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रामों के भीतर कितने रावण ,कैसे कैसे मारोगे!  (दशहरा के अवसर पर विशेष)

रामों के भीतर कितने रावण ,कैसे कैसे मारोगे!  (दशहरा के अवसर पर विशेष)

दशहरा में  राम रावण को मारता हैं ,वध करता हैं क्योंकि रावण में अनेक बुराई थी उसने पर स्त्री का अपहरण  किया ,बलात हरण किया ! कहा जाता हैं की एक बार रावण कोर्ट में आया तो नियम के मुताबिक उनको गीता पर हाथ रखकर कसम खाना थी की  जो कुछ कहूंगा सच कहूंगा इसके सिवा कुछ नहीं कहूंगा ! तब रावण डर गया और बोला में गीता पर हाथ नहीं रखूँगा क्योकि एक बार सीता पर हाथ डाला था उसकी सजा अब तक भुगत रहा हूँ !
      आज रामों की आशाराम ,रामपाल और राम रहीम ने  अपना नाम ही नहीं भगवान् राम का नाम कलंकित किया !  वैसे इन लोगों से भगवान राम से  कोई लेना देना नहीं पर जब सन्दर्भ आता हैं तब कहना पड़ता हैं . वैसे ये घटनाएं नई  नहीं हैं ऐसी घटनाएं अधिकता से होती हैं चाहे धरम की आड़ में या सामाजिक ,राजनीतिक ,प्रशासनिक ,फ़िल्मी दुनिया में और जहाँ जो प्रभावशाली होते हैं उनके इर्द गिर्द होती हैं .जब तक न पकडे जाय तब तक ईमानदार और पकड़ गए तो चोर.!
       जहाँ कही भी कोई किसी को अनुग्रहित   कर   सकता    हैं वह  इसका फायदा  उठाता हैं .यह कोई नई बात नहीं हैं ,इसका उदहारण ईशा मसीह के समय आया था जब एक गांव  की महिला को ग्रामवासी पत्थर मार रहे थे तो उन्होंने पूछा क्या हैं इस औरत का अपराध ?तबलोगों ने बताया यह कुलटा हैं और इसके कारण गांव का वातावरण बिगड़ रहा हैं .तब ईसा मसीह बोले   ठीक  हैं जिस   व्यक्ति  ने कोई पाप  न किया हो  वह उसे  मार सकता हैं !  यहाँ बात बिलकुल सही हैं . धरम के क्षेत्र हो या जहाँ आदमी प्रभावशील हो जाता हैं और विश्वास प्राप्त कर लेता हैं और उसके साथ प्रभाव सम्पन्नता आ जाती हैं तब वह मद होश हो जाता हैं अहंकार के वशीभूत नाजायज और जायज़ के अंतर भूल जाता हैं और  राजाश्रय के कारण और अधिक बलिष्ठ हो जाता हैं .भीड़तंत्र के कारण वर्तमान में जो राजनेता हैं उन्हें वोट चाहिए तो वे आपस में एक दूसरे के प्रति समर्पित हो जाते हैं .
          जैसी सूचना मिल रही हैं उसके हजारों एकड़ जमीन बिना शासन ,राजनेताओं के सहयोग से कैसे प्राप्त की होंगी ? कारण इतना बड़ा फैलाव और इतना अधिक साज़ सामान बिना धन के नहीं होता और धन के लिए जब राज्याश्रय मिला और राजनेता उसके सामने नतमस्तक और उसका प्रभाव निरंतर बढ़ने से वह अपने आपको सर्वमान्य मानने लगा . इसके पीछे उसकेअपराध गौण हो गए और जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं .कारण उसको इस अवस्था तक लाने के लिए ढील देना जरुरी था और उसे मिली और उससे वह निरकुंश हुआ .
             राम रहीम हो या रामपाल हो या आशाराम हो इनकी स्वच्छता के पीछे इतनी कुरूपता हैं जो असहनीय हैं और चूँकि इन लोंगो की कार्यशैली इतनी प्रभावशाली होती हैंकि ये सबसे पहले राज नेताओं को अपने प्रभाव में लेते हैं उसके कारण उनके समर्थक और अन्य लोग प्रभावित होते हैं और आप भगवान नहीं तो हम बनाते हैं भगवान्. इनका आभा मंडल    इतना आकर्षक बताया जाता है की लोग अपने आप जुड़ने लगते हैं और फिर चमत्कार को नस्कार होता हैं .
             यहाँ एक बात नहीं समझ में आ रही हैं की उसका इतना बड़ा कारोबार होता रहा और स्थानीय प्रशासन शासन केंद्र सरकार क्या आँख बंद करके रही .कोई इनकम टैक्स ,स्थानीय प्रशासन राज्य शासन की अनुमति बिना इतना  बड़ा आश्रम बनाया और सब अंधे हो गए ! इतना वैभव इतना बड़ा उसका भीड़ तंत्र और सरकार निमग्न होकर सो रही ! धन्य हैं इतना  भाई  बंधू का वचाब .
