YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

(चिंतन-मनन) सुखी रहना है तो ईश्वर से शिकायत न करें 

(चिंतन-मनन) सुखी रहना है तो ईश्वर से शिकायत न करें 

इंसानों की एक सामान्य आदत है कि तकलीफ में वह भगवान को याद करता है और शिकायत भी करता है कि यह दिन उसे क्यूं देखने पड़ रहे हैं। अपने बुरे दिन के लिए इंसान सबसे ज्यादा भगवान को कोसता है। जब भगवान को कोसने के बाद भी समस्या से जल्दी राहत नहीं मिलती है तो सबसे ज्यादा तकलीफ होती है। इसका कारण यह है कि उसे लगता है कि जो उसकी मदद कर सकता है वही कान में रूई डालकर बैठा है। इसलिए महापुरूषों का कहना है कि दुख के समय भगवान को कोसने की बजाय उसका धन्यवाद करना चाहिए। इससे आप खुद को अंदर से मजबूत पाएंगे और समस्याओं से निकलने का रास्ता आप स्वयं ढूंढ लेंगे। भगवान किसी को परेशानी में नहीं डालते और न ही वह किसी को परेशानी से निकाल सकते हैं। भगवान भी अपने कर्तव्य से बंधे हुए हैं। भगवान सिर्फ एक जरिया हैं जो रास्ता दिखाते हैं चलना किधर है यह व्यक्ति को खुद ही तय करना होता है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में इस बात को खुद स्पष्ट किया है।   
आधुनिक युग के महान संत रामकृष्ण का नाम आपने जरूर सुना होगा। ऐसा माना जाता है कि मां काली उन्हें साक्षात दर्शन देती थी और नन्हें बालक की तरह रामकृष्ण को दुलार करती थीं। ऐसे भक्त की मृत्यु कैंसर के कारण हुई। मृत्यु के समय इन्हें बहुत की कष्ट का सामना करना पड़ा। रामकृष्ण चाहते तो मां काली से कह कर रोग से मुक्त हो सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और पूर्व जन्म के संचित कर्मों को नष्ट करने के लिए दु:ख सहते रहे और अंतत: परम गति को प्राप्त हुए।  ओशो का मत है कि भक्त भगवान की पीड़ा में जितना जलता है, उतना ही भगवान के करीब होने लगता है। एक दिन वह घड़ी आती है जब भक्त भगवान में विलीन हो जाता है। रामकृष्ण परमहंस का जीवन इसी बात का उदाहरण है। वर्तमान समय में लोग साढ़ेसाती का नाम सुनकर कांपने लगते हैं। लेकिन प्राचीन काल में लोग साढ़ेसाती का इंतजार किया करते थे। इसका कारण यह था कि साढ़ेसाती के दौरान प्राप्त तकलीफों से उन्हें ईश्वर को प्राप्त करने में मदद मिलती थी। साधु संत शनि को मोक्ष प्रदायक कहा करते थे। वर्तमान में शनि डर का विषय इसलिए बन गये हैं क्योंकि मनुष्य सुख भोगी हो गया है और उसकी सहनशीलता कम हो गयी है।   
शास्त्रों  में कहा गया है कि व्यक्ति अपने जन्म-जन्मांतर के संचित कर्मों के कारण ही सुख-दुख प्राप्त करता है। जब तक कर्मों का फल समाप्त नहीं होता है तब तक जीवन मरण का चप्र चलता रहता है। जो लोग सुख की अभिलाषा करते हैं उन्हें बार-बार जन्म लेकर दु:ख सहना पड़ता है। इसलिए दुख से बचने का एक मात्र उपाय यह है कि दु:ख सह कर भी ईश्वर से शिकायत न करो, सुख अपने हिस्से में स्वयं आ जाएगा। 
 

Related Posts