब्द चल पड़ा है।
हमारे यहां कभी रंगभेद नहीं रहा। और तो और , पांडवों की रानी द्रौपदी भी अति सुन्दर स्त्री थी इसीलिए उसका  एक नाम कृष्णा पड़ा। वह अपने युग की अतीवसुन्दर  स्त्री  थी। उसके कृष्णा नाम का श्रीकृष्ण से कोई सम्बन्ध नहीं था।यह पृथक बात है कि श्रीकृष्ण उसे अपनी बहन मानते थे लेकिन उसके  कृष्णा नाम  का श्रीकृष्ण  से कोई सम्बन्ध नहीं था ।  प्राचीन ग्रंथ यह बताते हैं कि द्रौपदी अतीव सुन्दर और आकर्षक स्त्री थी। उसके स्वयंवर में अनेक राजाओं के पहुंचने से इस  तथ्य की पुष्टि होती है । यह बात अलग है कि अर्जुन के श्रेष्ठ धनुर्धर होने के कारण वह (द्रौपदी) उसे मन ही मन पसन्द करती थी और उसके पिता राजा द्रुपद भी अर्जुन को अपना दामाद बनाना चाहते थे लेकिन  इन तथ्यों से द्रौपदी  स्वयंवर का महत्व  कम नहीं होता। यह वास्तविकता  है कि कर्ण और दुर्योधन जैसे  राज पुरुषों ने स्वयंवर में भाग लिया था। अर्जुन के विजयी होने पर इन नरेशों ने हंगामा भी किया था।
श्वेत और अश्वेत का संघर्ष वास्तव में संयुक्त राज्य अमेरिका  और पश्चिमी राष्ट्रों की  देन है। वहां 
पर अश्वेत आन्दोलन भी इसी कारण उठ खड़ा हुआ है क्योंकि अश्वेत यह समझने लगे हैं कि उन्हें रंग के 
आधार दबाया जा रहा है। यह कटु सत्य है कि श्वेतों  में  रंगभेद के कारण श्रेष्ठता का  अहं उत्पन्न हुआ जबकि ऐसा नहीं है। दुनिया के अधिकांश धावक तथा अच्छे खिलाड़ी  श्वेत नहीं हैं।                
ताजा उदाहरण अमेरिका के मिनीपोलिस का है। एक अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लायड की हत्या का है।
एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक़ उसे नकली नोट चलाते पकड़ा गया था। उस अश्वेत का गला दबा कर मार 
दिया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में एक और समस्या है। वह समस्या नस्ल भेद 
की है। यद्यपि ईसाई धर्म को अश्वेत भी मानते हैं लेकिन गोरों का प्रभुत्व इनको समान नागरिक अधिकार 
देने तैयार नहीं है। वे मानते हैं कि वे गोरे हैं इसलिए वे अश्वेतों से ऊपर हैं। इसके उत्तर में ब्लैक लाइव्स मैटर
नामक आन्दोलन प्रारंभ हुआ। यह आन्दोलन वैसे 2013 में शुरू हुआ था। यह प्रारंभ में अहिंसक था। इस 
वर्ष यह आन्दोलन जार्ज फ्लायड की हत्या से प्रारंभ हुआ और इसकी लपेट में न केवल अमेरिका आया
अपितु युरोप के अन्य देश भी आए।
अमेरिकी नीग्रो लोगों की कई समस्यायें हैं जिन का समाधान होना आवश्यक है। उनकी शिक्षा के समुचित साधन नहीं हैं। शिक्षित लोगों के लिए रोजगार के अवसर श्वैतों की तुलना में बहुत कम हैं। अभी हाल में जब कोरोनावायरस का संक्रमण फैला तो नीग्रो लोगों की मृत्यु दर अधिक थी।  यह सर्वविदित है कि संयुक्त 
राज्य अमेरिका में नीग्रो लोगों को मतदान का अधिकार  बहुत बाद में मिला। वैसे अमेरिकी शासन नागरिक अधिकारों का समर्थन करता है लेकिन नीग्रो अधिकारों की बात आने पर उसे सांप सूंघ जाता है जबकि खेल कूद में सर्वाधिक स्वर्ण पदक अमेरिका को नीग्रो खिलाड़ी ही दिलाते हैं लेकिन श्वेतों का सुप्रीमेसी का अहं  अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों के दिमाग में छाया हुआ है।
भारत कम से कम इस अहंकार से बचा हुआ है। हमारे देश में खेल-कूद में  वे लोग छाए हुए हैं , जो गोरे नहीं कहें जा सकते। इनका देश में सम्मान भी है। नस्ल भेद तो भारत में नहीं है। कुछ कंपनियां गोरे -पन के प्रचार में लगी हैं। इनके प्रचार की वास्तविकता समझने की जरूरत है।सही  बात तो यह है कि जिन देवताओं की पूजा हम लोग सदियों से कर रहे हैं वे राम -कृष्ण  गोरे नहीं थे। जैसा पहले कहा गया है भगवान विष्णु भी गोरे नहीं हैं। 
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने उत्तर से दक्षिण की यात्रा की तो लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने 
पश्चिम से पूर्व की यात्रा की। यद्यपि श्री कृष्ण के केरल के गुरवायुर तथा अन्य स्थानों पर अनेक मन्दिर  हैं लेकिन  ये मन्दिर बाद में बने। उस समय आज के समान मन्दिर निर्माण की परम्परा नहीं थी। तब यज्ञ 
होते थे। कुछ वर्ष पूर्व लिखे एक लेख में मैंने मनुष्य के इस मनोविज्ञान का उल्लेख किया था कि वह अपने देवी  देवताओं के समान दिखना चाहता है। क्या श्रीराम तथा श्रीकृष्ण  और द्रौपदी के वर्ण का इससे कोई  
सम्बन्ध है। यह उल्लेखनीय है कि दक्षिण के लोगों का रंग प्राय: अश्वेत होता है। संभवतः इस कारण 
 श्रीकृष्ण  मन्दिर दक्षिण में बने हों। वैसे ऐसा कहा जाता है कि भक्ति आंदोलन   दक्षिण मे प्रारंभ हुआ 
तथा स्वामी रामानंद उसे लेकर उत्तर में आए। 
भारत इस बुराई से अब तक मुक्त  है।रंगभेद की प्रथा अब तक यहां नहीं पनपी है। कुछ 
क्रीम , साबुन ,पाउडर निर्माताओं   ने अवश्य गोरेपन की चाहत पैदा की है। चारों ओर आलोचना के बाद एक क्रीम निर्माता कंपनी ने अपने उत्पादन के नाम में संशोधन किया है।गोरेपन की इस बढ़ती  चाहत में
फिल्मी सितारों का भी कुछ हाथ है। इसके  कारण कुछ  युवकों और युवतियों में भ्रम उत्पन्न हुआ है।वे ईश्वर प्रदत्त रंग से मुक्त होकर फेयर होना चाहते हैं। लेकिन उन्हें यह   स्मरण कराने की आवश्यकता है  कि हमारे आराध्य राम और कृष्ण गोरे  नहीं थे। उनके  सांवलेपन के बाद भी उनके पीछे लोग पागल थे।  द्रौपदी भी गोरी नहीं थी। लेकिन उसने तहलका मचा दिया था। 
तब   फिर भारत में अश्वेत आन्दोलन की संभावना पैदा  करने में क्या लाभ है?
(लेखक - हर्ष वर्धन पाठक )
 

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