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कोरोना संक्रमण के बाद बनती है ऐंटीबॉडीज -ताजा रिसर्च ने बढ़ाईं वैक्‍सीन से उम्‍मीदें

कोरोना संक्रमण के बाद बनती है ऐंटीबॉडीज -ताजा रिसर्च ने बढ़ाईं वैक्‍सीन से उम्‍मीदें

लंदन । कोरोना संक्रमण के बाद शरीर में उसके खिलाफ ऐंटीबॉडीज बनती हैं जो रिकवरी में मदद करती हैं। इस ताजा रिसर्च ने कोरोना वैक्‍सीन की उम्‍मीदें बढ़ाईं। ऐसे में इम्‍युनिटी कैसे मिलेगी, साइंस्टिस्‍ट्स इसपर भी रिसर्च कर रहे हैं। साइंटिस्‍ट्स के अनुसार, कोरोना से बचाने के लिए जरूरी कोशिकाएं संक्रमण के कम से कम छह महीने बाद तक शरीर में रहती हैं। रिसर्च के इन नतीजों ने इम्‍युनिटी को लेकर टेंशन थोड़ी कम कर दी है। 100 लोगों पर हुई रिसर्च में पता चला कि सभी में टी सेल रेस्‍पांस जेनरेट हुआ जो कोरोना वायरस प्रोटीन्‍स की एक पूरी रेंज से लड़ने में सक्षम था। इनमें वह स्‍पाइक प्रोटीन भी शामिल है जो कई वैक्‍सीन स्‍टडीज में मार्कर की तरह इस्‍तेमाल हुआ है। यूके की मेडिकल रिसर्च काउंसिल की प्रमुख फियोना वाट ने कहा, 'यह बेहद अच्‍छी खबर है। अगर वायरस के इन्‍फेक्‍शन से इतना मजबूत टी सेल रेस्‍पांस पैदा हो सकता है तो इसका मतलब ये है कि वैक्‍सीन भी ऐसा ही कर सकती है।' टी सेल्‍स ऐंटीबॉडीज नहीं होतीं। वे वाइट ब्‍लड सेल्‍स होती हैं जो पिछली बीमारियों को याद रख सकती हैं, वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को मार सकती हैं और जरूरत पड़ने पर ऐंटीबॉडीज की तैनाती कर सकती हैं। 17 साल पहले जब सार्स महामारी फैली थी, वह भी एक तरह का कोरोना वायरस थी। जब जो लोग सार्स से संक्रमित हुए थे, उनमें आज तक उस बीमारी से लड़ने वाली टी सेल्‍स मौजूद हैं। इंग्‍लैंड में हुई रिसर्च के अनुसार, जिन लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण थे, उनमें इन कोशिकाओं की संख्‍या बिना लक्षण वाले मरीजों से कम से कम 50फीसदी ज्‍यादा थी। अभी तक की रिसर्च में यह साफ नहीं है कि इम्‍युनिटी कितने वक्‍त तक रहती है। छह महीने अबतक का सबसे लंबा वक्‍त है। कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जिन्‍हें कोविड-19 ने दोबारा जकड़ा है। ऐसे में इस रिसर्च के नतीजे बेहद अहम हैं। 
 

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