              वैसे राम रहीम क्या सबके अंदर काम वासना होती हैं और जो शक्तिमान होते हैं वे धन ,स्त्रियों ,शराब कबाब का पूरा उपयोग करते हैं .और उनका आश्रम इतना विशाल और उनके यहाँ जो चंगुल में फंस जाए तो उसका शोषण होना निश्चित.पुरुषों का शोषण अलग तरीके से तो महिलाओं का शोषण अलग तरीके से . हमारे अंदर इतने विकार भरे पड़े हैं जिसका कोई ठिकाना नहीं ,सब अपने अपने अंदर झाँक कर देखे. . रावण जब मृत्यु शैय्या पर थे तो उन्होंने शंकर जी को आव्हान कर  कहा था की मैं आपका इतना बड़ा भक्त और आपने युध्य में मेरा साथ नहीं दिया ऐसा क्यों ? तब शंकर  जी ने कहा रावण तुमने साधु के वेश में सीता का हरण किया जिससे साधु  जाति कलंकित हुई १ यदि तुमने राजा के रूप में अपहरण किया होता तो मैं सोचता. .
               इन रामों ने साधु के वेश में आस्था ,विश्वास जीतकर  अपने प्रभाव का उपयोग कर जितने अनैतिक काम करना थे किये. धरम की आड़ में ये कुकृत्य होने से जन सामान्य को धरम से ,साधुओं से नफरत होने लगी. ! क्या यह हैं धरम का रूप ! जिसकी आड़ में कुकृत्य ऐसे जो जघन्य , क्षम्य नहीं हैं करते हैं .अभी न जाने कितनी साध्वियों की आबरू ली होंगी सब अभी भविष्य के गर्भ में छिपी हैं . हमारा देश प्रजातंत्र में विशवास रखता हैं ,न्याय व्यवस्था में भरोसा रखता हैं ,भगवान् पर भरोसा रखता हैं पर राजनेताओं ,अफसरसाही पर नहीं रहा .कानून में इतना लचीलापन की प्राकृतिक न्याय के लिए एक मुकदमे में १५ साल लग गए ! क्या ये सब कानून का मजाक नहीं हैं .ऐसे वजनदार को इतना समय लगा और जिनकी कोई पहचान नहीं ,गरीब अभी भी विचाराधीन कैदी के रूप में सड़ गए मर गए .              राम रहीम ने अपने प्रभाव का पूरा पूरा उपयोग  किया .यदि हाई कोर्ट  ने कठोर  संज्ञान  न लिया  होता तो उसके अनुयायी कितना कहर ढाते ! और हमारी केंद्र सरकार और राज्य सरकार राम रहीम के पूर्ण प्रभाव में रही. इस देश में अब कानून की व्यवस्था राज्य सरकार केंद्र सरकार न लेकर न्यायालय ले रही हैं .एक अपराधी के लिए अरबों रूपए का इंतज़ाम और मात्र उसके चाहने वालों के कारण और उसके द्वारा राजनैतिक पार्टियों को वोट दिलाने के कारण सब उसके लिए चरण वंदन को तैयार .धिक्कार हैं ऐसी पार्टिया और ऐसे राजनेताओं को .हमारे राजनेता इतने भोले नहीं होते हैं .क्या उन्होंने कभी उसके काले कारनामों की जानकारी  नहीं ली. या गांधारी जैसे आँखों पर पट्टी बांध ली  यह जानभूझकर किया गया अपराध हैं .इस सम्बन्ध में नेता भी पूर्ण जिम्मेदार हैं और उनको भी इस षड्यंत्र में शामिल  पाए  जाने पर भी दण्डित  किया जाना  चाहिए .बड़े बड़े उसके दरबार की शान शौकत से अनिभिज्ञ रहे !
                       हो सकता हैं की राजनेताओं को भी रामरहीम इसी प्रकार उपकृत करता रहा हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं. इससे यह बात सच हो गई की कोई भी प्रभावशाली ,राजनेता ,दूध का धुला नहीं हैं .बस इतना अंतर हैं  वे पकडे नहीं गए . अब रावण से डर नहीं लगता     कारण वह चिन्हित   हैं पर रामों पर भरोसा नहीं हैं .
          सरकार चाहे तो इन्ही रामों के नाम से मंदिर बनवा दे झंझट ख़तम .राम का नाम बहुत चलन में हैं .इनमे कोई दोष भी नहीं हैं .इतना प्रभाव की वे सरकार बनवा सकते हैं कारण उनके पास धन जन और वोट हैं .
                अब रावण से डर नहीं कारण उनका रिकॉर्ड थानों में ,
                राम को कहा कहा ढूढेंगे , हमारे आस पास में
                 आज सिद्ध हुआ हैं पापी बहुत फल दायी
                  संतों की आड़ में सब कुछ होता सच्चा डेरा
                    डेरा होता उनका ज्ञान ध्यान रास का स्थान
                      उसके अंदर कुछ नहीं होता अनर्गल काम
                        जितना अधिक धरम के नाम पर होता शोषण
                     आस्था   ,भरोसा  विश्वास बनता इनका कवच
(लेखक-वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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